निमोनिया वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है।
सांस लेने में कठिनाई और खांसी इसके मुख्य लक्षण हैं।
बार-बार निमोनिया बना सकता है फेफड़ों में घाव।
इम्यून सिस्टम हो जाता है कमजोर।
राज एक्सप्रेस। कोरोना के बाद चीन में एक नई बीमारी ने कहर बरपाया है, जिसे निमोनिया बताया जा रहा है। वैसे तो इसकी पहचान नहीं हो पाई है, लेकिन इसके प्राथमिक लक्षण निमोनिया की तरह हैं, जिसमें बच्चों को खांसी, जुकाम और सांस लेने में तकलीफ हो रही है। बता दें कि निमोनिया बच्चों में होने वाली कॉमन रेस्पिरेट्री प्रॉब्लम है, जो ज्यादातर बच्चों के नाक और गले में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और वायरस के कारण होती है। वैसे तो एंटीबायोटिक दवाओं की मदद से निमोनिया ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह बार-बार हो, तो लंबे समय में इसके खराब परिणाम दिखने लगते हैं। यहां हम आपको वो 4 स्थितियां बता रहे हैं, जब निमोनिया बच्चे के फेफड़ों पर बुरा असर डाल सकता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि निमोनिया आपके छोटे बच्चे के फेफड़ों को किस हद तक प्रभावित कर सकता है। अगर निमोनिया पूरी तरह से ठीक न हो, तो यह फेफड़ों में घाव कर सकता है। इससे फेफड़ों के फैलने और सिकुड़ने की क्षमता कम हो जाती है। जिसके चलते शरीर का यह अंग ठीक से काम नहीं कर पाता और बच्चे को लंबे समय में सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।
बच्चों में निमोनिया ही आगे चलकर अस्थमा की वजह बनता है। दरअसल, इस समस्या से एयरवेज में सूजन पैदा होती है, जिससे बच्चे अस्थमा के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाते है। इससे बच्चे के गले में घरघराहट और खांसी लगातार बनी रहती है।
चूंकि, निमोनिया फेफड़ों का ही संक्रमण है। इसलिए यह छोटे बच्चों के विकास में रुकावट डाल सकता है। इनका विकास ठीक से न होने पर फेफड़ों का आकार छोटा रह जाता है। जिसे हाइपोप्लास्टिक कहते हैं। अगर उनके फेफड़ों के विकसित होने पर ध्यान न दिया जाए, तो हाइपोप्लास्टिक फेफड़े वाले बच्चे जीवन में पहले कुछ दिनों में ही मर जाते हैं।
बच्चे को बार-बार होने वाला निमोनिया उसकी इम्यूनिटी को कमजोर बनाने के लिए पर्याप्त है। इससे फेफड़ों में संक्रमण की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इसलिए जिन बच्चों को निमोनिया होता है, उनके फेफड़ों की देखभाल करना बहुत जरूरी है। वरना कई जटिलताएं उन्हें घेर सकती हैं।
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