Shaheed Diwas 2023 : हर साल 23 मार्च का दिन भारत में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन हमारे देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए कुर्बान हो गए थे। यही कारण है कि इस दिन पूरा देश इन शहीदों की शहादत को सच्चे दिल से सलाम करता है और इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाता है। हालांकि यह भी सच है कि कोर्ट ने इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा देने के लिए 24 मार्च की तारीख तय की थी, लेकिन अंग्रेजों ने तय समय से एक दिन पहले ही इन्हें फांसी दे दी। क्या आप जानते हैं कि अंग्रेजों ने ऐसा क्यों किया था? चलिए जानते है।
लाला की हत्या का बदला :
दरअसल लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध के दौरान पंजाब पुलिस के सुपरिनटैंडैंट जेम्स ए स्कॉट ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करवा दिया। लाठीचार्ज के चलते लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। ऐसे में लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या कर दी। इसके बाद सेंट्रल एसेंबली बम भी फेंका।
फांसी की सजा :
सेंट्रल एसेंबली में बम फेंकने के आरोप में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा हुई। इसके बाद जॉन सांडर्स की हत्या के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर मुकदमा चला। 7 अक्टूबर 1929 को अदालत ने तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई। फांसी देने के लिए 24 मार्च का दिन तय किया गया।
देशभर में शुरू हुए प्रदर्शन :
दरअसल जैसे ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी की सजा दिन नजदीक आ रहा था, वैसे-वैसे पूरे देश में इनके खिलाफ आक्रोश फैलने लगा था। दूसरी तरह ब्रिटिश अधिकारियों पर भी इनकी फांसी की सजा माफ़ करने का दबाव बढ़ता जा रहा था। जेल के बाहर प्रदर्शनकारियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। इस पूरे घटनाक्रम से अंग्रेज बुरी तरह से डर गए थे। उन्हें लग रहा था कि इनको फांसी की सजा देते समय किसी तरह का विद्रोह ना हो जाए। यहीं कारण है कि अंग्रेजों ने एक दिन पहले ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी।
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