वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है भारतीय सम्वत व काल गणना सांकेतिक चित्र
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वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है भारतीय सम्वत व काल गणना

आज से विक्रम संवत 2079 का श्रीगणेश। नया वर्ष देशवासियों के लिए मिलाजुला रहेगा। घरों पर लगाएं ध्वजा, नीम की कोपलों का सेवन करें।

Nitranjan Singh Ranawat

इंदौर, मध्यप्रदेश। शनिवार से हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2079 का श्रीगणेश हो रहा है। इसे लेकर दो साल बाद एक बार फिर शहर में उत्सवी उल्लास छाएगा। एक तरफ नौ दिनी चैत्र नवरात्र की शुरुआत होगी, वहीं इस दिन महाराष्ट्रीयन समाज गुड़ी पड़वा हर्षोल्लास से मनाएगा। सिंधी समाज चेटीचंड पर भगवान झूलेलालजी का पल्लव अरदास करेगा और शोभायात्रा निकालेगा। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ीपड़वा) को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की इसीलिए इसे वर्ष प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है। इस दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वही वर्ष का राजा कहलाता है। अत: इस वर्ष राजा शनि अर्थात न्याय के देवता है। नया वर्ष देशवासियों के लिए मिलाजुला रहेगा। इस दिन घरों पर धर्म ध्वजा लागने के साथ गुड़-धनिया और नीम की कोपलों का सेवन करना उत्तम रहता है।

उक्त जानकारी शोध निदेशक भारद्वाज ज्योतिष एवं आध्यात्मिक शोध संस्थान के आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने दी। उन्होंने बताया कि, बताया कि नवीन सम्वत्सर आरम्भ करने की विधि यह है कि जिस राजा या नरेश को अपना सम्वत आरम्भ करना हो उसे प्रजा को ऋण मुक्त करना होता है। इस शास्त्रीय विधि का अक्षरश: पालन उज्जनियी के सम्राट विक्रमादित्य ने किया था। अत: उन्हीं के नाम से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ नववर्ष का नाम विक्रम प्रारम्भ हुआ। नववर्ष का मन्त्रिमण्डल इस प्रकार है

  • नववर्ष का राजा शनि

  • मंत्री गुरु

  • सस्येश (ग्रीष्मकालीन फसलों के स्वामी) शनि

  • धान्येश (खाद्य मंत्री) शुक्र

  • मेघेश (वर्षा के स्वामी) बुध

  • रसेश चन्द्रमा

  • नीरशेष (धातुओं के स्वामी ) शनि

  • फलेश (फलों के स्वामी) मंगल

  • धनेश( वित्तमंत्री) शनि

  • दुर्गेश (सेनापति -रक्षा मंत्री) बुध होंगे।

इस प्रकार मंत्रीमण्डल में चार महत्वपूर्ण पद शनि को प्राप्त हुए है अर्थात मंत्रिमंडल में शनि का आधिपत्य रहेगा। पूरे दशाधिकारियों में पांच पद शुभ व पांच पद अशुभ ग्रहों को प्राप्त हुए है। अत: नववर्ष देशवासियों के लिए मिश्रित फलदायी रहेगा।

छह ऋतुओं का पूर्ण चक्र संवत्सर :

आचार्य पण्डित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया कि सृष्टि की रचना व संहार का कारक काल है। ये ही शुभ एवं अशुभ स्तिथियां पैदा करता है। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार जो काल विभाग सभी ऋतुओं व प्राणियों का आधार है वही सम्वत्सर कहलाता है। सम्वत्सर से तात्पर्य समस्त छ: ऋतुओं का एक पूर्ण चक्र। कालगणना में सम्वत्सर की ही प्रधानता है। हमारी कलगणना निर्दोष व वैज्ञानिक भी है। भारतीय विक्रम सम्वत्सर चैत्र मास व वसन्त ऋतु से प्रारम्भ होता है।

आचार्य शर्मा वैदिक के अनुसार शास्त्रों की मान्यता है कि गुड़ीपड़वा (वर्षप्रतिपदा) को अपने अपने घरों में ध्वजा लगाना चाहिए। ध्वजा ऐश्वर्य व विजय का प्रतीक है। आज के दिन वर्ष के स्वामी अर्थात ब्रह्माजी का पूजन भी करना चाहिए। प्रात: तेल लगाकर स्नान करने का भी महत्व बताया गया है। प्रतिपदा पर नीम की कच्ची कोपलों के साथ हींग, जीरा, नमक, अजवाइन, कालीमिर्च के सेवन का भी महत्व बताया गया। आयुर्वेद की मान्यता है कि इनके सेवन से वर्षभर निरोगता बनी रहती है।

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