राज एक्सप्रेस। भारत में कई बड़े–बड़े मंदिर है जो अनादि काल से खड़े हुए है, जिनकी ढेर सारी मान्यताएं है। इन सभी मंदिरों में अलग-अलग भगवान वास करते है और भक्तों को आशीर्वाद देकर उनकी मुरादे पूरी करते है, लेकिन इसी भारत में कुछ ऐसे अनोखे मंदिर भी है जहां भगवान की नही बल्कि कुत्तों की पूजा की जाती है। यह बात आपको आश्चर्य कर रही होगी लेकिन यह बात शत प्रतिशत सत्य है। भारत में बहुत से ऐसे मंदिर है जिसमे विशेष रूप से भगवान नही श्वान (Shvan) की पूजा की जाती है। आज हम आपको बताएंगे उन्हीं में से कुछ मंदिर के बारे में।
कर्नाटक (Karnataka) का खिलौना शहर कहे जाने वाले चन्नापटना के एक छोटे गांव अग्रहारा वलागेरहल्ली (Agrahara Valagerahalli) में नाई देवस्थाना मंदिर स्थित है, जिसमें 'नाई' का अर्थ स्थानीय कन्नड़ भाषा में कुत्ता होता। यह मंदिर वैसे तो देवी केम्पम्मा (Devi Kempamma) की पूजा-अर्चना के लिए बनाया गया था लेकिन 2010 से इस मंदिर के पास 2 दिव्य कुत्तों का मंदिर भी है जिसके बारे में काम ही लोगों को ज्ञात है। इस मंदिर को रमेश नाम के एक व्यापारी ने बनवाया था। यह मंदिर कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु (Bangalore) से 62 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, एक व्यापारी रमेश ने देवी केम्पम्मा के सम्मान में एक मंदिर बनाने के लिए गाँव को धन दान मे दिया। जब मंदिर परिसर में काम चल रहा था तो दो आवारा कुत्ते अचानक प्रकट हो गए। जैसे-जैसे मंदिर का निर्माण आगे बढ़ा, ग्रामीण मंदिर परिसर के आसपास कुत्तों के घूमने के आदी हो गए। मंदिर का निर्माण शीघ्रता से किया गया, और जैसे ही मंदिर का निर्माण पूरा हुआ, दोनों कुत्ते रहस्यमय तरीके से बिना किसी निशान के गायब हो गए!लोककथाओं के अनुसार, देवी केम्पम्मा एक ग्रामीण के सपने में प्रकट हुईं और उसे अपने मंदिर को बुराई से बचाने के लिए गांव से गायब हुए कुत्तों का पता लगाने का आदेश दिया। जब ग्रामीण लापता कुत्तों को नहीं ढूंढ सके, तो उन्होंने मां केम्पम्मा के आदेश के अनुसार एक छोटा मंदिर बनाने का फैसला किया। ग्रामीणों का मानना है कि ये दो कुत्ते गांव और देवी के मंदिर की रक्षा करते हैं।
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बालोद जिले के एक छोटे से गांव खपरी (Khapri Village) में कुकुरदेव मंदिर है जहां शिवलिंग के साथ वफादारी के प्रतीक एक कुत्ते की पूजा की जाती है। यह मंदिर महाशिवरात्रि और नवरात्रि के समय श्रद्धालुओं से भर जाता है। मंदिर में शिवलिंग होने के बावजूद यह मंदिर पूर्णतः कुत्ते को समर्पित है। इस मंदिर में बड़े-बड़े नेता जैसे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (CM of Chhattisgarh Bhupesh Baghel) भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके है। स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में पूजा करने पर मनुष्यों को कुकुरखांसी रोग (Whooping Cough) और कुत्ते के काटने (Dog Bite) का खतरा नहीं रहता है। गर्भगृह मे जलधारी योनिपीठ पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित है और ठीक उसी के पास स्वामी भक्त कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है। इस मंदिर को स्वामी भक्त कुत्ते के समारक के तौर पर भी देखा जाता है।
स्थानीय लोगों द्वारा माना जाता है कि, सदियों पहले एक बंजारा (Banjara Tribe) अपने कुत्ते और परिवार के साथ इस गांव आया था। गांव में अकाल (Famine) पड़ जाने के कारण बंजारे ने गांव के साहूकार (Money Lender) से कर्ज लिया, लेकिन वो उस कर्ज वो वापस चुका नहीं पाया। कर्ज के बदले बंजारे ने साहूकार के पास अपने वफादार कुत्ते को गिरवी रखवा दिया और वहां से चला गया। थोड़े दिनों बाद साहूकार के घर चोरी होती है। बंजारे द्वारा दिए गए कुत्ते ने लूटे हुए चीजों के जगह का पता लगाया और साहूकार को उस जमीन तक ले गए। जब कुत्ते द्वारा बताए गए जमीन पर खोदा गया तो साहूकार को उसका माल वापिस मिल गया।
इस कार्य से खुश होकर साहूकार ने कुत्ते के गले में पर्ची लगाकर उसे अपने असली मालिक के पास भेजा। जब वह अपने असली मालिक के पास आया तो बंजारे को लगा की वह साहूकार से भाग कर यहां आ गया है। गुस्से में बंजारे ने उस कुत्ते को इतना मारा की वह मर गया। कुत्ते के मरने के बाद बंजारे ने पर्ची को देखा और उसे अपने कार्य पर पछतावा हुआ और उसने उसी जगह पर कुत्ते के शव को दफना दिया और उसपर मंदिर बना दिया। फिर फणी नागवंशी शासकों (Phani Naga Dynasty Rulers) ने उस मंदिर का जीर्णोंद्धार (Renovated) कराया था। मंदिर में कुत्ते वफादारी की पूजा की जाती है।
