वायरल संक्रमण इन बातों का रखें ध्यान PANKAJ BARAIYA - RE
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वायरल संक्रमण बच्चों के लिए गंभीर खतरा, इन बातों का रखें ध्यान

बारिश के मौसम में वायरल संक्रमण की आशंका अधिक बढ़ जाती है। प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण खासकर बच्चे वायरल संक्रमण की चपेट में सबसे ज्यादा आते हैं।

Author : Priyanka Yadav

राज एक्सप्रेस। बदलता हुआ मौसम अपने साथ कई प्रकार की बीमारियों को लेकर आता है, जिससे इस बारिश के मौसम में वायरल संक्रमण की आशंका अधिक बढ़ जाती है। प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण खासकर बच्चे वायरल संक्रमण की चपेट में सबसे ज्यादा आते हैं, लेकिन आप अपने बच्चे को इन संक्रमणों की चपेट में आने से वक्त रहते बचा सकते हैं।

वायरल संक्रमण के लक्षण-

  • बुखार रहना।

  • चक्कर आना या फिर ठंड लगना।

  • सिरदर्द व मांसपेशियों में दर्द होना।

  • नाक बंद रहना या इसका बहना।

  • गले में दर्द, खांसी, उल्टी और दस्त होना।

  • कभी-कभी शरीर पर लाल चकत्ते पड़ना।

बच्चों के लिए अधिक गंभीर खतरा 'वायरल संक्रमण'

वायरल संक्रमणों में भी रोटावायरस और एंटरिक वायरल (आंत संबंधी संक्रमण) जैसी बीमारियां बड़ों की तुलना में बच्चों के लिए अधिक गंभीर खतरा पैदा करती हैं। बाल अवस्था के ज्यादातर वायरल संक्रमण ज्यादा गंभीर नहीं होते। इनमें सर्दी लगना, नाक बहना, आंखों से पानी निकलना, गले में खराश होना, बुखार होना, त्वचा पर चकत्ते पड़ना और उल्टी व दस्त जैसी विभिन्न बीमारियां शामिल हैं। व्यापक पैमाने पर चलाए गए टीकाकरण के चलते खसरा जैसे गंभीर खतरे पैदा करने वाली कुछ संक्रामक बीमारियां अब कम ही देखने को मिलती हैं।

बच्चों को सुरक्षित रखने के उपाय-

  • रूमाल की जगह टिश्यू पेपर रखें

  • संक्रमित बच्चों से बनाएं दूरी

  • सफाई का ध्यान रखें

  • समय पर टीकाकरण

  • प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करना

  • माता-पिता भी रखें अपना ध्यान

  • बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाएं

रूमाल की जगह टिश्यू पेपर रखें :

अभिभावक आमतौर पर अपने बच्चों की बहती नाक और मुंह बार-बार पोंछने के लिए सूती रूमाल अपने साथ रखते हैं। यह बेहद खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे बच्चे बार-बार संक्रमण के संपर्क में आते हैं। कपड़े के रूमाल की तुलना में भीगे मेडिकेटिड स्किनकेयर वाइप और टिश्यू पेपर त्वचा के लिए ज्यादा कोमल साबित होते हैं और इनकी सबसे अच्छी बात ये है कि इन्हें उपयोग करने के बाद आसानी से फेंका जा सकता है।

संक्रमित बच्चों से बनाएं दूरी :

अभिभावकों को इस बात का ख़ास ध्यान देना चाहिए कि, अपने बच्चों को पड़ोस या स्कूल में खेलते समय उन बच्चों से दूर रखना चाहिए, जो संक्रामक बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। वायरल संक्रामक बचाव के लिए अपने हाथों को अच्छे से धोए और नाखूनों की सफाई करते हुए उचित स्वच्छता बनाए रखना जरूरी है।

सफाई का ध्यान रखें :

मच्छर, मक्खी, खटमल आदि हानिकारक कीटाणुओं व विषाणुओं के सबसे सक्रिय वाहक होते हैं। बच्चे इनका सबसे आसान निशाना होते हैं। मच्छरों से बचाव के लिए अपने आसपास पानी जमा नहीं होने दें। सुबह और शाम के समय बच्चों को घर से बाहर कम ही निकलने दें। अपने आस-पड़ोस में कूड़ा-कबाड़, बेकार कंटेनर और डिब्बे आदि जमा नहीं होने दें, क्योंकि इनमें ही मच्छरों का प्रजनन होता है।

समय पर टीकाकरण :

शिशुओं और बच्चों को जानलेवा संक्रमण और बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण सबसे अच्छा और प्रभावी तरीका है। इसके बावजूद माता-पिता इस पहलू की अनदेखी करते हैं। बच्चों में बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर ही अभिभावक उन्हें टीका लगवाने के लिए हॉस्पिटल ले जाते हैं। डिफ्थीरिया, टेटनस, और हूपिंग कफ (काली खांसी), पोलियो (आईपीवी), रोटावायरस (आरवी), इन्फ्लुएंजा (फ्लू), खसरा, कंठमाला, रूबेला (एमएमआर) से बचाव के लिए बच्चे को शुरू से निर्धारित समय पर बीमारियों से संबंधित टीके अवश्य लगवाएं।

प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत करना :

वायरल संक्रमणों से बचाव करने के लिए बच्चों के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करना सबसे अच्छे तरीकों में से एक है। इसके लिए बच्चों को संतुलित खुराक के साथ पौष्टिक खाना दें। नवजात शिशुओं के लिए मां का दूध सबसे अच्छा पौष्टिक भोजन होता है। ताजा फल और सब्जी हर उम्र के बच्चों के लिए आवश्यक होते हैं। पानी, दूध और फलों के जूस के जरिए बच्चों के शरीर में पानी की मात्रा बनाए रखें। बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए हानिकारक सोडा, चिप्स, चॉकलेट और कुकीज जैसे खाद्य पदार्थ कम-से-कम दें। उनके खान-पान में दलिया व अनाज को प्रमुखता से शामिल करें, क्योंकि इनसे उन्हें बहुत सारे पोषक तत्व मिलते हैं।

बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाएं :

यदि आपके बच्चे में बीमारी के लक्षण 1 सप्ताह से ज्यादा दिखाई दें, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। यह शरीर की तरफ से स्पष्ट तौर पर वायरल संक्रमण के खिलाफ 1 कॉल हो सकती है, जो न्यूमोनिया आदि जैसी गंभीर बीमारी में बदल सकती है। ऐसे समय में बच्चे का रक्त परीक्षण कराकर मलेरिया, डेंगू, टाइफॉएड, चिकनगुनिया, अर्बोवायरस आदि बीमारियों समेत संपूर्ण ब्लड काउंट अवश्य जांच लेना चाहिए। मौसम में बदलाव या भारी बारिश होने के दौरान अभिभावक अमूमन अपने बच्चों की अतिरिक्त देखभाल करते ही हैं, लेकिन यह जानना बेहद अहम है कि बच्चों को अन्य मौसम में भी अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है।

माता-पिता भी रखें अपना ध्यान :

माता-पिता को वायरस से बचाव के लिए अपना भी ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि माता या पिता में से किसी एक को भी संक्रमण होने पर बच्चों के इसकी चपेट में आने की आशंका काफी बढ़ जाती है। कुछ भी खाने से पहले हाथों को साबुन से धोएं खांसते और छींकते समय रूमाल से मुंह और नाक को ढकें। क्योंकि ऐसी जगहों पर जाने पर दूसरों लोगों को भी संक्रमण हो सकता है।

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