राज एक्सप्रेस। 2019 में देश को खुशी के पल भी मिले, तो हिंसा की आग से भी रूबरू होना पड़ा। पाकिस्तान पर भारत की एयरस्ट्राइक ने जहां करोड़ों हिंदुस्तानियों के दिल पर सुकून की लौ जलाई, वहीं नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भड़की हिंसा की आग ने गंगा-जमुनी तहजीब वाले देश के मुंह पर कालिख भी पोती। कई ऐसे प्रण रहे जो अधूरे रह गए। इस साल उन्हें पूरा करना ही होगा।
हर बार हम जो संकल्प लेते हैं, भले ही वे धरे के धरे रह जाते हों, भले ही हर साल नववर्ष की पूर्व संध्या पर बनाई गई हमारी तमाम योजनाएं भी अधूरी ही रह जाती हों, इसके बावजूद न हम संकल्प लेना छोड़ेंगे और न ही योजनाएं बनाना। हम इंसानों का यही स्वभाव है। इस धरती के तमाम दूसरे जीवों से हटकर मनुष्य की यही खूबी है कि वह कुछ करना चाहता है। अपनी तमाम नाकामियों से बार-बार प्रेरित होने का माद्दा हम में नहीं होता, तो हमारा इतिहास आज भी हजारों वर्ष पहले ही ठिठककर रह गया होता। इसलिए इससे हमें निराश नहीं होना चाहिए कि हर बार हमारे संकल्प अधूरे रह जाते हैं, हर बार योजनाएं बस योजनाएं ही बनी रहती हैं। इस वर्ष हम नाकामियों को भूलकर और निराशा से बाहर निकालकर फिर से नई योजनाएं बनाएं, नए संकल्प लें, नई प्रेरणाएं ढूंढें और नए लक्ष्य तय करें। यही इंसान होने की खूबी है और यही खूबसूरती भी। इसी खूबी के कारण हम धरती पर दूसरे जीवों से बेहतर हैं। बहरहाल, 2019 कितने भी कष्टों का वर्ष रहा हो, कितनी भी उठापटक का साल रहा हो, कितनी भी बेचैनियों और कितनी ही परेशानियों से रूबरू कराता रहा हो, लेकिन गुजरा साल हमें नए साल का एक तोहफा देकर गया है।
हर गुजरा साल हमें बहुत कुछ सिखाकर जाता है। यह तोहफा 2019 ने भी दिया है। अत: हमें उसका शुक्रगुजार जरूर होना चाहिए कि, चाहे कैसी भी परिस्थितियां रही हों, हम उनसे जूझकर बाहर निकलने में सफल रहे। विषम परिस्थितियां हमें तोड़ नहीं पाईं। गुजरे वर्ष के प्रति आभारी होने के लिए क्या यह कम है कि उसने हमें टूटने नहीं दिया? उसने हमें जो सबक दिए हैं, याद तो उन्हें भी रखना होगा। साल 2019 हमारे लिए एक नहीं, तमाम सबक देकर गया है। उसने सभी के लिए अलग-अलग सबक दिए होंगे। अत: उनकी चर्चा करना न तो जरूरी है, न ही व्यावहारिक। लेकिन हमें अपने उन सभी सबकों को याद रखना चाहिए। प्रयास यह भी होना चाहिए कि जो गलतियां हमने बीते वर्ष की थीं, उन्हें फिर नहीं दोहराएंगे। यदि हम पुरानी गलतियों को न दोहराने का संकल्प ले सकें तो यही एक बड़ी उपलब्धि भी होगी।
हां, कुछ सबक ऐसे भी हैं, जो पूरे समाज पर समान रूप से लागू होते हैं। बलात्कार की घटनाओं को लेकर यह साल खासा याद किया जाएगा। इस साल बलात्कार की ऐसी दर्दनाक और चर्चित घटनाएं सामने आईं, जिसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ा। नए साल में हमें सबसे पहला काम अपने नजरिए को पूरी तरह दुरुस्त करने का करना होगा। सकारात्मक सोच वह ताकत होती है, जो विषम परिस्थितियों को भी अंत में हमारे पक्ष में झुका देती है। इसके विपरीत हमारी सोच अगर नकारात्मक होगी तो वह अनुकूल स्थिति को भी हमारे खिलाफ कर देती है। विफलता व सफलता कुल मिलाकर हमारे नजरिए पर निर्भर करती है। अगर उदाहरण नोटबंदी का ही दें तो विपक्षी राजनीतिक दलों का कहना यह है कि 2016 के आखिरी में जिस तरह से नोटबंदी का कहर टूटा, उससे लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं। पर इन लोगों का ध्यान इस तरफ क्यों नहीं जाता कि नोटबंदी के बाद जो लेन-देन और भुगतान के नए तौर-तरीके सामने आए हैं, भले ही वे मजबूरी में आएं हों, उनसे लाखों नए रोजगारों की संभावना बनी है। इसमें सकारात्मकता यह होगी कि हम अपने आप में योग्यता विकसित करें और इन अवसरों के दावेदार बनें। व्यक्तिगत स्तर पर हमें अपने चिंतन की दिशा को सकारात्मक ही रखना चाहिए। एक और संकल्प यह लिया जा सकता है कि यदि हम बेरोजगार हैं तो कोई ऐसा काम सीखें, जो हमें रोजी मुहैया कराए, जबकि हमारे पास यदि रोजगार है तो उसके हिसाब से हम अपने अंदर नई-नई योग्यताएं भी विकसित करें, ताकि दौड़ में पीछे न खड़ा होना पड़े। हम अपने बच्चों को भी कुशल बनाएं और इसके लिए स्कूलों-कॉलेजों के भरोसे न रहें।
इस साल देश को खुशी के पल भी मिले, तो हिंसा की आग से भी रूबरू होना पड़ा। पाकिस्तान पर भारत की एयरस्ट्राइक ने जहां करोड़ों हिंदुस्तानियों के दिल पर सुकून की लौ जलाई, वहीं नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भड़की हिंसा की आग ने गंगा-जमुनी तहजीब वाले देश के मुंह पर कालिख भी पोती। 2019 का साल महिलाओं को संबल देने वाला रहा, तो उनकी आबरू सुरक्षित न रख पाने वाला भी। बीता साल अब नए साल में प्रवेश कर चुका है। हर दिन हमें नया करने और सेाचने को प्रेरित करता है। सो अब जबकि साल गुजर गया है, तो हमें बीती बातों को यहीं छोड़ना होगा और एक ऐसा देश और समाज बनाने का प्रण लेना होगा, जिसमें हर एक देशवासी सुखी हो और उसका जीवन किसी भी कष्ट के बिना बीते।
महिलाओं के लिए सुरक्षित समाज की नींव डालनी तो बेहद जरूरी है। पिछले कुछ वर्षो में जिस तरह से महिलाओं के लिए असुरक्षित वातावरण बन रहा है वह हर भारतीय के लिए शर्मनाक है। हम बेटियों की आबरू नहीं बचा पा रहे हैं तो यह ठीक नहीं है। हमें इस दिशा में प्रण लेना ही होगा।
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