आने वाले कुछ समय तक लक्षद्वीप नहीं बन सकता मालदीव
लक्षद्वीप का पर्यावरण है सबसे बड़ा कारण
भौगोलिक और राजनैतिक कारक भी है जिम्मेदार
राज एक्सप्रेस। मालदीव सरकार के 3 मंत्रियों को प्रधानमंत्री मोदी और भारत पर आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद निलंबित कर दिया गया था। मालदीव की इंडिया आउट सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गयी थी और बॉयकॉट मालदीव (#BoycottMaldives) तक ट्रेंड होने लगा था। भारत के बहुत से सेलिब्रिटीज ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स के जरिए, मालदीव की जगह लक्षद्वीप में अपनी छुट्टियों को मनाने का आग्रह किया था। हालाँकि, सोशल मीडिया में छिड़ी बहस के बाद एक सवाल ऐसा है जिसका जवाब शायद मालदीव छोड़ लक्षद्वीप जाने वाले पर्यटकों और देशवासियों के लिए महत्वपूर्ण होना चाहिए। वो प्रश्न है कि, 'क्या वाकई हमारा लक्षद्वीप कभी मालदीव बन भी सकता है या नहीं?' इसका जवाब फिलहाल तो किसी के पास नहीं होगा, क्योंकि, इसके बहुत से बड़े कारण है। चलिए समझते है उन कारणों को।
दोनों ही जगहों में सबसे बड़ा अंतर भूगोल का है। ऐसा इस लिए क्योंकि मालदीव, लक्षद्वीप से लगभग दस गुना बड़ा द्वीपसमूह है। अगर हम कुल क्षेत्रफल की बात करे तो मालदीव का कुल भूमि क्षेत्र 298 वर्ग किलोमीटर है तो, वहीं लक्षद्वीप का कुल भूमि क्षेत्र महज़ 32 वर्ग किलोमीटर है। मालदीव द्वीपसमूह में जहाँ 1192 छोटे-बड़े द्वीप है जिसमे उपद्वीप, एटोल और जलमग्न द्वीप शामिल है। वहीं लक्षद्वीप द्वीपसमूह में महज़ 36 द्वीप है, उन्हीं में भी एटोल, चट्टानें और जलमग्न द्वीप शामिल है। मालदीव के 1192 द्वीपों में से जहाँ 187 मनुष्यों के बसने योग्य द्वीप है तो वहीं लक्षद्वीप के 36 में से महज़ 10 द्वीप बसने योग्य है। लक्षद्वीप में कवरत्ती, अगत्ती, अमिनी, कदमत, किल्टन, चेटलाट, बितरा, एंड्रोट, कल्पेनी और मिनिकॉय यही कुछ द्वीप है जो, मनुष्यों के बसने योग्य है।
भूगोल के आलावा एक और बड़ा कारण जिसकी वजह से लक्षद्वीप फिलहाल आने वाले सालों में मालदीव जैसा नहीं बन सकता वह है 'परिवहन की समस्या'। मालदीव में जहाँ एक तरफ 18 एयरपोर्ट है जिसमे से 5 अंतराष्ट्रीय एयरपोर्ट है। वहीं दूसरी तरफ, लक्षद्वीप में महज़ एक ही एयरपोर्ट है जो कि एयरपोर्ट नहीं हवाई पट्टी है। यह हवाई पट्टी लक्षद्वीप के अगत्ती द्वीप में स्थित है। जिसमे सिर्फ केरल के कोच्चि हवाई अड्डे से एयर इंडिया और अलायन्स एयर के प्लेन उपलब्ध होते है। यह प्लेन आपको केरल के कोच्चि से ही मिलेगा, क्योंकि अन्य भारतीय राज्यों से लक्षद्वीप के लिए कोई फ्लाइट्स नहीं है।
इसके आलावा लक्षद्वीप के लिए कोच्चि के बंदरगाह से 7 यात्री जहाज़ भी चलते है जो 14-18 घंटे में यात्रियों को लक्षद्वीप के द्वीप तक पहुँचाता है। वहीं, अगर हम मालदीव की बात करे तो यहाँ लगभग 16 देशों के लिए डायरेक्ट फ्लाइट्स उपलब्ध होती है। परिवहन समस्या को लेकर 2022 में लक्षद्वीप के निवासियों ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया था। जिसमे लोगों की मांग थी कि, यात्री जहाज़ों की संख्या को बढ़ाया जाए। ऐसे में अगर लक्षद्वीप को मालदीव का विकल्प बनाना है तो परिवहन पर ज़ोर देना होगा, लेकिन यह ध्यान में रखते हुए कि, उस कार्य से लक्षद्वीप की प्राकृतिक चीज़ों पर असर न पड़े।
