हाइलाइट्स :
तेलंगाना के Waqf Board ने 5 स्टार होटल को बताया अपनी प्रॉपर्टी
Waqf Board ने हैदरबाद के होटल मैरियट (Hotel Marriott) बताई अपनी संपत्ति
तेलंगाना हाईकोर्ट दायर की याचिका
कोर्ट याचिका को किया खारिज
Telangana Waqf Board : तेलंगाना में एक हैरतअंगेज़ मामला सामने आ रहा है जहां राज्य के वक़्फ़ बोर्ड (Telangana Waqf Board) ने हैदरबाद क्र 5 स्टार मैरियट होटल (Hotel Marriott) को अपनी संपत्ति बताने वाली एक याचिका तेलंगाना हाईकोर्ट में दाखिल की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है। तेलंगाना हाईकोर्ट वक्फ ट्रिब्यूनल (Waqf Tribunal) को कोई भी प्रतिकूल आदेश पारित करने से रोकते हुए रिट जारी की है।
याचिकाकर्ताओं (Telangana Waqf Board) ने वायसराय होटल्स, जिसे वर्तमान में होटल मैरियट (Hotel Marriott) के नाम से जाना जाता है, ने आंध्र प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड की कार्रवाइयों को चुनौती दी और 1995 के वक्फ अधिनियम की धारा 54 के तहत कार्यवाही शुरू करने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनिल कुमार जुकांति की खंडपीठ ने वक्फ बोर्ड के खिलाफ निषेधाज्ञा जारी करते हुए कहा कि "वक्फ बोर्ड द्वारा कार्यवाही शुरू करना अधिकार क्षेत्र से बाहर है।"
66 साल पुराना है मामला :
असल में यह मामला लगभग 66 पुराना यानी साल 1958 का है जब तेलंगाना के वक्फ बोर्ड ने शुरू में वक्फ अधिनियम 1954 (Waqf Act 1954) के तहत एक जांच की, जिसमें 5 अक्टूबर 1958 को एक प्रस्ताव के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि संपत्ति वक्फ की नहीं थी। हालाँकि, इसके बाद भी कई दावे सामने आए थे।
अब्दुल गफूर नाम के एक व्यक्ति ने 1964 में वापस इस संपत्ति को वक़्फ़ बोर्ड की बताने वाला एक नागरिक मुकदमा दायर किया। 1968 में उच्च न्यायालय के आदेश सहित कानूनी चुनौतियों और अदालती हस्तक्षेपों के बावजूद, वक्फ बोर्ड अपने दावों पर कायम रहा। इन वर्षों में, वक्फ बोर्ड ने नोटिस जारी किए और कार्यवाही शुरू की, सबसे हालिया कार्रवाई 2014 में की गई। पिछले अदालती फैसलों और याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई आपत्तियों के बावजूद, वक्फ बोर्ड ने मामले को आगे बढ़ाया, जिससे वर्तमान मामला सामने आया।
तेलंगाना हाईकोर्ट ने जारी किया अंतरिम आदेश :
मामले की तात्कालिकता और संवेदनशीलता को पहचानते हुए, अदालत (Telangana High Court) ने एक अंतरिम आदेश जारी किया, जिसमें वक्फ ट्रिब्यूनल को चल रही कार्यवाही के दौरान याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी प्रतिकूल निर्णय लेने से रोक दिया गया। अदालत ने वक्फ अधिनियम, 1954 के प्रावधानों का हवाला देते हुए धारा 27 पर प्रकाश डाला, जो वक्फ बोर्ड को यह निर्धारित करने का अधिकार देता है कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं।
तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा कि "वर्तमान मामले में, वक्फ बोर्ड ने 1954 अधिनियम की धारा 27 के तहत एक जांच की और दिनांक 05.10.1958 के संकल्प के माध्यम से निर्धारित किया कि विषय संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है।1954 अधिनियम की धारा 27 के तहत एक बार यह निर्णय लिया गया है कि विषय संपत्ति वक्फ नहीं है और संपत्ति पर वक्फ बोर्ड के लिए इस मुद्दे की दोबारा जांच करना स्वीकार्य नहीं होगा।”
कोर्ट ने आगे कहा कि "याचिकाकर्ताओं को केवल इसलिए कानूनी चोट झेलने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि उनके पास 1995 अधिनियम के तहत वैधानिक उपाय उपलब्ध है, खासकर ऐसे मामले में जहां कार्यवाही की शुरुआत ही कानून में उल्लंघन है।"
नतीजतन, अदालत ने वक्फ बोर्ड द्वारा जारी परिशिष्ट अधिसूचना को रद्द कर दिया और निषेधाज्ञा जारी की, जिसमें बोर्ड को बेदखली की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ाने का निर्देश दिया गया।
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