राज एक्सप्रेस। जब कभी देश के अंतरिक्ष विकास में योगदान की बातें सामने आती हैं तो इनमें एक नाम हमेशा सबसे पहले लिया जाता है। वह नाम है प्रोफेसर सतीश धवन का। सतीश धवन देश के उन महान लोगों में शामिल हैं जिन्होंने इसरो को बड़ी पहचान दिलाई है। आज वे भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन देश के अंतरिक्ष विकास में उनका योगदान हमेशा याद किया जाता है। उनके कार्यों को देखते हुए श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के स्पेस सेंटर को उन्हें समर्पित किया गया है। इस स्पेस सेंटर को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के नाम से जाना जाता है। आज यानि 3 जनवरी को सतीश धवन की पुण्यतिथि है। तो चलिए इस दिन आपको सतीश धवन की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं।
द्रव्य गतिकी के पिता :
सतीश धवन का जन्म 25 सितंबर 1920 को श्रीनगर में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई पहले भारत और फिर अमेरिका से पूरी की। इसके बाद वे प्रवाह की विक्षुब्धता और परिसीमा स्तरों के शोध करते हुए आगे बढ़ते गए। वे भारत के मशहूर गणितज्ञ और एरोस्पेस इंजीनियर थे। यही नहीं सतीश को देश में प्रोयगात्मक फ्ल्यूड डायनामिक्स अथवा द्रव्य गतिकी का पिता भी कहा जाता है।
कैसे पहुंचे इसरो तक?
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सतीश भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरू में बतौर सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर रहे। इसके बाद उन्हें आईआईएससी का चेयरमैन बनाया गया। लेकिन जब साल 1971 में विक्रम साराभाई का निधन हुआ, तब उनके समक्ष इसरो के अध्यक्षपद का प्रस्ताव रखा गया। हालांकि इस पद को ग्रहण करने से पहले उन्होंने दो शर्ते रखी थीं। पहली कि इसरो का मुख्यालय बेंगलुरू में बनाया जाए और दूसरा इसरो में आने के बाद भी वे आईआईएससी के निदेशक का पद नहीं छोड़ेंगे।
इसरो में योगदान :
इसरो के विकास में हमेशा इसके संस्थापक विक्रम साराभाई का नाम सबसे आगे लिया जाता है। लेकिन सतीश धवन वे विद्वान थे जिन्होंने इसरो को नया विजन देने के साथ ही इसके विकास में अहम योगदान दिया। उनके आने के बाद इसरो में तरक्की की नई राहें दिखाई देने लगी। इसके अलवा उन्होंने रिटायर होने के बाद भी विज्ञान और प्रोद्योगिकी के मामलों पर हमेशा अपना ध्यान केंद्रित रखा।
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