टीएमसी, एनसीपी और सीपीआई से छीन गया राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा Syed Dabeer Hussain - RE
भारत

टीएमसी, एनसीपी और सीपीआई से क्यों छीना गया राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा? जानिए क्या कहते हैं नियम?

चुनाव आयोग ने किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने के लिए तीन नियम बनाए हैं। जो भी पार्टी इन तीन नियमों में से एक नियम भी पूरा कर लेती है, उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया जाता है।

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। हाल ही में चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), शरद पंवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को लेकर बड़ा फैसला लिया है। दरअसल चुनाव आयोग ने इन तीनों दलों का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म कर दिया है। वहीं आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया है। हालांकि चुनाव आयोग के फैसले से देश की सियासत गरमा गई है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर चुनाव आयोग किन मापदंडों के चलते इन पार्टियों का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म कर दिया।

वोट शेयर घटने से हुआ नुकसान :

दरअसल हमारे देश में तीन तरह के राजनीतिक दल होते हैं - राष्ट्रीय पार्टी, राज्य स्तरीय पार्टी और क्षेत्रीय पार्टी। चुनावों में प्रदर्शन के आधार पर किसी भी दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया जाता है या फिर यह दर्जा खत्म भी किया जा सकता है। जिन तीन दलों का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म किया गया है, उसकी वजह इनके वोट शेयर में कमी है।

6 प्रतिशत से कम हुआ वोट बैंक :

चुनाव आयोग के अनुसार तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का देशभर में वोट शेयर 6 प्रतिशत से कम हो गया है। इन्हें अपने प्रदर्शन में सुधार के लिए 2 लोकसभा और 21 विधानसभा चुनावों में मौके भी दिए गए। इन चुनावों में तीनों दलों के प्रदर्शन को देखते हुए इनसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा वापस लिया जा रहा है। हालांकि भविष्य में अगर यह पार्टियां अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो इन्हें वापस राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल सकता है।

राष्ट्रीय पार्टी बनने के नियम :

दरअसल चुनाव आयोग ने किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने के लिए तीन नियम बनाए हैं। जो भी पार्टी इन तीन नियमों में से एक नियम भी पूरा कर लेती है, उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया जाता है। यह तीन नियम कुछ इस तरह हैं-

पहला : अगर किसी पार्टी को लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव में 4 राज्यों में 6 फीसदी या उससे अधिक वोट मिल जाएँ।

दूसरा : कोई पार्टी तीन अलग-अलग राज्यों में मिलाकर 11 लोकसभा की सीट जीत ले।

तीसरा : कोई पार्टी चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर ले।

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