राज एक्सप्रेस। संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद से भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। असम और दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से शुरू हुआ यह विरोध अब देश के हर राज्य तक पहुंच रहा है। 19 दिसंबर 2019 को पूरे देश में कई जगहों पर इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए। दिल्ली, लखनऊ, बैंग्लोर, बिहार आदि जगहों पर न सिर्फ विद्यार्थियों बल्कि आम नागिरकों ने भी इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
दिल्ली में योगेन्द्र यादव और बैंग्लोर में इतिहासकार रामचन्द्र गुहा को गिरफ्तार किया गया। दिल्ली के कई मेट्रो स्टेशन्स बंद रहे तो वहीं, कई इलाकों में धारा-144 लगा दी गई। इसके साथ ही कई इलाकों से इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद करने की खबरें भी सामने आईं। लखनऊ में हुआ प्रदर्शन हिंसक हो गया और लोगों ने कई सार्वजनिक सम्पत्तियों में आग लगा दी।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में भी सीआरपीसी की धारा-144 लगी हुई थी। यहां इक़बाल मैदान में विरोध प्रदर्शन होना तय था। पुलिस ने लोगों को जमा होने के लिए मना किया लेकिन लोग आते रहे।
धारा-144 में चार से अधिक लोग एक साथ नहीं रह सकते। विरोध में पहुंचे लोग चार-चार के समूह में बंट गए और उन्होंने शांतिपू्ण तरीके से विरोध दर्ज़ कराया। इस विरोध प्रदर्शन को कराने वालों में शामिल एक संस्था मध्यप्रदेश लोकतान्त्रिक अधिकार मंच के सदस्य विजय कहते हैं कि, "जिले में धारा-144 लगा कर मध्यप्रदेश सरकार ने हमारे अभिव्यक्ति के अधिकार का हनन किया है। हम इसकी निंदा करते हैं। हम लोग चार-चार के समूह में बैठे हुए हैं, यहां अपनी बात कर रहे हैं, चर्चा कर रहे हैं। अपना प्रतिरोध दर्ज़ करा रहे हैं। हमारी सार्वजनिक बैठक थी, लगभग 2000 लोगों को इसमें शामिल होना था लेकिन पुलिस ने धारा-144 लगा कर इसे होने से रोका है। यह एक तरह से संविधान के मूलभूत अधिकारों पर हमला है।"
लोग पहले इक़बाल मैदान के चारों तरफ इस तरह समूहों में बंट कर प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन बाद में उन्होंने मैदान के अंदर चार-चार के समूह में जाकर बैठना शुरू किया और शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध दर्ज किया। धीरे-धीरे करके और भी लोग आते गए और समूह बढ़ते गए। यह कयास लगाए जा रहे थे कि लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता है पर पुलिस ने किसी तरह का बल प्रयोग नहीं किया और लोगों को शांतिपूर्वक तरीके से प्रोटेस्ट करने में मदद की।
लोगों ने भी किसी तरह की हिंसा का सहारा नहीं लिया। पोस्टर्स, गीतों और नारों के माध्यम से प्रोटेस्ट को पूरा किया। उन्होंने अपने प्रतिरोध में दुष्यंत कुमार की गज़ल, 'हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए', फैज की 'हम देखेंगे', हबीब जालिब की 'ऐसे दस्तूर को, सुब्ह-ए-बे-नूर को, मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता' आदि गाईं।
अखिल भारतीय आह्वान पर हुए इस विरोध प्रदर्शन में संविधान की शपथ ली और जिस तरह इससे पहले वाला विरोध राष्ट्रगान गाकर खत्म किया गया था, उसी तरह इस प्रदर्शन को भी राष्ट्रगान गाकर समाप्त किया गया।
इस प्रदर्शन के एक दिन बाद 20 दिसंबर को भोपाल के चप्पे-चप्पे पर पुलिस है। आज भी सीआरपीसी की धारा-144 जिले में लागू है और लोगों को किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन की इजाज़त नहीं है।
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