उत्तरप्रदेश के 2 गांवों की सीमा (Border) पर स्थित यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए एक अहम धार्मिक स्थल माना जाता है। यह झांसी जिले (Jhansi District) के मऊरानीपुर तालुके (Mauranipur Taluka) के भीतर आने वाले रेवां और ककवारा गांव (Rewan and Kakwara Villages) के सीमा पर स्थित है जो सड़क के किनारे बना हुआ है। यह मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं है। एक सफेद रंग चबूतरे (Platform) के ऊपर काले रंग की कुतिया की मूर्ति है जिसकी पूजा की महारानी मां (Queen Mother) के रूप में की जाती है। मूर्ति के बाहर लोहे की जालियां (Iron Nets) लगाई गई है, ताकि कोई इस मूर्ति को नुकसान न पहुंचा सके। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस कुतिया महारानी मां के पास मांगी गई है मुराद पूरी होती है और वह भक्तो के दुखों को हर लेती है। दोनो गांव में रहने वाली महिलाएं प्रतिदिन कुतिया महारानी मां को जल अर्पित करती है।
स्थानीय लोगों द्वारा प्रचलित के अनुसार, इन दोनों गांवों में एक कुतिया रहा करती थी, जो किसी भी हाल में भोजन के लिए गांव वालों के घर पहुंच जाया करती थी। एक बार रेवां गांव में सामूहिक भोज (Mass Feast) का आयोजन हो रहा था और कुतिया, रेवां के गांव खाने पहुंची लेकिन, उसके पहुंचने तक सारा खाना खत्म हो चुका था। इसके बाद वह ककवारा गांव पहुंची, वहां भी उसे खाना नहीं मिला। किसी भी गाँव में खाना न मिलने पर कुतिया भूख से तड़प-तड़प कर मर गई। कुछ स्थानीय लोगों का यह भी मानना है कि कुतिया बीमार भी थी।
कुतिया की मौत से दोनों गांव के लोग काफी दुखी थे, जिसके बाद उन्होंने कुतिया को दोनों गांवों की सीमा पर दफना दिया और कुछ समय बाद वहां मंदिर बना दिया। अब ऐसी परंपरा है कि अगर आसपास के गांव में कोई आयोजन होता है तो लोग इस मंदिर में जाकर भोग लगाते हैं। दशहरा और दीपावली (Dussehra and Diwali) के समय इस मंदिर के पास पूजा का ख़ास महोत्सव होता है क्योंकि माना जाता है की कुतिया की मौत इन्हीं दो तेहवारों के दौरान हुई थी। आज यह मंदिर दोनों ही गांवों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र (Center of Faith) बन चूका है।
उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के बुलंदशहर (Bulandshahr) से 2 किलोमीटर की दूरी पर है सिकंदराबाद जहां स्थित है यह अनोखा भैरव बाबा मंदिर। भैरव बाबा नाम सुनकर आपको लग रहा होगा की हम भगवान भैरव (Lord Bhairav) की बात कर रहे है। नहीं, यह मंदिर भैरव नाम के कुत्ते की समाधि (Tomb) है। यह मंदिर 1 सदी से भी ज्यादा यानी 100 साल भी ज्यादा पुराना है। इस मंदिर में दीपावली और होली (Diwali and Holi) के अवसर पर भंडारे और मेले (Fair) का भी आयोजन किया जाता है। इस मंदिर में भैरव बाबा के दर्शन के लिए लोग दूर–दूर से आते है। स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार, भैरव बाबा की समाधि के ऊपर बनी मूर्ति के पैरों पर धागा बांधकर मन्नत मांगने से मनोकामना पूरी होती है। बताया जाता है कि मेरठ, मेनपुरी, इटावा, मुरादाबाद, लखनऊ और दिल्ली से भी लोग यहां आते है और मन्नते मांगते है।
स्थानीय कथाओं के अनुसार, करीब 100 साल पहले एक सिद्ध पुरुष लटूरिया बाबा (Laturia Baba) इस स्थान पर एक छोटी सी कुटिया (Hut) में रहते थे। लटूरिया बाबा कुत्ते भी पल रखे थे जिसमें से एक कुत्ते को वह भैरव बाबा के नाम से पुकारते थे। भैरव को बाबा सबसे ज्यादा स्नेह करते थे। धीरे-धीरे बाबा ने कुटिया के स्थान पर मंदिर बनाने लगे। उसके बाद लटूरिया बाबा ने करीब 100 साल पहले इसी स्थान पर समाधि ली थी। समाधि के दौरान जिस कुत्ते भैरव को वह स्नेह-प्रेम करते थे, वही कुत्ता उसी समाधि में कूद गया।
लोगों ने कुत्ते को बाहर निकाल भरसर प्रयास किया लेकिन कुत्ता फिर भी बाबा की समाधि में कूद रहा था। तब बाबा ने कहा कि भैरव बाबा को हमारे साथ समाधि लेने दो और इनकी पूजा होली और दिपावली त्योहारों पर होगी। इनके पैर में जो भी व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक धागा बांधकर अपनी मन्नत मांगेगा उनकी मन्नत पूरी होगी। उसके बाद लटूरिया बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया और भैरव बाबा समाधि की लोगों ने पूजा करना शुरू कर दी।
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