जानें मां शैलपुत्री की पूजा विधि व शुभ मुहूर्त Social Media
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नौ दुर्गा के आगमन से नववर्ष का आरंभ- जानें मां शैलपुत्री की पूजा विधि व शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। तो आइये जानते है कलश स्थापना का सही समय क्या होगा, पूजा विधि व क्‍या है शुभ मुहूर्त...

Priyanka Sahu

Chaitra Navratri 2023 : चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो हर साल चैत्र माह में मनाया जाता है। यह नौ दिनों तक चलता है और इस अवधि के दौरान देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। यह त्योहार हिंदुओं में विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है। नौ दुर्गा के आगमन से आज बुधवार (22 मार्च) से भारतीय नववर्ष का आरंभ हो रहा है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। अब नौ दिनों तक माता रानी के भक्‍त मां शक्ति स्वरूपा जगदंबे की आराधना में लीन रहेंगे। नवरात्रि पर्व मां दुर्गा की आराधना और फल पाने का सबसे बढ़िया दिन होता है।

जानें क्‍या है इस मां दुर्गा की सवारी :

चैत्र नवरात्रि में इस साल 2023 में मां दुर्गा बहुत ही शुभ वाहर नौका पर सवाल होकर आई है, नाव को जल परिवहन का साधन माना जाता है। कहा जाता है कि, जब मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती हैं तो यह अच्छी बारिश और अच्छी फसल का संकेत होते है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि शुरू हो जाते हैं।  तो आइये जानते है, आज नवरात्रि के शुभ अवसर पर कलश स्थापना का सही समय और व शुभ मुहूर्त क्‍या है-

यह है चैत्र नवरात्रि 2023 का शुभ मुहूर्त :

आज सुबह 09 बजकर 18 मिनट तक शुक्ल योग है एवं ब्रह्म योग आज, सुबह 09 बजकर 18 मिनट से कल सुबह 06 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।

चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त- सुबह 06.29 बजे से सुबह 7.40 बजे तक है। अगर इस मुहूर्त में कलश स्थापना न हो पाए तो आप अभिजीत मुहूर्त जो सुबह 11 बजकर 36 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक है। इस मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते है।

नवरात्रि पर नौं दिनों तक माता के अलग-अलग स्‍वरूपों की पूजा होती है। इन दिनों में हर दिन एक विशेष रूप से पूजनीय देवी की पूजा की जाती है। यह देवियों में दुर्गा, काली, चंडी, ब्रह्मचारिणी, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल होती हैं।

पूजा विधि के बारे में भी जानें :

नवरात्रि पर पूजा विधि के बारे में बात करें तो सबसे पहले पूजा स्थान को साफ कर ले। फिर उत्तर-पूर्व की दिशा में मिट्टी के बर्तन में मिट्टी डाले, उसमें जौ बोए एवं नमी के लिए थोड़ा पानी डाले। अब कलश स्थापना के लिए एक लकड़ी का पाटा लें और उस पर नया लाल कपड़ा बिछाएं। ​कलश पर रक्षासूत्र बांधे, रोली का तिलक माला व फूल चढ़ाए, उसमें गंगाजल, अक्षत्, फूल, दुर्वा, सुपारी, सिक्का डालकर पानी से भरें। इसके अलावा नारियल पर रक्षासूत्र लपेटे। कलश स्थापना के बाद सबसे पहले गौरी गणेश की पूजन के बाद अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें और मां दुर्गा का आह्वान करें।

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