चीन के कर्ज के जाल में आखिरकार श्रीलंका फंस ही गया। अभी दुनिया कोरोना की महामारी से जूझ रही है और चीन विस्तारवादी सोच को नए आयाम दे रहा है। भारत के पूर्व में चीन की मौजूदगी थी ही, अब वो दक्षिण में भी प्रभाव बढ़ा रहा है। पता चला है कि चीन श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक नई पोर्ट सिटी बनाने जा रहा है। इसके कंस्ट्रक्शन का ठेका भी चीन की कंपनी को मिल चुका है। श्रीलंका की संसद ने इससे जुड़े बिल को संशोधन के बाद मंजूरी दे दी है। इस बिल का श्रीलंकाई विपक्ष ने कड़ा विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने तो जनमत संग्रह कराने का भी सुझाव दिया, लेकिन राजपक्षे भाइयों की सरकार का रसूख और बहुमत इतना है कि आवाज नहीं सुनी गई। फैसले का असर यह होगा कि कोलंबो पोर्ट सिटी के लिए एक अलग पासपोर्ट होगा। 2014 में कोलंबो पोर्ट सिटी के लिए चीन से समझौता हुआ था। प्रस्ताव के मुताबिक, कोलंबो पोर्ट सिटी 269 हेक्टेयर में बनाई जाएगी। इसके लिए पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल को मंजूरी दी जा चुकी है।
चीन ने श्रीलंका सरकार के सामने लालच का जाल फेंका और राजपक्षे सरकार फंस गई। दरअसल, चीन ने कहा है कि वो कोलंबो पोर्ट सिटी में श्रीलंका का पहला ‘स्पेशल इकोनॉमिक जोन’ बनाएगा। यहां हर देश की करंसी में बिजनेस किया जा सकेगा। कुल मिलाकर चीन अब श्रीलंका के जिस क्षेत्र में जड़ें जमाने जा रहा है, वो भारत के कन्याकुमारी से 290 किलोमीटर दूर है। हबनटोटा पर पहले ही उसका कजा है। कोलंबो पोर्ट सिटी और हबनटोटा के लिए चीन एक अलग पासपोर्ट तैयार कर रहा है। हालांकि, श्रीलंकाई सरकार या मीडिया ने अब तक अलग पासपोर्ट के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है। पूर्वी अफ्रीका हो या पाकिस्तान, चीन हमेशा से ही कर्ज देकर अपना विस्तार करता आया है। श्रीलंका पर तो उसकी पैनी नजर है। इसके जरिए वो भारत के लिए नए खतरे पैदा कर सकता है। हबनटोटा को वो पहले ही 99 साल की लीज पर ले चुका है। कोलंबो पोर्ट सिटी के साथ भी 99 साल की लीज की शर्त है। कर्ज के मकडज़ाल में श्रीलंका उलझ जाएगा और जैसे हबनटोटा को खोया, वैसा ही कोलंबो पोर्ट सिटी के साथ भी होगा
अगर मौजूदा हालात को देखें तो चीन की हरकत बहुत हद तक साफ हो जाती है। दरअसल, मार्च के आखिर में भारत में महामारी की दूसरी लहर ने जोर पकड़ा। भारत क्या पूरी दुनिया के हाथ-पैर फूल गए। इसी वक़्त चीन ने श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट हथियाने के लिए तेजी से चालें चलीं। अप्रैल में बिल तैयार हुआ। मई में विरोध और संशोधन के बाद यह पास भी हो गया। श्रीलंका में चीन की इस हरकत से भारत को काफी सावधान रहना होगा, क्योंकि यह वह भूभाग है, जहां से चीन की भारत में आमद काफी आसान हो जाएगी। माना कि भारत अब सेना के मामले में चीन पर भारी पड़ता दिख रहा है, फिर भी यह समय आराम से बैठने वाला नहीं है।
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