राज एक्सप्रेस। आज देश अपने पहले कानून मंत्री और बहुजन समाज के भगवान माने जाने वाले भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की 132वीं जयंती को मना रहा है। वहीं भीमराव अंबेडकर जिन्होंने दलित और अन्य बहुजन समाज के लिए अपना जीवन न्यौछावर किया, महात्मा गांधी से भिड़े, शूद्रों के लिए महद सत्याग्रह जैसा बड़ा आंदोलन चलाया यही नहीं संविधान में पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आरक्षण को लाया।
हम सभी जानते है कि बाबा साहब का स्वभाव सीधा और उग्र तरीके से अपनी बातों को सामने रखने वाला था। इसी वजह से उन्होंने कई बार ऐसी भी बातें बोली है जिसे शायद आज का भारतीय समाज राष्ट्र विरोधी टिप्पणी बता दें लेकिन शायद कुछ ही लोग जानते है कि उसके पीछे की सच्चाई क्या है और सबसे बड़ी बात की बाबा साहब ने हमे आलोचना करने का अधिकार दिया जिसकी वजह से आज हम उनकी भी आलोचना कर रहे है। आइए जानते बाबा साहब के कुछ ऐसे कार्य एवं टिप्पणियां जिनकी वजह से आज का भारत उन्हें बोलता ”एंटी नेशनल”।
1929 के लाहौर अधिवेशन में जब मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा था तब उस प्रस्ताव को दो अहम लोगों ने खारिज कर दिया था, मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना और डॉ. अंबेडकर। इस प्रस्ताव को खारिज करने का कारण यह था कि बाबा साहब मानते थे कि अंग्रेजों की वजह से दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। उनका यह भी मानना था कि कांग्रेस सिर्फ बाहरी आजादी की ही बात कर रही है जबकि हमे पूर्ण रूप से आजादी तभी मिल पाएगी जब हम अपने समाज के भीतर से जाती प्रथा और पिछड़े वर्गों के साथ भेदभाव करने वाली सभी कुप्रथाओं को समाप्त कर देंगे। वह जानते थे कि कांग्रेस सिर्फ राजनीतिक लाभ और नियंत्रण पर केंद्रित है जबकि भारत की सामाजिक स्थिति पर कोई भी कांग्रेसी बात नहीं करना चाहता था।
डॉ. अंबेडकर ने अपनी एक किताब पाकिस्तान और द पार्टीशन ऑफ इंडिया में कहा था कि मुस्लिम शासन के दौरान मुस्लिम आबादी खुद को हिंदुओं का मालिक समझने लगी थी लेकिन अंग्रेजों के कब्जे ने उन्हें हिंदुओं के बराबर नीचे ला दिया अंग्रेजों के देश छोड़ने की बात ने उन्हें हिंदुओं की प्रजा बनने की संभावना से अवगत कराया। इस कथित अपमान और इस्लामी पहचान को खोने के डर ने मुसलमानों में भावनात्मक असुरक्षा पैदा कर दी। दूसरी ओर, हिंदुओं को भी इस्लामी प्रभुत्व के दिनों में वापस जाने की आशंका थी। सामाजिक सुधार की किसी भी संभावना ने प्रतिद्वंद्वी समुदाय की तुलना में शक्ति संतुलन पर संभावित प्रभाव का सवाल उठाया। बाबा साहब ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि इस तरह के डरावने और संदेहास्पद माहौल में रहने के बजाय बेहतर यही है कि दोनों समुदाय अपने रास्ते अलग कर लें। अलग-अलग राष्ट्रों के रूप में रहने से उन्हें दूसरे के वर्चस्व के डर से मुक्ति मिलेगी और इसके परिणामस्वरूप हमेशा के लिए सामाजिक ठहराव आ जाएगा।
