राज एक्सप्रेस। कोरोना वायरस के संकटकाल के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिए 20 लाख करोड़ के पैकेज को लेकर विपक्ष की ओर से कांग्रेस ने आरोप लगाया, जो पैकेज घोषित किया उसमें किसान के लिए कुछ नहीं है उनके लिए यह सिर्फ जुमला पैकेज ही साबित हो रहा है।
किसान के लिए जुमला पैकेज :
कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने शुक्रवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि, PM मोदी ने दो दिन पहले जिस आर्थिक पैकेज को देश को कोरोना संकट के बीच घोषित किया उसमें दावा किया गया कि इससे किसान भी खड़ा हो सकेगा और खेती-बाड़ी का उसका संकट समाप्त हो जाएगा, लेकिन यह घोषणा किसान के लिए सिर्फ 'जुमला पैकेज' ही साबित हुआ है।
पैकेज 'वादों के सब्जबाग' के अलावा कुछ नहीं है, इसमें किसान की कोई मदद नहीं हो रही है। यह पैकेज हकीकत से बहुत दूर है इसने देश के किसान को निराश किया है। लॉकडाउन के कारण बेहाल किसान को सरकार मरहम लगाने की जगह घाव दे रही है और उसको कर्ज के जंजाल में धकेल रही है। इस घोषणा से यह भी साफ हो गया है कि, मोदी सरकार न किसान की पीड़ा समझती और न ही खेती की समस्या की उसे जानकारी है।रणदीप सिंह सुरजेवाला
सरकार को खेती बाड़ी की समझ नहीं :
प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आगे ये भी कहा कि, इस सरकार को खेती-बाड़ी की कोई समझ ही नहीं है, इसलिए खेती के नाम पर किसान को सब्जबाग दिखा रही है और हकीकत में उसके हिस्से कुछ नहीं आ रहा है। 2016 के किसान सर्वेक्षण के अनुसार, देश में 14.64 करोड़ किसान हैं, जिनमें से सरकार ने अभी तक 8.22 करोड़ किसानों को ही किसान सम्मान निधि के लिए चिन्हित किया है, यानी 6.42 करोड़ किसान तो चिन्हित ही नहीं हो पाये। मोदी सरकार कहती है कि, इन्हें 6000 रुपए प्रतिवर्ष दिये जा रहे हैं। मगर सच्चाई यह है केंद्र सरकार ने खेती का लागत मूल्य पिछले पांच वर्षों में लगभग 15,000 रुपए प्रति हेक्टेयर बढ़ा दिया है।
सुरजेवाला ने कहा कि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कहती हैं देश में तीन करोड़ छोटे किसान यानी जिनके पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन है, उनको चार लाख करोड़ रुपए का फसली लोन उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की गयी है, लेकिन शायद उनको पता ही नहीं है देश में 2016 में हुई कृषि गणना के मुताबिक, 10 करोड़ मार्जिनल किसान हैं जो एक हेक्टेयर से कम भूमि जोतते हैं, तो फिर सात करोड़ मार्जिनल किसानों का क्या होगा?
आगे उन्होंने ये भी कहा कि, किसान की कुल फसल उत्पादन का सरकार मुश्किल से 25-30 प्रतिशत ही न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर खरीदती है। इसमें भी खासकर गेहूं और धान की ही खरीद की जाती है, क्योंकि इसे राशन प्रणाली के माध्यम से वितरित किया जाता है। उनका कहना था कि, 2019-20 में रबी एवं खरीफ फसल का कुल उत्पादन 26.9 करोड़ टन हुआ जबकि सरकार ने मात्र 7.19 करोड़ टन अनाज की खरीद की। इसका मतलब कि बाकी फसल किसानों ने बाजार में बेची लेकिन कोरोना संकट के चलते बाजार तो उपलब्ध ही नहीं थे तो इस स्थिति में किसान को स्वाभाविक रूप से ही भारी संकट उठाना पड़ा।
2020-21 के रबी सत्र में गेहूं का अनुमानित उत्पादन 10 करोड़ टन है जिसकी 11,925 रुपए प्रति कुंतल की एमएसपी लागत 1,92,500 करोड़ रुपए होगी, लेकिन सरकार एमएसपी सिर्फ 35 प्रतिशत यानी महज 350 लाख टन गेहूं की ही खरीद कर रही है। बाकी फसल का किसान को नुकसान ही होना है।रणदीप सिंह सुरजेवाला
सुरजेवाला का कहना है कि, ''सच्चाई यही है कि इस पैकेज से किसान और खेत मजदूर के हिस्से में कुछ नहीं आया है और केंद्र सरकार को यह पैकेज केवल 'जुमला घोषणा पैकेज' साबित हुआ है। इससे न किसान को राहत मिलेगी, ना खेत मजदूर को राहत मिलेगी। किसान और खेत मजदूर आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां वो मोदी सरकार से निराश भी है और अपने आपको ठगा हुआ भी महसूस करता है।"
डिस्क्लेमर: यह आर्टिकल न्यूज एजेंसी फीड के आधार पर प्रकाशित किया गया है। सिर्फ शीर्षक में बदलाव किया गया है। अतः इस आर्टिकल अथवा समाचार में प्रकाशित हुए तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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