प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। वैसे तो जहाँ प्रयागराज की पहचान धर्म संस्कृति कुंभ तथा शिक्षा को लेकर होती है तो वहीं दूसरी ओर प्रयागराज की पहचान देश की आजादी के आन्दोलन के केंद्र बिन्दु रहने के कारण भी पहचान है। यह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु की कर्म भूमि भी रही,नेहरु के आवास आनन्द भवन मे नेहरु, गांधी और अन्य लोग बैठकर रणनीति बनाते थे, वहीं क्रांतिकारी शहीद चद्रंशेखर आजाद की कर्मभूमि तथा शहीद भूमि भी रही। यही क्रांतिकारी चद्रंशेखर आजाद ने अंग्रेजी पुलिस से अकेले संघर्ष करते हुए अपनी शहादत दी थी।
प्रयागराज में 27 फरवरी 1931 को पुलिस के साथ हुई भीषण मुठभेड़ में महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए थे। पुलिस गार्ड तथा नगर के अनेक गणमान्य नेताओं की उपस्थिति में 28 फरवरी 1931 को आजाद के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार प्रयागराज के रसूलाबाद में गंगा के तट पर किया गया था। शिव विनायक मिश्र ने अन्त्येष्टि संस्कार के पश्चात अस्थियों का संचयन किया और अस्थि कलश के साथ तत्कालीन इलाहाबाद में जुलूस निकाला गया भाषण दिए गए। परन्तु प्रयागराज का संग्राहलय आज भी अमर शहीद चद्रंशेखर आजाद की अस्थि कलश का इंतजार कर रहा है कब अस्थि कलश यहां आए कब जनता के दर्शन के लिए रखा जाए। परन्तु यह अस्थि कलश आज भी लखनऊ के राजकीय संग्राहलय के स्टोर रूम में कैद है।
सेनानायक प्रताप गोपेंद्र ने बताया कि शिव विनायक मिश्र वाराणसी में रहते थे, जो अगले दिन अस्थि कलश लेकर काशी चले गए, तभी से अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की अस्थियां शिवविनायक मिश्र के निवास पर रही। सन 1965 में मध्य प्रदेश के जिला झाबुआ स्थित भाबरा गांव में जहां आजाद का जन्म हुआ था और बाल्यकाल बीता था, मध्यप्रदेश सरकार ने विकास योजना के अंतर्गत शहीद चंद्रशेखर आजाद के नाम से आजाद स्मृति समारोह का आयोजन रामकृष्ण आश्रम के तत्वावधान में किया। अस्थिकलश संग्रहकर्ता शिव विनायक मिश्र निमंत्रण प्राप्त होने पर अस्थि कलश लेकर स्वयं भाबरा गए थे। जहां आजाद के तीन प्रमुख साथी विश्वनाथ वैशम्पायन, भगवानदास माहौर, सदाशिव मलकापुरकर भी उपस्थित थे। उस समय मध्य प्रदेश में अमर शहीद की अस्थियों का अभूतपूर्व स्वागत हुआ था। भाबरा स्थित आजाद की कुटिया में अस्थि कलश रखकर लोगों ने बड़े उत्साह से भावभीनी अस्थिपूजा की थी। सन 1969 को काशी में लहुराबीर चौराहे पर जब आजाद की संगमरमर प्रतिमा लगाई जा रही थी, आजाद की अस्थियों का एक अंश भी प्रतिमा के आधारशिला के नीचे रखा गया था।
प्रताप गोपेन्द्र ने बताया कि 8 दिसंबर 1970 को शिव विनायक मिश्र का स्वर्गवास हो गया। आजाद के अन्यतम क्रांतिकारी साथी अमर शहीद भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह उन दिनों उत्तर प्रदेश के खाद रसद एवं राजनीतिक पेंशन विभाग के राज्यमंत्री थे। जिनके प्रयास से शिव विनायक के 3 पुत्र राजीव लोचन मिश्र, फूलचंद मिश्र, श्याम सुंदर मिश्र ने शहीद आजाद का एक मात्र प्राप्त हस्तलिखित पत्र एवं अस्थिकलश 10 जुलाई 1976 को उत्तर प्रदेश सरकार को सहर्ष सौंप दिया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2 अगस्त 1976 को राजकीय संग्रहालय लखनऊ में लोगों के अवलोकन व श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए अस्थि कलश को रखवाया। जहां अमर शहीद की अस्थियों के भव्य दर्शन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ था। उसके बाद अमर शहीद का अस्थिकलश फिर कभी देखा नहीं गया। प्रताप गोपेंद्र ने बताया कि लखनऊ में 2 अगस्त 2022 को संग्रहालय के वर्तमान निदेशक से अमर शहीद आजाद के अस्थि कलश दर्शनार्थ उन्होंने अनुरोध किया। जहाँ पर ताले के भीतर रखे अस्थिकलश को देखकर बड़ी तकलीफ हुई। अमर शहीद के अस्थि कलश को दर्शक दीर्घा में न रखकर राजकीय संग्राहलय लखनऊ के स्टोर रूम में रखा गया है।
ज्ञातव्य हो कि तत्कालीन मुख्यमंत्री के आदेश पर 3 जुलाई 1976 को आजाद की कोल्ट पिस्तौल लखनऊ संग्रहालय ने इलाहाबाद संग्रहालय को स्थाई प्रदर्शन हेतु सौंप दिया था। वर्तमान में देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। जिससे हर नागरिक देश के लिए शहीद होने महापुरुषों को जान सकें। उसके अंदर राष्ट्रवाद की भावना जागृत हो सकें।उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग किया कि अमर शहीद आजाद के अस्थि कलश को प्रयागराज संग्राहलय में निर्माणाधीन आजाद वीथिका के केंद्र में स्थापित किया जाए।जिससे अमर शहीद के अस्थिकलश का दर्शन प्रयागराज समेत उत्तर प्रदेश की जनता अस्थि कलश का दर्शन कर सकें।
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