ग्वालियर, मध्यप्रदेश। विद्या की देवी मां सरस्वती का जन्मोत्सव माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी 5 फरवरी को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाएगा। इस मौके पर शहर में सामूहिक विवाह समारोह सहित सरस्वती पूजन के अनेक कार्यक्रम होंगे। यहां बता दें कि बसंत पंचमी के मौके पर कोरोना के सर्तक रहने की हिदायत देकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मेहमानों की संख्या को सीमित रखने का प्रतिबंध हटा दिया है। अब लोग और भी अधिक धूमधाम से सभी रिश्तेदारों एवं मित्रों को बुलाकर आयोजन कर सकेंगे।
यह दिन ऋतुओं के राजा बसंत के आगमन का पहला दिन होता है। इस दिन से प्रकृति की सुंदरता में निखार आ जाता है और ठंड का प्रकोप कम होता जाता है। इस दिन कामदेव तथा रति की पूजा करने का भी विधान है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन देवी सरस्वती पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था। विद्याज्ञान, संगीत और ललित कलाओं में दक्षता प्राप्ति के लिए बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। प्राचीन समय में विद्या प्राप्ति के लिए गुरुकुल जाने का विधान अथवा विद्या आरंभ करने का विधान भी इसी दिन से था। भगवान श्रीराम भी बसंत पंचमी के दिन से गुरुकुल गए थे।
ज्योतिषाचार्य पंडित गौरव उपाध्याय के अनुसार बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इस दिन विद्यारंभ, यज्ञों पवीत धारण करना, व्यापार आरंभ करना, नया वाहन खरीदना, खरीदारी, गृह प्रवेश आदि को शुभ माना जाता है। इन सभी कार्यो के लिए पंचांग शोधन की आवश्यकता नहीं होती है। बसंत पंचमी अबूझ महूर्त है, इसलिए देशाचार और लोकाचार के अनुसार बसंत पंचमी को विवाह किए जाते हैं। पंचमी तिथि का प्रारंभ 5 फरवरी को सुबह 3.47 से होगा तथा समापन 6 फरवरी को सुबह 3:47 पर होगा अत: 5 फरवरी को पूरे दिन पंचमी तिथि रहेगी। पूजन करने के लिए दोपहर का समय सबसे उपयुक्त होता है। अत: दोपहर में ही बसंत पंचमी का पूजन करना चाहिए।
पूजन विधि :
मां सरस्वती की प्रतिमा को पीले वस्त्र पर स्थापित करें। रोली हल्दी, केसर, अक्षत, पीले फूल, पीली मिठाई, दही मिश्री, पीले कपड़े आदि से पूजन करें एवं स्वयं पीले वस्त्र धारण करें पीले वस्तुएं दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा :
प्राचीन काल में माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन पितामह ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की आज्ञा से सृष्टि की रचना की तथा उसके पश्चात वे सृष्टि को देखने निकले उन्हें सर्वत्र उदासी दिखी, सारा वातावरण उन्हें ऐसा दिखा जैसे किसी के पास वाणी ना हो। सुनसान सन्नााटा, उदासी भरा माहौल देखकर उन्होंने इसे खत्म करने के लिए अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे एक देवी प्रकट हुई, जिसके चार हाथ थे उनमें से दो हाथों में वीणा पकड़ी हुई थी तथा एक हाथ में पुस्तक और एक हाथ में माला थी। तब ब्रह्माजी के संकेतों को इस देवी ने वीणा बजाकर जीवों को स्वरों का ज्ञान प्रदान किया इसी कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा तथा वह विद्या और संगीत की देवी कहलाई उसी दिन से बसंत पंचमी पूजन की प्रथा चली आ रही है। इस दिन विद्यार्थी पुस्तक तथा पाठ सामग्री आदि की पूजा करते हैं।
माधव बाल निकेतन में संत समागम :
माधव बाल निकेतन एवं वृद्ध आश्रम के चेयरमैन नूतन श्रीवास्तव ने बताया कि कल बसंत पंचमी के पावन पर्व पर माधव बल निकेतन एवं वृद्ध आश्रम लक्ष्मीगंज में संत समागम होगा। सबसे पहले मां सरस्वती जी का पूजन किया जाएगा एवं उनको पीले वस्त्र धारण कराए जाएंगे। संत समागम में संतोष गुरुजी ढोली बुआ महाराज, जेपी पाठक, भागवत आचार्य पंडित घनश्याम दास शास्त्री बाल संत राधा कृष्ण दास विशेष रुप से उपस्थित रहेंगे कार्यक्रम दोपहर 12 बजे से शाम को 4 बजे तक चलेगा।
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