साल 1939 में, बॉम्बे असेंबली में एक बहस के दौरान, बाबा साहब ने अछूत और अन्य पिछड़े जातियों के प्रति अपनी अटूट निष्ठा को दोहराते हुए कहा था कि “ जब भी देश और अछूतों के बीच हितों का टकराव होगा, जहां तक मेरा संबंध है तो मैं अछूतों के हितों को प्राथमिकता देना पसंद करूंगा, देश के हितों के ऊपर। मैं एक अत्याचारी बहुमत का सिर्फ इसलिए समर्थन नहीं करने जा रहा हूं क्योंकि ऐसा होता है कि वह देश के नाम पर बोलता है, लेकिन जहां तक देश और मेरे बीच के हितों को चुनने का प्रश्न है मैं देश के हित को ही प्राथमिकता दूंगा।” बाबा साहब ने ऐसा इसलिए बोला था क्योंकि वे खुद ऐसी जाती में जन्में थे जिसे विद्यालयों के मटके से पानी तक पीने नहीं दिया जाता था। बाबा साहब को अपने बचपन के दिनों में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। वह जानते थे कि कांग्रेस सिर्फ बाहरी आजादी की ही बात कर रही है ना की भारत की भीतरी आजादी की। उनका मानना था कि सब बड़े से बड़े नेता सिर्फ अंग्रेजों से आजादी की बात कर रहे है लेकिन भारत के अंदर को अंग्रेजों से भी खतरनाक राक्षस बैठा हुआ है जिसने भारतीय समाज के बीच में एक बटवारा कर दिया उसे हटाने और उसके बारे में बात कोई भी कांग्रेसी या अन्य बड़ा नेता नहीं करना चाहता था। उनका मानना था कि कांग्रेस का जाती प्रथा के बारे में बात ना करने का कारण यह है कि अगर वे इस बारे में बात करते तो जीतने भी उच्च जाति वाले हिंदू उनके अभियान में जुड़े थे वह क्रोधित हो जाते।
बाबा साहब ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के गांधी जी के फैसले का मुखर विरोध किया था। उन्होंने सभी लोगों से अपील की कि सभी देशभक्त भारतीयों का यह कर्तव्य है कि वे ऐसे आंदोलन जो अराजकता पैदा कर सकते है उनसे बचे और निर्विवाद रूप से इस देश को अधीन करने की इच्छा रखने वाली शक्तियों की मदद करें। भारत छोड़ो आंदोलन पर बाबा साहब ने आगे कहा कि “भारत छोड़ो आंदोलन एक गैर-जिम्मेदार आंदोलन है, जो राज्य कौशल का दिवालियापन दिखा रहा है। गुलाम वर्ग की दृष्टि से शासक वर्ग के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम स्वार्थी और दिखावटी संघर्ष है। गांधी एक अंधकार युग के भविष्यवक्ता हैं। बाबा साहब, महात्मा गांधी की राजनीति को खोखला और कोलाहलयुक्त मानते थे। उनका मानना था की गांधी की राजनीति, भारतीय राजनीति के इतिहास की सबसे बेईमान राजनीति है। बाबा साहब और महात्मा गांधी के बीच बहुत से मतभेद थे। बाबा साहब ने शुरुआत से ही महात्मा गांधी और कांग्रेस की राजनीति को नापसंद किया था जिसकी वजह से वे हमेशा ही गांधी जी के सबसे बड़े आलोचकों में से एक रहे थे।
अगर देखा जाए तो ऐसी और भी टिप्पणियां है जिनकी वजह से बाबा साहब को आज के भारत में एंटी नेशनल का टैग दे दिया जाता । हमें इससे पहले शायद ये सोचना चाहिए कि बाबा साहब के समय में एक व्यक्ति के पास अपने मन की बात रखने की आजादी हुआ करती थी। अलग–अलग विचारधारा, समाज, सोच के लोग एक साथ बैठकर, एक दूसरे की बातों को सुना करते थे। यही नहीं सरकार का कड़ा विरोध किया करते थे लेकिन शायद आज का समय कुछ अलग है। इसी समय को शायद बाबा साहब ने पहले ही भाप लिया था क्योंकि उन्होंने हम भारतीयों को बहुत से अधिकार दिए जिसमे से सबसे प्रखर था "आजादी का अधिकार" जिसके भीतर हम किसी भी व्यक्ति की आलोचना कर सकते है, और इसी अधिकार की वजह आज हम बाबा साहब पर भी प्रश्न खड़े कर रहे है और यहीं बाबा साहब के विचारों की खूबसूरती थी।
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