राज एक्सप्रेस। शारदीय नवरात्रि के छठे दिन माता शक्ति के छठे स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा और अर्चना की जाती है। नवरात्रि के हर दिन की तरह देशभर में इस दिन की भी वैसी ही धूम देखने को मिलती है। माता कात्यायनी को लेकर हिंदू मान्यता है कि यदि कोई सच्चे भाव और श्रद्धा से माता की पूजा करता है तो उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति होती है। माता के इस रूप को लेकर यह कहते है कि माता ने कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था। जिसके बाद इन्हें माता कात्यायनी कहा गया। चलिए जानते हैं माता के रूप और शक्तिपीठ के बारे में।
कैसा है माता का रूप ?
शास्त्रों के अनुसार माता कात्यायनी का रंग सोने की तरह अत्यधिक चमकीला होता है। माता की चार भुजाएँ हैं। जिनमें ऊपर वाला दायाँ हाथ अभय मुद्रा में, नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में, ऊपर वाला बायां हाथ खड़ग लिए तो नीचे वाले हाथ में कमल है। माता का वाहन सिंह है।
माता का मंत्र :
चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी।।
मंत्र का अर्थ :
चंद्रहास की भांति देदीप्यमान, शार्दूल अर्थात शेर पर सवार और दानवों का विनाश करने वाली मां कात्यायनी हम सबके लिए शुभदायी हो।
माता की शक्तिपीठ के रूप :
जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनका क्रोध शांत करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को टुकड़े कर दिए थे। सती के शरीर के अंग और आभूषण जहां भी गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए।
मंगल चंडिका :
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से 16 किमी गुस्कुर स्टेशन के पास उज्जयिनी में माता की दायीं कलाई गिरी थी।
त्रिपुरा :
त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव के माताबाढ़ी पर्वत पर माता का दायां पैर गिरा था।
चट्टल भवानी :
बांग्लादेश के चिट्टागौंग के सीताकुंड स्टेशन के पास चंद्रनाथ पर्वत पर चट्टल में माता की दायीं भुजा गिरी थी।
भ्रामरी शक्तिपीठ :
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी में माता का बायां पैर गिरा था।
कामख्या :
असम के गुवाहाटी में कामगिरि क्षेत्र में नीलांचल पर्वत पर माता की योनि गिरी थी।
ललिता :
उत्तरप्रदेश के इलाहबाद के संगम तट पर माता के हाथ की ऊँगली गिरी थी।
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