राज एक्सप्रेस । बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में अब भी क्षेत्रीय दलों का अच्छा खासा प्रभाव है। तमाम हाथ-पैर मारने के बाद भी भाजपा यहां अपने को दबाव में महसूस करती है। इसके साथ ही, दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक को गंवाने के साथ ही दक्षिण भारत का एकमात्र गढ़ भी भाजपा के हाथ से निकल गया है। उधर, 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को घेरने के लिए विपक्ष एकजुट हो रहा है। बिहार की राजधानी पटना में भाजपा के खिलाफ 15 विपक्षी दलों ने बैठक की है। जिसमें सभी विपक्षी दलों ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने का संकल्प लिया है। विपक्षी दलों की एकजुटता से चिंतित भाजपा नेतृत्व ने भी अपने पुराने साथियों को एक बार फिर अपने साथ जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार भाजपा ने अपने एनडीए यानी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस के नए सिरे से गठन के प्रयास शुरू करने का निर्णय लिया है। भाजपा अपने पुराने और कुछ नए राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें एनडीए से जोड़ने का प्रयास कर रही है। हालांकि, इस मुद्दे पर अब तक भाजपा ने कभी कुछ नहीं कहा है, लेकिन उसने अंदर ही अंदर एनडीए के पुनर्गठन के प्रयास शुरू कर दिए हैं। पार्टी नेतृत्व ने पुराने साथियों को पार्टी से जोड़ने के प्रयास शुरू करने के निर्देश दिए हैं, ताकि किसी तरह के संकट की स्थिति में भी केंद्र में सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं हो।
हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार से अलग हुए जीतन राम मांझी एनडीए में वापसी का ऐलान कर चुके हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा में भाजपा की संख्या बढऩे के बाद हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) समेत एनडीए के कई पूर्व साथी गठबंधन में दोबारा शामिल होने के लिए उत्सुक नजर आ रहे हैं। साल 2014 में भाजपा ने लोकसभा में 282 सीटें हासिल की थीं। साल 2019 में यह संख्या बढक़र 303 पर पहुंच गई थी।
जून में ही तेलुगु देशम पार्टी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से दिल्ली में मुलाकात की थी। बिहार में भी भाजपा उपेंद्र कुशवाहा की आरएलजेडी और मुकेश साहनी की वीआईपी से संपर्क बढ़ाती नजर आ रही है। इसके साथ ही भाजपा लोक जनशक्ति पार्टी नेता चिराग पासवान को भी मनाने की कोशिशें कर रही है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि चंद्रबाबू नायडू एनडीए से जुड़ने के लिए सहमत हैं। जल्दी ही वह अपनी नई भूमिका का ऐलान कर सकते हैं।
भाजपा भले ही पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे चुनाव मैदान में उतरने की योजना बना रही हो, लेकिन कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी को नई रणनीति पर अमल करने के लिए मजबूर कर दिया है। गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में लौटने में जरूर सफल रही है, लेकिन उसने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी द्वारा पैदा किए गए दबावों को भी साफ महसूस किया था। हरियाणा में जजपा के साथ गठबंधन में भाजपा की सरकार है, जिनके बीच अक्सर खटपट की खबरें आती रहती हैं।
मध्य प्रदेश में भाजपा चुनाव हार चुकी थी, हालांकि बाद के घटनाक्रम की वजह से वह सत्ता पर काबिज होने में जरूर सफल रही है, यहां कांग्रेस संगठन की मजबूती उसे चिंता में डाले हुए है। पार्टी नेतृत्व जानता है कि इस बार मध्य प्रदेश में बेहद तैयारी के साथ चुनाव मैदान में उतरने की जरूरत है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी ऐसे स्थान हैं, जहां भाजपा को कड़ी चुनौती मिलने वाली है। सूत्रों के अनुसार पार्टी नेतृत्व ने निर्देश दिए हैं कि इन स्थितियों ने भाजपा को नए सिरे से तैयारी करने की जरूरत है।
बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अब भी क्षेत्रीय दलों का प्रभाव है, जिनके बीच जगह बनाने के लिए भाजपा को बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। कर्नाटक गंवाने के साथ ही भाजपा दक्षिण भारत में एकमात्र गढ़ भी हार चुकी है। महाराष्ट्र में नई शिवसेना का जनता के बीच टेस्ट होना अभी बाकी है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना का महाराष्ट्र की जनता कितना स्वीकार करती है, यह देखना अभी बाकी है। इसके अलावा, राज्य में लगातार 10 सालों की सत्ता विरोधी लहर भी भाजपा के लिए चिंता का विषय बन सकती है।
खास बात है कि ऐसे भी कई दल हैं, जो अपने ही राज्यों में गैर-एनडीए दलों के चलते सिकुड़ते जा रहे हैं। भाजपा की प्राथमिकता ऐसे दलों को अपने साथ जोड़ने की है। कहा जा रहा है कि भाजपा ने कर्नाटक में जेडीएस, आंध्र प्रदेश में तेदेपा, पंजाब में शिअद के साथ निकटता बढ़ानी शुरू कर दी है। बीते साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में भी इन तीन दलों ने एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया था।
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