गर्भवती महिलाओं के लिए होता है ग्रुप बी स्ट्रैप टेस्ट।
इससे मां के योनि और मलाशय क्षेत्र में होती है बैक्टीरिया की पहचान।
गर्भावस्था के 35वें और 37वें सप्ताह के बीच किया जाता है यह टेस्ट।
पॉजिटिव रिजल्ट आए, तो बच्चे में बैक्टीरिया के पहुंचने का खतरा बढ़ता है।
राज एक्सप्रेस। गर्भावस्था में होने वाली मां को कई तरह के टेस्ट कराने पड़ते हैं। इससे बच्चे के डेवलपमेंट और उनकी सेहत को ट्रैक किया जा सकता है। कुछ टेस्ट मां और बच्चे के लिए बहुत जरूरी होते हैं। आज हम आपको एक ऐसे टेस्ट के बारे में बताएंगे, जिसे कराने की सलाह डॉक्टर दे रहे हैं। वो है ग्रुप बी स्ट्रैप टेस्ट। गर्भवती महिलाओं में GBS (Group B Streptococcus) बैक्टीरिया देखने के लिए यह टेस्ट कराया जाता है। बता दें कि ग्रुप बी स्ट्रैप एक प्रकार का बैक्टीरिया है, जो महिलाओं के पाचन तंत्र, यूरिनरी ट्रेक्ट और जननांग क्षेत्र में पाया जाता है।
आंकड़ों के मुताबिक लगभग 25% गर्भवती महिलाओं को GBS होता है, लेकिन वे इस बारे में नहीं जानतीं। लेकिन GBS से पीड़ित गर्भवती महिला नॉर्मल डिलीवरी के दौरान बैक्टीरिया को अपने बच्चे तक पहुंचा सकती है। जो बच्चे के जीवन के लिए खतरा बन सकता है। तो आइए जानते हैं ग्रुप बी स्ट्रेप टेस्ट के बारे में सबकुछ।
चाइल्ड बर्थ एजुकेटर भारती गोयल ने अपने इंस्टाग्राम पर ग्रुप बी स्ट्रैप टेस्ट को लेकर एक वीडियो शेयर किया है। वह बताती हैं कि जीबीएस एक सामान्य बैक्टीरिया है, जो हमारी आंतों, मलाशय और योनि में पाया जाता है। वैसे तो इससे कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन यह बच्चे में डिलीवरी और जन्म के दौरान समस्याएं पैदा कर सकता है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्सटेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को जीबीएस टेस्ट जरूर कराना चाहिए।
यह टेस्ट आमतौर पर गर्भावस्था के 36वें या 37वें सप्ताह में किया जाता है। अगर आपको 36 सप्ताह से पहले लेबर पेन शुरू हो जाता है, तो उस समय टेस्ट किया जा सकता है। अगर डॉक्टर को बच्चे में संक्रमण के लक्षण दिखते हैं, तो वे बच्चे का भी ग्रुप बी स्ट्रैप टेस्ट कर सकते हैं।
बुखार, ठंड लगना और थकान।
सांस लेने में दिक्क्त।
छाती में दर्द।
मांसपेशियों की जकड़न।
बुखार आना।
खाना खाने में कठिनाई।
चिड़चिड़ापन।
सांस लेने में दिक्कत होना।
कमजोरी लगना।
ये लक्षण बहुत जल्दी गंभीर रूप ले लेते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नवजात शिशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। बता दें कि ग्रुप बी स्ट्रेप संक्रमण के कारण बच्चे को सेप्सिस, निमोनिया और मेनिनजाइटिस जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
अगर आप प्रेग्नेंट हैं, तो डॉक्टर स्वैब या यूरिन टेस्ट कराने के लिए कह सकता है। इसके अलावा ब्लड टेस्ट या स्पाइनल टैप भी होता है।
स्वाब या यूरिन टेस्ट से आपको कोई खतरा नहीं है। ब्लड टेस्ट के बाद बच्चे को हल्का दर्द या चोट लग सकती है, लेकिन यह तुरंत ठीक हो जाता है। स्पाइनल टैप के बाद आपके शिशु को कुछ दर्द महसूस हो सकता है। लेकिन यह भी बहुत लंबे समय तक नहीं रहता।
अगर आपका टेस्ट पॉजिटिव आए, तो इसका मतलब है कि स्ट्रैप बैक्टीरिया नवजात शिशु के शरीर में पहुंच रहा है। ऐसे में डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज करके आपके बच्चे में जीबीएस संक्रमण को रोकते हैं। जबकि निगेटिव रिजल्ट का मतलब है कि बच्चे को संचरण का जोखिम कम है। हालांकि, डिलीवरी के दौरान जीबीएस पॉजिटिव महिलाओं को हर चार घंटे में पेनिसिलिन दी जाती है। इस तरह के ट्रीटमेंट से लगभग 90% संक्रमणों को रोका जाता है।
अगर डॉक्टर आपका ग्रुप बी स्ट्रेप पॉजिटिव बताए तो घबराएं नहीं। इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। बल्कि आपके शरीर में पाए जाने वाले नेचुरल बैक्टीरिया इसके लिए जिम्मेदार हैं। ज्यादातर मामलों में, जीबीएस के पॉजिटिव आने पर कोई समस्या नहीं होती और बच्चा स्वस्थ होता है।
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