फिल्म में सनातन धर्म की स्तुति
फिल्म डालती है, यौन शिक्षा के महत्व पर रौशनी
सेंसर बोर्ड का दोहरा चरित्र
फिल्म में बताए तथ्यों को अपनाए दर्शक
राज एक्सप्रेस। 28 सितंबर 2012, बॉलीवुड ने एक ऐसी फिल्म को रिलीज किया था जिसने उस समय सभी धर्मो के ठेकेदारों और अंधविश्वास फैलाने वालों के कुकृत्य पर हमला किया था। इस फिल्म का नाम था ओह माई गॉड! जिसमे अक्षय कुमार (Akshay Kumar) और परेश रावल (Paresh Rawal) लीड रोल में थे। यह एक नास्तिक कांजी लाल मेहता की कहानी थी।
अब लगभग 11 सालों के बाद इस फिल्म का दूसरा भाग रिलीज हो चुका है जिसमे अक्षय तो है लेकिन परेश रावल की जगह प्रतिभावान अभिनेता पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) लीड रोल में है जो की महाकाल बाबा (Mahakaleshwar Temple) की नगरी में रहना वाला शिव भक्त है। ओएमजी2 ऐसे अछूत विषय की चर्चा को शुरू करने का प्रयास करती है जिसका हिंदू धर्म ने खुले तौर पर प्रचार-प्रसार किया था लेकिन आज का भारत उसे वर्जना मानता है। आज इस लेख के माध्यम से हम इस फिल्म के साहस और महत्वपूर्ण उद्देश्य का विश्लेषण करेंगे।
भारतीय समाज में यौन शिक्षा का स्थान :
इस मूवी में पंकज त्रिपाठी एक डायलॉग बोलते है जो कुछ इस प्रकार होता है कि "जब पूरी दुनिया करवट ले रही थी, उस समय हमारा सनातन धर्म दौड़ रहा था"। इस एक डायलॉग ने सनातन धर्म की सालों से चमकती खूबसूरती, प्रगतिशील विचारधारा एवं आधुनिकता को दर्शा दिया था। यह फिल्म भारतीय समाज यौन शिक्षा और धर्म के अज्ञान के बारे में बात करती है और बताती है कि कैसे आज भी यौन से जुड़ी सभी विषयों को घटिया और वर्जना (Taboo) माना जाता।
भारत के समाज में यौन शिक्षा (Sex Education) न ही सही तरीके से पढ़ाई जाती है ना ही परिवार में इस बात की चर्चा भी की जाती क्योंकि देश का हर एक नागरिक आज भी इस शिक्षा को शर्म और डर की नज़र से देखता है।यह फिल्म साहसी कदम उठाकर एक ऐसे विषय को समाज में सामान्यीकरण करने का प्रयास करती है जिसके बारे में घर में तो छोड़ो स्कूल और दोस्तो के बीच भी सही तरीके से बात नही होती हैं। प्रजनन स्वास्थ्य और कामुकता के बारे में चर्चाओं को अक्सर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है, जिससे व्यापक यौन शिक्षा को लागू करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
फिल्म में सनातन धर्म की स्तुति :
फिल्म के टीजर को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। विरोध करने वाले लोगों का मानना था कि यह फिल्म वामपंथी सोच और वोक एजेंडा को थोपते हुए या भगवान शिव को यौन के संबंध के बारे में ज्ञान देते हुए नजर आएगी। बरहाल, फिल्म में ऐसा कुछ भी नही होता है जिसकी चर्चा रिलीज से पहले चल रही थी। फिल्म हजारों साल पहले लिखी जा चुकी अलग–अलग हिंदू धर्म के ग्रंथो का इस्तेमाल अपने यौन शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए करती है। फिल्म में पंकज त्रिपाठी के बेहतरीन अभिनय से हमे बताया जाता है कि कैसे सनातन धर्म की किताबों में यौन शिक्षा, औरत और मर्द के शरीर और काम का वर्णन खुले तरीके से किया गया है।
फिल्म, पंचतंत्र, कामसूत्र और अन्य ग्रंथो के माध्यम से हिंदू धर्म की वैज्ञानिक और आधुनिक विचारधारा को बताने का कार्य करती है जिसे आज विश्व जनता है लेकिन खुद भारतीय नही जानते है। फिल्म में बताया जाता है कि कैसे सनातन धर्म के 4 स्तंभ में से एक काम को अश्लीलता का दर्जा दे दिया गया है जिसकी वजह अंग्रेजो की हमारे गुरुकुल और मंदिरों में पढ़ाई जा रही धर्म शिक्षा को नष्ट करने की नीति थी।
सेंसर बोर्ड के दोहरे चरित्र ने बिगाड़ा भगवान शिव का रोल:
फिल्म के टीजर का विवादों में आने के बाद सेंसर बोर्ड (Central Board of Film Certification) ने फिल्म को दोबारा रिव्यू करने की मांग की थी। रिव्यू करने बाद फिल्म में 25-27 कट्स लगाए गए थे और इस फिल्म को 'A'सर्टिफिकेट दिया गया था। सेंसर बोर्ड का यह कार्य उसके दोहरे चरित्र और दर्शकों को मूर्ख समझने की सोच को दिखाता है क्योंकि उन्होंने आदिपुरुष जैसी धर्म ग्रंथ रामायण का मजाक उड़ाने वाली फिल्म को बिना किसी रुकावट के पास कर दिया था। एक सेंसर बोर्ड ने ऐसी फिल्म पर कैची चलाई और उसे एडल्ट सर्टिफेक्ट दे दिया जिसे बच्चो समेत अपने परिवार के साथ सबको देखना चाहिए और सीख लेनी चाहिएं। जो फिल्म 12–16 साल के बच्चो को यौन और मनुष्य के शरीर के प्रति शिक्षित करने का काम कर सकती थी उसे एडल्ट सर्टिफिकेट देना अपने आप में एक विडंबना है।
सेंसर बोर्ड द्वारा इतने कट्स ने भगवान शिव (Lord Shiva) के रोल को खराब करने का काम किया जो और भी ज्यादा बेहतर हो सकता था।जिस तरीके से भगवान शिव के किरदार को लिखा गया था वह दर्शकों को उनके शाकशात फिल्म में होने का अहसास दिला देती है। फिल्म में महाकालेश्वर मंदिर को भी खूबसूरती से दिखाया गया है जिसे देख आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। फिल्म ने हम दर्शकों को अपने अंतर्मन में झांकने पर मजबूर कर दिया है कि हम कितना अपने ही धर्म को जानते है और सत्य को खुलकर स्वीकार करते है क्योंकि सत्य हमेशा नंगा होता है वो जैसा है उसे वैसा ही दिखाया जाना चाहिए।
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