हाइलाइट्स :
राम मंदिर निर्माण में लगा चार लाख क्यूबिक पत्थर।
पुणे, बैंगलोर और रुढक़ी संस्थान ने बनाया है सूर्य किरण प्रोग्राम।
दर्शन अवधि को लेकर दिए जा रहे तर्क और सुझाव।
भोपाल। अयोध्या के रामलला मंदिर के निर्माण का इंतजार राम भक्तों ने 500 साल तक किया है। अब 22 जनवरी को यह इंतजार समाप्त होने वाला है। रामलला के लिए मंदिर बनकर तैयार हो गया है। भगवान की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इसके बाद यहां आने वाले श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए 17 से 20 सेकंड का वक्त ही मिलेगा। इस अवधि में ही प्रत्येक श्रद्धालु को अपने रामलला के दर्शन करने होंगे। हालांकि, अभी अधिकारिक तौर पर दर्शन अवधि की जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए 17 से 20 सेकंड की अवधि ही निर्धारित की जा सकती है।
राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा के बाद यहां आने वाले श्रद्धालुओं का सैलाब मंदिर ट्रस्ट और व्यवस्थापकों की चिंता का कारण बना हुआ है। यही वजह है कि, प्रत्येक श्रद्धालु के दर्शन करने के समय को लेकर काफी कश्मकश है। फिलहाल ट्रस्ट और व्यवस्थापकों ने प्रत्येक श्रद्धालु के लिए 17 से 20 सेकंड की दर्शन अवधि निर्धारित की है, लेकिन कुछ जिम्मेदार लोगों का मानना है कि, यह अवधि कम है, क्योंकि राम मंदिर और राम के प्रति हिन्दु समुदाय में काफी आस्था है और मंदिर निर्माण के बाद देश और विदेश से आने वाले श्रद्धालु रामलला के दर्शन मन भरकर करना चाहेंगे। इसलिए उन्हें अधिक समय दिया जाना चाहिए।
वहीं ट्रस्ट के सदस्यों का मानना है कि, दर्शन के लिए प्रत्येक दिन आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या के मद्देनजर 17 से 20 सेकंड से अधिक की अवधि दर्शन के लिए नहीं दी जा सकती। इस अवधि में ही श्रद्धालुओं को दर्शन करने होंगे, अन्यथा एक दिन में सभी श्रद्धालुओं का दर्शन करना संभव नहीं होगा और मंदिर की व्यवस्थाओं पर अतिरिक्त दबाव हो सकता है। दर्शन अवधि को लेकर फिलहाल कई तरह के तर्क और सुझाव दिए जा रहे हैं पर इतना जरुर है कि, दर्शन की अवधि 20 से सेकंड से अधिक नहीं होगी।
मंदिर निर्माण में चार लाख क्यूबिक पत्थर लगा :
राम मंदिर निर्माण में अब तक चार लाख क्यूबिक पत्थर लग चुका है, ये पत्थर राजस्थान के पर्वत से निकाला गया है। इस पर्वत का पत्थर काफी मजबूत और मंदिर निर्माण के लिए बेहतर माना जाता है। इसके अलावा मंदिर निर्माण के बजट की बात की जाए तो लगभग 2 हजार करोड़ रुपए की लागत होगी। भगवान की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी यहां कई तरह के निर्माण कार्य निरंतर जारी रहेंगे।
परकोटा के पास सात मंदिर :
मुख्य मंदिर के बाहर परकोटा के पास सात अलग मंदिर बनाए जाएंगे। यह मंदिर महर्षि वाल्मीकि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, निषादराज, माता शबरी व ऋषिपत्नी देवी अहिल्या के होंगे। इन मंदिरों के निर्माण के पीछे सामाजिक समरसता के दर्शन कराने की मंशा है।
भगवान के माथे पर सूर्य किरण, 20 साल का प्रोग्राम :
गर्भग्रह में राम लला के माथे पर नवमीं के दिन सूर्य की किरण पड़ेगी। यह किरण सिर्फ साल में एक बार भगवान के माथे तक पहुंचेगी। इस प्रोग्राम को 20 साल के लिए बनाया गया है। इसकी प्रोग्रामिंग पुणे, बैंगलोर और रुढक़ी संस्थान ने की है। 20 साल पूरे होने से पहले संभवत: अगली प्रोग्रामिंग की जाएगी।
नागर शैली में निर्मित श्रीराम मंदिर तीन मंजिला होगा। प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई 20 फीट रहेगी। वहीं मंदिर में कुल 392 खंभे और 44 द्वार होंगे।
मुख्य गर्भगृह में होगा श्रीराम का बालरूप। वहीं प्रथम तल पर श्रीराम दरबार होगा।
मंदिर की लंबाई पूर्व से पश्चिम में 380 फीट, चौड़ाई 250 फीट तथा ऊंचाई 161 फीट रहेगी।
मंदिर में लोहे का प्रयोग नहीं होगा। धरती के ऊपर बिलकुल भी कंक्रीट नहीं है।
मंदिर में 5 मंडप होंगे, जिनमें नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप व कीर्तन मंडप शामिल है।
मंदिर के समीप पौराणिक काल का सीताकूप विद्यमान रहेगा।
खंभों व दीवारों में देवी, देवता और देवांगनाओं की मूर्तियां उकेरी जा रही हैं।
मंदिर में प्रवेश पूर्व दिशा से, 32 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार से होगा।
दिव्यांगजन और वृद्धों की सुविधा के लिए मंदिर में रैम्प व लिफ्ट की व्यवस्था रहेगी।
मंदिर के चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा। चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर तथा चौड़ाई 14 फीट होगी।
मंदिर को धरती की नमी से बचाने के लिए 21 फीट ऊंची प्लिंथ ग्रेनाइट से बनाई गई है।
परकोटा के चारों कोनों पर सूर्यदेव, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव को समर्पित चार मंदिरों का निर्माण होगा। उत्तरी भुजा में मां अन्नपूर्णा, व दक्षिणी भुजा में हनुमान जी का मंदिर रहेगा।
दक्षिण पश्चिमी भाग में नवरत्न कुबेर टीला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। यहां जटायु प्रतिमा की स्थापना की गई है।
मंदिर का निर्माण पूर्णतया भारतीय परम्परानुसार व स्वदेशी तकनीक से किया जा रहा है। पर्यावरण-जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुल 70 एकड़ क्षेत्र में 70% क्षेत्र सदा हरित रहेगा।
मंदिर के नीचे 14 मीटर मोटी रोलर कॉम्पेक्टेड कंक्रीट (RCC) बिछाई गई है। इसे कृत्रिम चट्टान का रूप दिया गया है।
मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट, अग्निशमन के लिए जल व्यवस्था तथा स्वतंत्र पॉवर स्टेशन का निर्माण किया गया है, ताकि बाहरी संसाधनों पर न्यूनतम निर्भरता रहे।
25 हजार क्षमता वाले एक दर्शनार्थी सुविधा केंद्र (Pilgrims Facility Centre) का निर्माण किया जा रहा है, जहां दर्शनार्थियों का सामान रखने के लिए लॉकर व चिकित्सा की सुविधा रहेगी।
मंदिर परिसर में स्नानागार, शौचालय, वॉश बेसिन, ओपन टैप्स आदि की सुविधा भी रहेगी।
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