राज एक्सप्रेस। क्या आपने कभी इस बात पर विचार किया है कि, जो फिल्में और टी.वी शोज़ दर्शकों को दिखाए जा रहे है इससे समाज पर क्या प्रभाव पड़ा रहा है। किसी भी फिल्में और टी.वी शोज़ के बढ़ते प्रभाव से हम परिचित है ये समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। इसका असर या प्रभाव हमारे समाज और प्रत्येक वर्ग पर किस प्रकार से पड़ता है या आपने कभी विचार किया है कि, जो दर्शक वर्ग इन शोज़ या फिल्मों को देख रहे है क्या उसकी मानसिक स्थिति इन कथावस्तु को देखने और समझने के लिए सक्षम है या उसकी ग्राह क्षमता कैसी है।
मानसिक सोच का सच्चा दर्शक कौन ?
क्या वाकई दर्शक वर्ग जागरुक होकर कथावस्तु को समझ रहा है या उसे गलत पहलुओ मे लेकर विचार कर रहा है। अगर यह बात कि जाए की टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम "सावधान इंडिया या क्राइम पेट्रोल "जैसे टीवी शोज़ जो दर्शकों को जागरुक करने की बात करते है, वही इन्हीं शोज़ से घटनाओं के बढ़ने की खबरे अक्सर मीडिया में आती है। इस बात से यह समझ आता है कि, क्या दर्शक वर्ग जागरुक होकर इन शोज़ को देख रहा था या उसमे दिखाए गए गलत तरीको को अपना रहा था यहां फिल्मो की स्थिति भी यही कहती है।
फिल्मो के प्रभाव का कारण
आइये हम बात करते है हाल ही में आई शाहिद कपूर की फिल्म 'कबीर सिंह' को उनके फैंस ने काफी पसंद किया है लेकिन वहीं कुछ लोगों ने फिल्म पर सवाल भी उठाए। शाहिद कपूर की फिल्म 'कबीर सिंह' को भी आलोचना सहनी पड़ रही है। जिसका कारण फिल्म में दिखाई गई कथावस्तु पुरूष वर्ग को श्रेष्ठ दिखाकर महिलाओ को कम आंकना, यदि फिल्म का हीरो मनमानी से हीरोइन को पा लेना चाहता है। तो दर्शक इस कथावस्तु को किस रुप मे देख रहा है।
दर्शक इस कथावस्तु को किस रुप मे देखेगा
क्या इस बात को समझ रहे है कि, दर्शक इस कथावस्तु को किस रुप मे देख सकते है 'यह गलत है या सही' यहां भी मानसिक स्थिति का जागरुक होना आवश्यक है नहीं तो महिलाओ के साथ घटनाए होना आम है। जहां अध्ययन टीवी शोज़ और फिल्मो की लोकप्रियता का किया जाता है क्या वहां दर्शकों की मानसिक स्थिति का अध्ययन भी किया जाता है इस बात पर विचार करना हमारे देशहित के लिए आवश्यक है
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