isro sun mission launch  Raj Express
भारत

इसरो ने सूर्य की स्टडी के लिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लांच किया आदित्य एल-1 मिशन

Aniruddh pratap singh

राज एक्सप्रेस। चंद्रयान-3 से सफल प्रक्षेपण के बाद इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) अब एक और बड़ी पहल की है। इसरो सूरज के अध्ययन के लिए आज पूर्वाह्न 11.50 पर आदित्य एल-1 सूर्य मिशन को श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से सफलतापूर्वक लांच कर दिया है। इसरो ने आदित्य एल-1 को पीएसएलवी-सी 57 राकेट के माध्यम से लांच किया है। ​आदित्य एल-1 सूर्य के अध्ययन के लिए भारत द्वारा भेजा जाने वाला पहला मिशन है। यह स्पेसक्राफ्ट लॉन्च होने के 4 माह बाद लैगरेंज पॉइंट-1 (एल-1) तक पहुंचेगा। यह एक ऐसा स्थान है, जिस पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता। इस स्थान से सूर्य हमेशा दिखाई देता रहता है। जिसके चलते यहां से सूरज का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। इस मिशन की अनुमानित लागत 378 करोड़ रुपए है।

वायुमंडल के बाहर निकलते ही अलग हुआ पेलोड

इसरो के आदित्य एल1 लॉन्चिंग के बाद अंतरिक्ष यान को कवर करने वाला पेलोड पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलते ही अलग हो गया है। इसरो ने बताया कि इसके तीसरे चरण को भी सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया है। जैसे चंद्रयान-3 मिशन को चांद के अध्ययन के लिए भेजा गया है, ठीक वैसे ही इसरो ने अब आदित्‍य एल-1 को सूर्य के अध्ययन के लिए भेजा है। आदित्‍य एल-1 मिशन के जरिए सूर्य से जुड़ा अध्ययन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि आदित्य एल1 भारत का पहला ऑब्जर्वेटरी-क्लास का स्पेस बेज सौर मिशन है। इससे पहले भारत भास्कर नाम का सैटेलाइट लॉन्च कर चुका है। इसलिए इस बार सूर्य मिशन के लिए आदित्य नाम चुना है। यह सूर्य के 12 नामों में से एक है। 2 सितंबर को आदित्य एल1 की लॉन्चिंग के बाद इसे सूर्य के एल1 प्वाइंट तक पहुंचने में लगभग चार महीने का समय लगेगा, यानी 125 दिन लगेंगे।

लैगरेंज पॉइंट पर खत्म हो जाता है गुरुत्वबल

एल-1 या लैगरेंज-1 पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में एल-1 करहा जाता है। धरती और सूर्य के बीच ऐसे पांच पॉइंट हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल शून्य हो जाता है। इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है, तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहता है। इसमें एनर्जी भी कम लगती है। पहला लैगरेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। जहां इस स्पेसक्राफ्ट को स्थापित किया जाना है। ताकि यह सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सके। इससे रियल टाइम सोलर एक्टिविटीज और अंतरिक्ष के मौसम पर भी नजर रखी जा सकेगी।

सात उपकरणो की मदद से किया जाएगा सूर्य का अध्ययन

आदित्य यान एल1 यानी सूर्य-पृथ्वी के बीच स्थित शून्य गुरुत्व वाले स्थान पर रहकर सूर्य पर उठने वाले तूफानों का अध्ययन करेगा। यह लैग्रेंजियन पॉइंट के चारों ओर की कक्षा, फोटोस्फियर, क्रोमोस्फियर के अलावा सबसे बाहरी परत कोरोना की अलग-अलग वेब बैंड्स से 7 इक्विपमेंट्स के जरिए टेस्टिंग करेगा। आदित्य एल1 के सात इक्विपमेंट्स कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर एक्टिविटीज की विशेषताओं, पार्टिकल्स के मूवमेंट और स्पेस वेदर को समझने के लिए जरूरी जानकारी एकत्र करेंगे। आदित्य एल-1 सोलर कोरोना और उसके हीटिंग मैकेनिज्म का अध्ययन करेगा।

आदित्य एल-1 पर 378 करोड़ रुपए का खर्च

आदित्य एल-1 पर 378 करोड़ रुपए का खर्च आया है। पृथ्वी और सूर्य के बीच दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है। सूर्य किरणों को धरती पर पहुंचने में करीब 8 मिनट लगते हैं। जिस स्थान पर एल-1 को स्थापित किया जाएगा, वह स्थान धरती से 15 लाख किमी दूर है। यह एक ऐसा स्थान है जहां कभी ग्रहण नहीं पड़ता है। यहां से सूर्य हर समय दिखता रहेगा। आदित्य एल-1 को एलएमवी एम-3 राकेट से लांच किया जाएगा और अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाते हुए आगे बढ़ेगा। लांच किए जाने के एक माह बाद यह उपग्रह लैगरेंज पाइंट-1 (एल-1 के समीप होलो आर्बिट में तैनात किया जाएगा और यहां से सूर्य का अध्ययन करेगा। आदित्य एल-1 में सूर्य के अध्ययन के लिए सात उपकरण लगाए वीईएलसी, सूट, अपेक्स, पापा, सोलेक्स, हेल10एस और मैग्नेटोमीटर लगाए गए हैं।

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