पर्युषण पर्व पर अयोध्या नगर जैन मंदिर में भव्य झांकी का आयोजन Raj Express
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पर्युषण पर्व पर अयोध्या नगर जैन मंदिर में भव्य झांकी का आयोजन

पर्यूषण पर्व (Paryushan Festival) परवान पर है, दिगंबर जैन समाज से जुड़े लोग इस पर्व को उल्लास के साथ मना रहे हैं। ऐसे में भव्य झाकियों का आयोजन किया गया।

Sandeep Jain

राज एक्सप्रेस। पर्यूषण पर्व परवान पर है, दिगंबर जैन समाज से जुड़े लोग इस पर्व को उल्लास के साथ मना रहे हैं। ऐसे ने अयोध्या नगर जैन मंदिर में पर्युषण पर्व के खास मौके पर भव्य झांकियों का आयोजन किया गया है। इस दौरान की कई तस्वीरें भी सामने आई हैं।

लोक क्या है:

लोक का न कोई करने वाला है, न हरने वाला है, ये लोक अनादि काल से है, ये लोक अनंत काल तक रहेगा। अनन्तं जीव अपने कर्मो के वश में आकर अनंत काल से इस लोक में भटक रहे है, तो आइए हम आपको लेकर चलते है इन लोकों के भव्य प्रदर्शन की और जानते है, इन लोकों की रचना हमारी भव्य प्रदर्शनी के माध्यम से।

अधोलोक लोक:

अधोलोक लोक का निचला भाग अधौलोक कहलाता है, इसकी ऊंचाई एवं मोटाई 7 राजू है, यह नारकियो का निवास स्थान है इसी कारण से इसे नरक भी कहा जाता है।पाप अथवा बुरे कर्म करने वाले जीव इस लोक में आते हैं। इस लोक में अनेक तरह की प्रताड़नाओं को भोगने बाद भी यह मृत्यु को प्राप्त नहीं होती।

पहला, दूसरा, तीसरा चौथा और पांचवे नरक का ऊपरी भाग अत्यंत गरम है। पांचवे नरक का नीचे का, छठा और सातवा नरक भयंकर ठन्डे है। इन सभी नार्को में पहले से सातवे नरक तक जाते हुए वेदना अवगाहना, आयु सब बढ़ते चलते है और इसके अंत में निगोद है, जहां पर भी जीव को अत्यंत वेदना का भोग करना पड़ता है!

अधोलिक के ऊपर मध्य लोक है, जहां पर हम और आप रहते है मध्य लोक में असंखायत द्वीप और असंखत समुद्र है। हमारा निवास पहले द्वीप "जम्बूद्वीप" के दक्षिण में स्थित भारत क्षेत्र के आर्यखंड में भारत वर्ष माना जाता है! यहां रहने वाले जीव अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग तथा नरक लोक में जाते हैं। तो आइए हम चलते है स्वर्ग की ओरमध्य लोक के ऊपर लोक के अंत तक उद्धव लोक है।

उद्धव लोक में वैमानिक देवो का आवास है:

देवगति नाम कर्म के उदय से प्राप्त अवस्था को देव गति कहते हैं। जो निरूपम क्रीड़ा का अनुभव करते हैं, वे देव हैं।

देव चार प्रकार के होते हैं - भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। देवों का शरीर वैक्रिय होता है। वह उत्तम परमाणुओं द्वारा निर्मित होता है। उसमें हाड़, मास, रक्त आदि नहीं होते हैं। मरने के बाद यह शरीर कपूर की भांति उड़ जाता है। देवों के उत्पन्न होने का एक नियत स्थान देवशय्या होता है। देव और नारक का जन्म उपपात कहलाता है। देवता में पांच पर्याप्तियां पाई जाती है। उनकी भाषा और मन एक ही होता है।

देव आयुष्य बंध के कारण - सराग संयम, संयमासंयम (श्रावक), बाल तपस्या, अकाम निर्जरा।

हम आशा करते है की आप सभी को हमारी यह प्रदर्शनी मनभावन लगी होगी। इस प्रदर्शनी को सहयोग देने के लिए समस्त श्रमण संस्कृति श्री संघ आप सभी का पूर्ण मन से धन्यवाद करता है।

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