लक्षद्वीप, भारत के उन 600 क्षेत्रों में आता है, जिसे भारत सरकार द्वारा इको- सेंसिटिव जोन की श्रेणी में डाला गया है। इको-सेंसिटिव जोन वह क्षेत्र होते है जो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्र होते हैं, जिनका उद्देश्य नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र पर मानव प्रभाव को कम करना है। लक्षद्वीप में, विविध मूंगा चट्टानें (Coral Reefs), लैगून और समृद्ध जैव विविधता शामिल है, जो इसे पर्यावरणीय खतरों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए भी लक्षद्वीप में कई ऐसे विवादित विकास परियोजनाओं को हरी झंडी दी गयी है जिसका लक्षद्वीप के निवासियों द्वारा विरोध किया गया है। इसमें से एक है 807 करोड़ की विला परियोजना जिसके अंतर्गत लक्षद्वीप के तीन द्वीप मिनिकॉय, कदमत और सुहेली पर 370 विला बनाएंगे जिसमे से 125 पानी के ऊपर बनाए जाएंगे। इस परियोजना का स्थानियों और वैज्ञानिकों द्वारा विरोध किया गया था। समुद्री जीवविज्ञानी सहित साठ वैज्ञानिकों ने जून 2021 में तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को पत्र लिखकर द्वीपों की रक्षा करने में मदद मांगी थी।
वैज्ञानिकों का कहना था कि,
"पर्यटक रिसॉर्ट बनाने से लक्षद्वीप और उसके आसपास पूरे पारिस्थितिक तंत्र को कुछ गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। कुछ साल पहले प्रशासन ने कावारत्ती, अगत्ती, मिनिकॉय और अमिनी द्वीपों पर तटबंध घाट बनाए थे, जिसमे घाटों के लिए खंभे बनाने के लिए फर्श को ड्रिल किया, जिससे मूंगा चट्टानें और उन क्षेत्रों में सभी जीवन रूप नष्ट हो गए।"
न्यायाधीश आर.वी. रवीन्द्रन आयोग ने भी अपनी 2014 की रिपोर्ट में कहा था कि, सभी द्वीप परियोजनाओं को एकीकृत द्वीप प्रबंधन योजना के मानदंडों का पालन करना होगा। हालाँकि, अपने पर्यटन नीतियों के कारण मालदीव को भी कई पर्यावरण से जुड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। हालत इस हद तक ख़राब है कि, 2021 तक, मालदीव के 90% द्वीपों में गंभीर अपक्षरण हुआ है और देश के 97% हिस्से में अब ताज़ा भूजल नहीं है।
एक आखिरी कारण जिसकी वजह से लक्षद्वीप का मालदीव की तरह बनना मुश्किल है वह उसकी असंतुलित राजनीति। संविधान के अनुच्छेद 239 के तहत लक्षद्वीप, राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक द्वारा शासित होगा जो, वर्तमान में प्रफुल्ल पटेल हैं। वह दादरा और नगर हवेली के भी प्रशासक थे। पटेल का लक्षद्वीप का प्रशासक बनना विवादस्पद था, क्योंकि इससे पहले दादरा और नगर हवेली के प्रशासक रहते हुए, उन्होंने कुछ ऐसे निर्णय लिए थे जिसकी वजह से उनका काफी विरोध हुआ था। वह दिसंबर 2020 में लक्षद्वीप के प्रशासक बने थे। प्रशासक बनने के बाद से ही उनके द्वारा लिए निर्णय सवालों के घेरे में रहे, जिसकी वजह से लक्षद्वीप का माहौल और राजनीति अंसतुलित रही है। पटेल के प्रसाशक बनने के बाद 4 बड़े निर्णयों ने लक्षद्वीप की राजनीती में तहलका मचा रखा है।
4 बड़े निर्णय -
पहला- असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (PASA) का उपयोग करके प्रशासक किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के एक वर्ष तक कैद में डाल सकता है।
दूसरा- पशु संरक्षण विनियमन या गोहत्या विरोधी कानून, जो लक्षद्वीप में गोजातीय जानवरों के वध पर प्रतिबंध लगाता है।
तीसरा- लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन, जो प्रशासक को भूमि अधिग्रहण करने की शक्तियां प्रदान करता है।
चौथा- लक्षद्वीप पंचायत विनियम 2022, जो प्रशासक को पंचायत क्षेत्रों का गठन करने की शक्ति देता है।
पटेल द्वारा लक्षद्वीप में शराब पर प्रतिबंध हटाया जाना भी राजनितिक असंतुलित का कारण बना है, क्योंकि लक्षद्वीप में 97 प्रतिशत आबादी मुस्लिम की है और उनके धर्म में शराब को हराम माना जाता है। हालंकि, मालदीव में भी 96 प्रतिशत मुस्लिम धर्म के लोग रहते है, लेकिन पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने शराब पर किसी तरह का कोई प्रतिबंद नहीं लगाया है।
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