उत्तर प्रदेश, भारत। बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख मायावती ने आज रविवार को नववर्ष पर अपना प्रेस नोट जारी किया है एवं नव वर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए केन्द्र सरकार को सलाह दी है।
दरअसल, बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मायावती ने कहा कि, ''कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और समाजवादी पार्टी (SP) आरक्षण के संवैधानिक उत्तरदायित्व के प्रति ईमानदार नहीं है, जबकि उनकी पार्टी ने 85 प्रतिशत शोषितों-पीड़ितो व उपेक्षितों को बहुजन समाज की शक्ति में जोड़ने का काम काफी पहले से शुरू कर दिया है।''
साथ ही केन्द्र सरकार को सलाह देते हुए यह बात भी कहीं- अगर सरकार चाहे तो अपनी नीयत व नीति में थोड़ा सुधार करके गरीब, शोषित वंचित वर्ग के लोगों के जीवन को अच्छे दिन में बदल सकती है। नये साल में सभी के लिए रोजगार-युक्त व महंगाई-मुक्त आत्म-सम्मान के सुख, शान्ति व समृद्धि भरे जीवन की कामना। जहां तक लोगों को जोड़कर भारत को असली भारत बनाने के लिये यज्ञ की बात है। तो यह काम बसपा ने सभी 85 प्रतिशत शोषितों-पीड़ितो व उपेक्षितों को बहुजन समाज की शक्ति में जोड़ कर काफी पहले से शुरू कर दिया है, लेकिन इसकी स्थापना में सबसे बड़ी चुनौती आरक्षण को लागू करने को लेकर संविधान बनने से लेकर आज तक बनी हुई है।
एससी व एसटी के आरक्षण को लागू करने के मामले में ही नहीं बल्कि ओबीसी के आरक्षण को लेकर भी इन पाटिर्यों का रवैया अति जातिवादी व क्रूर देखने को मिला है।
कांग्रेस ने केन्द्र में अपनी सरकार के लम्बे दौर के रहते हुए भी पिछड़ों के आरक्षण सम्बन्धी मण्डल कमीशन की रिपोर्ट को लागू नहीं होने दिया।
साथ ही एससी व एसटी के आरक्षण को भी निष्प्रभावी बना दिया और अब भाजपा भी इस मामले में जगजाहिर तौर पर कांग्रेस के पदचिन्हों पर ही चलकर बहुजनों के आरक्षण के हक को मारने का भी घोर अनुचित काम रही है।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सपा की रही सरकार ने भी खासकर अति-पिछड़ों को पूरा हक नहीं देकर इनके साथ हमेशा छल करने का ही काम किया है।
सपा ने एससी व एसटी का पदोन्नति में आरक्षण को खत्म कर दिया। इससे सम्बन्धित बिल को सपा ने संसद में फाड़ दिया तथा इसे पास भी नहीं होने दिया।
सपा ने ओबीसी की 17 अति-पिछड़ी जातियों को ओबीसी वर्ग की सूची से हटाकर एससी वर्ग में शामिल करने का गैर-संवैधानिक कार्य करके इन वर्गों के लाखों परिवारों को ओबीसी आरक्षण से वंचित कर दिया, क्योंकि सपा सरकार द्वारा ऐसे करने का अधिकार नहीं होने के बावजूद भी यह गलत कदम उठाने पर वे सभी जातियाँ न ओबीसी में ही रह पायीं और ना ही एससी में उन्हें शामिल किया जा सका।
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