असल जिंदगी के फुनसुख वांगडू हैं सोनम Syed Dabeer Hussain - RE
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जन्मदिन : असल जिंदगी के फुनसुख वांगडू हैं सोनम, जानिए उनके तीन बड़े आविष्कारों के बारे में

एनआईटी श्रीनगर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सोनम वांगचुक शिक्षा में सुधार और लद्दाख व देश के विकास के लिए काम कर रहे हैं।

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। भारत के प्रसिद्ध अभियन्ता, नवाचारी और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) आज अपना 56वां जन्मदिन मनाने वाले है। 1 सितंबर 1966 को जन्में सोनम वांगचुक को असल जिंदगी का फुनसुख वांगडू भी कहा जाता है, क्योंकि ‘थ्री इडियट’ में अमीर खान का किरदार सोनम वांगचुक से ही प्रेरित होकर लिया गया था। एनआईटी श्रीनगर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सोनम वांगचुक शिक्षा में सुधार और लद्दाख व देश के विकास के लिए काम कर रहे हैं। सोनम वांगचुक को उनके आविष्कारों और चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम चलाने के लिए भी जाना जाता है। आज हम सोनम वांगचुक के तीन बेहतरीन आविष्कारों के बारे में जानेंगे, जिसने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई।

सोलर हीटेड मिलिट्री टेंट :

सोनम वांगचुक ने भारतीय सेना के लिए सोलर हीटेड मिलिट्री टेंट (Solar Heated Military Tent) बनाया है। इसकी खासियत यह है कि भीषण ठंड में भी टेंट के अंदर का वातावरण गर्म ही रहता है। सोनम के अनुसार एक दिन रात 10 बजे जब बाहर का तापमान -14°C था तब टेंट के अंदर का तापमान +15°C था। यानी बाहर के वातावरण के मुकाबले टेंट के अंदर का वातावरण 29°C ज्यादा था। इससे भारतीय सेना को लद्दाख में भीषण ठंड से बचने में मदद मिलेगी। इस टेंट की खासियत यह है कि टेंट पूरी तरह से मेड इन इंडिया, इको फ्रेंडली है और इसका वजन महज 30 किलो है। इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाया जा सकता है।

आर्टिफिशियल ग्लेशियर :

सूखे की समस्या से जूझते लद्दाख के लिए सोनम ने एक आर्टिफिशियल ग्लेशियर (Artificial Glacier) भी बनाया है। इसके जरिए गर्मियों में सिंचाई की जाती है। सोनम ने इस कृत्रिम ग्लेशियर को बर्फ का स्तूप नाम दिया है। इसमें ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसमें किसी मशीन या बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है।

एसईसीएमओएल परिसर :

सोनम वांगचुक स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीएमओएल) के संस्थापक-निदेशक भी हैं। उन्होंने एसईसीएमओएल परिसर को डिजाइन भी किया है। यह परिसर पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चलता है। यहां खाने पकाने या रोशनी के लिए भी सौर ऊर्जा का ही इस्तेमाल किया जाता है। परिसर में जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं होता है।

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