भारत। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार की छत्तीसगढ़ स्थित परसा खदान और हसदेव क्षेत्र में राजस्थान सरकार की परियोजना को रोकने की याचिका को खारिज कर दिया है और राजस्थान के परसा की परियोजनाओं में निवेश हुए 40 हज़ार करोड़ को भी बचा लिया है। इस परियोजना के खिलाफ याचिका को रद्द करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा की ’उच्चतम न्यायलय विकास के रास्ते में नहीं आएगा’।
क्या कहा उच्चतम न्यायालय ने?
जस्टिस बी.आर गवई और विक्रम नाथ की बेंच ने अंतरिम याचिका को खारिज करते हुए कहा “हम विकास के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं और हम इस पर बहुत स्पष्ट हैं। हम कानून के तहत आपके अधिकारों का निर्धारण करेंगे, लेकिन विकास की कीमत पर नहीं। हम किसी भी परियोजना को तब तक नहीं रोकेंगे जब तक कि अवैधता बड़ी न हो।" बेंच ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के लंबित रहने को, कोयला खनन गतिविधियों के खिलाफ किसी भी तरह के प्रतिबंध के रूप में नहीं माना जाएगा। इसके साथ ही सुरगुजा में राजस्थान राज्य की विज इकाई राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) द्वारा प्रस्तावित सौ बिस्तर वाले आधुनिक चिकित्सा सुविधा से युक्त अस्पताल के साथ-साथ आदिवासियों को मुफ्त शिक्षा देने वाली अंग्रेजी माध्यम की स्कूल को भी दसवीं से बारवी तक विस्तारित करने का रास्ता साफ़ हो गया है।
विद्युत क्षेत्र में भारत की दिक्कतें
विश्व का पांचवा सबसे बड़ा कोयले का भण्डार होने के बावजूद, भारत बिजली की किल्लत से पीड़ित है। सौर और पवन ऊर्जा दिन के सिर्फ कुछ ही घंटे बिजली मिल पाने के कारण कोयला आने वाले कई वर्षो तक बिजली के लिए एक प्रमुख स्त्रोत रहेगा। ऐसे में कोयला खदानों को खोलने में विकास विरोधी तत्वों के आंदोलन और फर्जी केस के कारण भारत को स्थानीय रोजगार से खुद का सस्ता निकालने के बदले भारी खर्च से विदेशी कोयला खरीदना पड़ रहा है। जिसके चलते बिजली के दाम हमेशा महंगे हो रहे हैं । छत्तीसगढ़ और झारखण्ड देश के प्रमुख कोयला उत्पादन करने वाले राज्य हैं । इसके अलावा मध्य प्रदेश,ओडिशा के साथ साथ महाराष्ट्र और बंगाल में भी कोयला पैदा होता है।
क्यों राजस्थान के लिए जरूरी है यह परसा परियोजना?
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित परसा कोल परियोजना राजस्थान राज्य की विज इकाई राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को तत्कालीन यूपीए सरकार में आवंटित की गयी दूसरी कोयला खदान है। इसी महीने RRVUNL के अध्यक्ष ने एक इंटरव्यू में बताया था की राजस्थान की राजस्थान के ताप बिजली घरों पर लोड बढ़ रहा है, ऐसे में अगर परसा की तीनों खदानों पर उत्पादन नही हुआ तो राजस्थान सरकार को 40 हज़ार करोड़ का घाटा हो सकता है। जब एक तरफ स्थानीय लोगों ने राजस्थान की इकाई को अपनी जमीन बड़े मुआवावजे के बदले में ख़ुशी से दे दी, उसके बाद आदिवासियों के हित के नाम पर लॉबिंग करने वाले पेशेवर आन्दोलनकारी सुरगुजा की इन सरकारी खदानों को रोकने के लिए अलग अलग हथकंडे अपना रहे हैं। स्थानीय ग्रामीणों की दलील है की छत्तीसगढ़ देश का सबसे बड़े कोयला उत्पादक राज्य है पर कुछ लोग सिर्फ सुरगुजा में ही को खदान या बड़ी इंडस्ट्री लगने दे नहीं रहे है।
अब जिन ग्रामीणों ने अपनी जमीन अधिग्रहण में दे दी है और मुआवजा प्राप्त कर लिया है, उन्हें परसा कोयला परियोजना में रोजगार की उम्मीद बंधी हुई है। एक तरफ फर्जी कोर्ट केस के कारण उनको राजस्थान की खदान में नौकरी मिलने में काफी देर हो रही है तो दूसरी तरफ अब वह अपनी जमीन भी जोत नहीं पा रहे। इसके चलते सभी जमीन प्रभावितों ने अपना रोष जाहिर किया है और ग्रामीणों ने खदान के समर्थन व नौकरी की मांग के लिए आंदोलन शुरू कर दिया है। वहीं बेरोजगार युवकों ने जल्द नौकरी न मिलने पर अपने आंदोलन को उग्र करने की चेतावनी भी दी है।
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