भोपाल के इक़बाल मैदान में सैंकड़ों की तादाद में जुटे लोग। प्रज्ञा
भारत

भारत के लगभग 50 शैक्षिक संस्थानों में CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

देश के प्रमुख केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के बाद लगभग 50 शैक्षिक संस्थानों में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध हो रहा है। भोपाल के इक़बाल मैदान में भी 16 दिसंबर को इसके खिलाफ हुआ विरोध प्रदर्शन।

Author : प्रज्ञा

राज एक्सप्रेस। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, कई आईआईटीज़, आईआईएम अहमदाबाद, आईआईएससी बैंग्लोर, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस, इलाहाबाद, मुम्बई, चंडीगढ़, जाधवपुर, लखनऊ के नादवा आदि कई विश्वविद्यालयों के छात्र भारत सरकार द्वारा बनाए गए 'नागरिकता संशोधन कानून' (Citizenship Amendment Act or CAA) के विरोध में सामने आए हैं।

रविवार, 15 दिसंबर 2019 को जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में हुई हिंसा के बाद देश के तमाम विश्वविद्यालयों में विरोध का स्वर मुखर हुआ है। दिल्ली पुलिस ने जामिया परिसर में अंदर घुसकर पुस्तकालय में पढ़ रहे विद्यार्थियों, छात्रावासों में रह रहे बच्चों पर लाठियां भांजी, आंसू गैस के गोले छोड़े। बच्चों को परिसर से बाहर किया। कई बच्चों को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गई।

इसके बाद जामिया, जेएनयू और दिल्ली के कई महाविद्यालयों के बच्चों के साथ आम लोगों ने दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर धरना दिया। जिसमें गिरफ्तार किए गए बच्चों को तुरंत छोड़ने की मांग की गई। बच्चों के छूटने के बाद यह धरना खत्म हुआ। इस ही बीच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से भी इस ही तरह की हिंसा की खबरें सामने आईं। इन घटनाओं के बाद देश के हर हिस्से में महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के बच्चे जामिया के समर्थन में सामने आए और वहां भी अब लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

इन सबके चलते, जामिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालय में 5 जनवरी और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 10 जनवरी तक के लिए छुट्टी की घोषणा कर दी गई है। छात्रावासों में रहने वाले सभी बच्चों को वापस अपने घर जाने को कहा गया है।

जामिया में कानून की पढ़ाई करने वालीं अनुज्ञा ने बाहर निकलते हुए कहा कि, "दिल्ली पुलिस ने हमारे घर को बर्बाद कर दिया। जब आपके घर ऐसा करेंगे तो आपको पता चलेगा। काश लोग अंदर आकर देख पाते कि बच्चों को प्रोटेस्ट करने से रोकने के लिए हम सबके साथ क्या किया गया? लड़कियों के हॉस्टल में घुस गए, लड़कों के हॉस्टल में घुसे। बच्चे जान बचाने के लिए भाग रहे थे, किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था। क्या यह लोकतंत्र है?"

सोमवार, 16 दिसंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के इक़बाल मैदान में भी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ। शहर के कई गैर-राजनैतिक संगठन, सामाजिक संस्थाएं और विशेषकर छात्र इसमें शामिल हुए। इस विरोध प्रदर्शन में काफी लोग जुटे, जिन्होंने सरकार, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और इस नए कानून के विरोध में नारे लगाए, पोस्टर्स दिखाए। भारत का राष्ट्रगान गाकर लोगों ने रविवार के लिए इस प्रदर्शन का अंत किया।

यह प्रदर्शन आगे भी जारी है। स्थानीय नेता और विधायक आरिफ मसूद ने बुधवार, 18 दिसंबर को कांग्रेस के नेतृत्व में एक विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के शामिल होने की संभावना भी जताई जा रही है।

तस्वीरों में देखिए भोपाल में हुआ विरोध-प्रदर्शन: 'नागरिकता संशोधन कानून' के खिलाफ भोपाल में विरोध प्रदर्शन

इस कानून के बारे में भोपाल में रहने वाला एक कैब ड्राइवर कहता है, "यह एक सेक्यूलर देश है। हम यहां सालों से रह रहे हैं, हमारे बाप-दादा यहीं के हैं। पाकिस्तान जाने वाले चले गए, जिन्हें जाना था, वो कबके चले गए। जिनको यहां रहना है वो रह रहे हैं। वो यहीं मरेंगे, यहीं दफन होंगे। हम तो इस ही ज़मीन पर पैदा हुए, इस ही पर मरेंगे।"

लोगों में इस कानून से अधिक सरकार की मंशा को लेकर चिंता है। ड्राइवर भाई कहते हैं कि, 'इसके बाद न जाने सरकार और कौन-कौन से बिल पास करे, पता नहीं। देखिए, अमन रहे, चैन-सुकून रहे और कुछ नहीं चाहिए किसी को भी।'

क्या है नागरिकता संशोधन कानून?

नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के अनुसार, "पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोग अगर 31 दिसंबर 2014 से पहले अपने देश में धार्मिक हिंसा का शिकार होने या उसके डर के कारण भारत आए हैं तो उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।"

यह विधेयक, नागरिकता विधेयक-1955 में संशोधन करने के लिए लाया गया। संसद के दोनों सदनों(लोकसभा और राज्यसभा) से पारित होने और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन गया है। इसमें शरणार्थियों के भारत में 11 साल रहने की अवधि को कम कर के 5 वर्ष कर दिया गया है।

  • नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019-

  • पक्ष और विपक्ष की दलीलें-

10 दिसंबर 2019 को लोकसभा में इस कानून का विधेयक पेश करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि, यह एक ऐतिहासिक विधेयक है। यह पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक शोषण का शिकार हो रहे हिन्दूओं, सिखों, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को सुरक्षा देगा और भारत में उन्हें नागरिक होने का दर्जा दिया जाएगा। यह उन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए जिन्हें धार्मिक हिंसा की वजह से, अपनी घर-परिवार की औरतों का मान बचाने के लिए भारत में शरण लेनी पड़ी, नई आज़ाद सुबह लेकर आएगा।

विपक्ष की तरफ से यह इल्ज़ाम लगाया जा रहा है कि, यह विधेयक धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है जो कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 और 21 का हनन है। यह भारत के संविधान में विदित धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। साथ ही यह शरणार्थियों में धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। पाकिस्तान के अहमदी समुदाय के लोग, चीन के तिब्बतियों, श्रीलंका से आने वाले लोगों, म्यांमार आदि को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

जिसके बाद असम में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन ने तेजी पकड़ी। यह विरोध विधेयक के मंत्रिमंडल से पास होने के बाद 4 दिसंबर से चालू है। पिछले एक हफ्ते से भी अधिक से असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। ऐसे में कुछ समय के लिए केन्द्र सरकार ने असम में इंटरनेट सेवा बंद की। हालांकि, 17 दिसंबर से ये दोबारा बहाल की गई है।

असम में विरोध धर्म का नहीं पहचान का है। उनका कहना है कि, हमें कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं चाहिए, यह असम अकॉर्ड के साथ धोखा है।

  • विश्वविद्यालयों में विरोध-प्रदर्शन-

इसके साथ ही जामिया विश्वविद्यालय में इसके खिलाफ प्रदर्शन होना शुरू हुआ। पुलिस ने प्रदर्शन को रोकने के लिए हिंसात्मक कार्रवाई की। पुलिस का कहना था कि, बच्चों ने पहले हिंसात्मक गतिविधियां कीं, पत्थर फेंके, बस जलाई इसलिए जवाबी कार्रवाई करते हुए पुलिस को लाठियां चलानी पड़ीं, आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। वहीं बच्चों का कहना है कि, पुलिस ने निहत्थे और शांत छात्रों पर बेरहमी से वार किया। उन्होंने न तो बस जलाई, न ही किसी तरह की हिंसा भड़काने का प्रयास किया।

जामिया से बढ़कर अब यह विरोध देश की लगभग 50 शैक्षिक संस्थाओं तक पहुंच गया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय में कानून के खिलाफ दायर हुई याचिका-

सर्वोच्च न्यायालय में इस कानून के खिलाफ एक याचिका दायर हुई है। जिस पर 1000 से अधिक वैज्ञानिकों और स्कॉलर्स ने हस्ताक्षर किए हैं। पश्चिम बंगाल के कृष्णनगर से सांसद महुआ मोइत्रा और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने भी भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी इस कानून को धार्मिक भेदभावपूर्ण बताया है जो कि, भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के खिलाफ है।

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