राज एक्सप्रेस। आज भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 13 नए राज्यपालों की नियुक्ति का फरमान जारी किया गया था, जिसमे कुछ राज्यों में राज्यपालों को बदला गया, कुछ नए व्यक्तियों को राज्यपाल बनाया और कुछ को राज्यपाल के पद से हटाया गया है। इस सूची में कई बड़े नेता, रिटायर्ड सेना के जनरल, रिटायर्ड ब्रिगेडियर है लेकिन एक नाम जो आज सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना हुआ है वो है रिटायर्ड जस्टिस अब्दुल नजीर जिन्हे आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया हैं। तो सबसे बड़ा सवाल मन में यह आता है कि आखिर कौन है जस्टिस अब्दुल नजीर और क्यों उनके के राज्यपाल बनाए जाने पर छिड़ रही है सोशल मीडिया में बहस आइए देखते हैं
कौन है जस्टिस अब्दुल नजीर?
जस्टिस अब्दुल नजीर एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश थे जिन्हे 4 जनवरी 2023 को सर्वोच्च न्यायालय के न्याधीश के पद से मुक्त कर दिया गया था। जस्टिस अब्दुल नजीर फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने थे, उससे पहले वह कर्नाटक के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे थे। जस्टिस अब्दुल, भारत के सिर्फ तीसरे ऐसे न्यायाधीश थे जो बिना किसी भी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने ही सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बन गए थे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के पद पर रहते हुए उन्होंने भारत के कई अहम मामलो की सुनवाई कर न्यायाधीश की भूमिका निभाई, जिसके लिए आज उनको आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर बवाल मचा हुआ है।
क्यों छिड़ी है बहस?
जस्टिस अब्दुल नजीर ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के पद पर रहकर कई अहम मामलो में फैसला सुनाया है,लेकिन उन पर आरोप है कि उन्होंने आधे से ज्यादा फैसले भारत सरकार या मोदी सरकार के पक्ष में दिये है। जैसे की अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर और नोटबंदी पर मोदी सरकार के पक्ष में फैसला देना। जस्टिस अब्दुल पर सरकार का पक्षधर होने के आरोप लगाए गए, क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच में जाकर मनु और कौटिल्य कानून का दिग्गज बताया था। सोशल मीडिया पर लोग उनके रिटायर होने के बाद इतनी जल्द गवर्नर बनाए जाने को लेकर भी शक कर रहे है। कुछ बड़े नेता और सोशल मीडिया में लोग यह तक बोल रहे है कि उनको राज्यपाल का पद इसलिए दिया गया है क्योंकि वह मोदी सरकार के करीबी है।
अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि मुद्दे में राम मंदिर के पक्ष में थे
जस्टिस अब्दुल नजीर अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के 2019 के ऐतिहासिक फैसले की 5 जजों की बेंच का भी हिस्सा थे।जिसमें उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की उस रिपोर्ट को सही ठहराया था , जिसमें विवादित क्षेत्र में हिंदू ढांचे के होने की बात कही गई थी। उन्होंने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया और इस तरह आखिरकार 5-0 के फैसले के साथ वर्षों से चले आ रहे विवाद को समाप्त कर दिया गया था।
नोटबंदी को ठहराया सही
2 जनवरी, 2023 को, न्यायमूर्ति नज़ीर ने 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का नेतृत्व किया, जिसने भारत सरकार की 2016 की विमुद्रीकरण योजना को 4:1 बहुमत से बरकरार रखा। वह बहुमत की राय का हिस्सा थे, जिसमें कहा गया था कि विमुद्रीकरण योजना को उचित तरीके से लागू किया गया था।
आरएसएस के मंच पर ऋषि मनु को बताया रोल मॉडल
2021 में जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने एबीएपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कहा था कि "मुझे विश्वास है कि औपनिवेशिक कानूनी व्यवस्था भारत और इसके लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है। अब समय आ गया है कि हमारे पास एक भारतीय कानूनी प्रणाली हो जो भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक लोकाचार में निहित हो। औपनिवेशिक मानस से भारत में न्याय के प्रशासन को मुक्त करने का निश्चित लेकिन कठिन तरीका मनु, कौटिल्य और बृहस्पति जैसी महान हस्तियों द्वारा विकसित कानूनी मानदंडों का अध्ययन करना है।"
तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार को कानून बनाने को कहा
अब्दुल नज़ीर एक बहु-विश्वास पीठ में एकमात्र मुस्लिम न्यायाधीश थे, जिन्होंने 2017 में विवादास्पद तीन तलाक़ मामले की सुनवाई की थी । लेकिन इस सुनवाई में नजीर और एक अन्य न्यायाधीश ने तीन तलाक़ की प्रथा की वैधता को बरकरार रखा था, क्योंकि तथ्य के आधार पर मुस्लिम शरिया कानून के तहत तीन तलाक की अनुमति दी गई है, इसे बेंच ने 3:2 बहुमत से रोक दिया था और केंद्र सरकार से मुस्लिम समुदाय में विवाह और तलाक को नियंत्रित करने के लिए छह महीने में कानून लाने को कहा था। अदालत ने कहा था कि जब तक सरकार तीन तलाक के संबंध में एक कानून नहीं बनाती है, तब तक पति द्वारा अपनी पत्नियों को तीन तलाक कहने पर निषेधाज्ञा होगी।
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