दाल प्रोटीन का बेहतरीन सोर्स हैं।
हर दाल को भिगोने का अलग समय।
स्पिल्ट दालों को 4-6 घंटे भिगोना जरूरी।
बीन्स और चनों को 8-10 घंटे भिगोएं।
राज एक्सप्रेस। दाल हमारे भारतीय आहार का जरूरी हिस्सा है। इसके बिना तो कई लोगों का खाना पूरा नहीं होता। हर दिन लोग अलग-अलग तरह की दाल बनाकर खाते हैं। यह एक सुपरफूड है और प्रोटीन का बेहतरीन सोर्स भी। इनमें फाइबर, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन और बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन और कार्ब्स भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जबकि कैलोरी और फैट बहुत कम होता है। आधा कप पकी हुई दाल में हमें 9 ग्राम प्रोटीन मिलता है। खैर, दाल जितनी स्वास्थ्यवर्धक होती है, उतनी ही यह एसिडिटी का कारण भी मानी जाती है। इसी वजह से आयुर्वेद में किसी भी दाल को पकाने से पहले इसे पानी में भिगोने की सलाह दी जाती है। इससे इसमें मौजूद एंटी न्यूट्रिएंट्स नष्ट हो जाते हैं और आपको दोगुना पोषण मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर दाल को भिगोना का अलग टाइम पीरियड होता है। डाइट एक्सपर्ट जूही कपूर ने इंस्टाग्राम पर वीडियो शेयर किया है। इसमें उन्होंने बताया है कि किस दाल को कब तक भिगोना चाहिए। आइए जानते हैं विस्तार से।
कुछ दालों में शरीर में गैस और सूजन पैदा करने की प्रवृत्ति होती है। भिगोने से दाल अंकुरित होती है और अपचनीय बीज को पोषक तत्वों से भरपूर बनाता है। यह एंटी-पोषक तत्वों को बेअसर करने का काम करता है। स्टडीज से पता चलता है कि जिन खाद्य पदार्थों में लेक्टिन और फाइटेट्स होते हैं उन्हें भिगोने और उबालने से इनका असर खत्म हो जाता है और पाचन से जुड़ी समस्याएं कम हो सकती हैं।
स्पिल्ट दालों से हमारा मतलब पीली मूंग दाल, चना दाल, उड़द दाल, तुवर दाल से है। ये टूटी हुई और आकार में छोटी होती हैं, इसलिए इन्हें पकाना आसान होता है। इन्हें अन्य दालों की तरह ज्यादा देर भिगोने की जरूरत नहीं पड़ती। इन्हें आप केवल चार से छह घंटे भी भिगो लेंगे, तो यह आराम से पक जाएगी।
साबुत फलियों में लोबिया, हरी मूंग दाल, कुल्तिह या मोठ जैसी छोटी फलियां शामिल हैं। फलियां आमतौर पर पौधों की फलियां होती हैं और संरचना में पूरी होती हैं। वैसे तो इन्हें अंकुरित करके भी खाया जाता है। लेकिन अगर आप इन्हें भिगोना चाहते हैं, तो 6-8 घंटे तक भिगोना उपयुक्त है।
एक्सपर्ट के अनुसार, बीन्स और चने में सोयाबीन, किडनी बीन्स, बंगाल चना, ब्लैक बीन्स जैसी बड़ी फलियां शामिल हैं। आकार में बड़े अैर सख्त होने के कारण इन्हें भीगने में समय लगता है। इसलिए दाल की इस किस्म को 8-10 घंटे तक भिगोना चाहिए।
दालों को भिगोने से खाना पकाने का समय कम हो जाता है। वहीं इसके पोषक तत्व भी बरकरार रहे हैं।
दालों और फलियों को भिगोकर पकाया जाए, तो इन्हें पचाने में बहुत आसानी होती है। इन्हें खाने के बाद पेट में भारीपन महसूस नहीं होता।
फलियों को सोक करके रखने से यह एंटी-पोषक तत्वों के प्रभाव को कम करता है, जिससे आपको भरपूर पोषण मिलता है।
फलियां खाने के बाद सूजन और पाचन संबंधी परेशानी की संभावना काफी कम हो जाती है।
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