दिल्ली, भारत। PM आवास पर आज 9 मार्च को एक खास कार्यक्रम हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों पर 21 विद्वानों की टिप्पणियों वाली पांडुलिपि के 11 खंडों का विमोचन किया।
PM ने बताया गीता की गहराई का प्रतीक :
PM मोदी ने भगवद गीता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा- आज हम श्रीमद्भागवतगीता की 20 व्याख्याओं को एक साथ लाने वाले 11 संस्करणों का लोकार्पण कर रहे हैं। मैं इस पुनीत कार्य के लिए प्रयास करने वाले सभी विद्वानों, इससे जुड़े हर व्यक्ति और उनके हर प्रयास को आदरपूर्वक नमन करता हूं। किसी एक ग्रंथ के हर श्लोक पर ये अलग-अलग व्याख्याएँ, इतने मनीषियों की अभिव्यक्ति, ये गीता की उस गहराई का प्रतीक है, जिस पर हजारों विद्वानों ने अपना पूरा जीवन दिया है। ये भारत की उस वैचारिक स्वतंत्रता का भी प्रतीक है, जो हर व्यक्ति को अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करती है।
भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले आदि शंकराचार्य ने गीता को आध्यात्मिक चेतना के रूप में देखा। गीता को रामानुजाचार्य जैसे संतों ने आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूप में सामने रखा। स्वामी विवेकानंद के लिए गीता अटूट कर्मनिष्ठा और अदम्य आत्मविश्वास का स्रोत रही है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
भगवद गीता के बारे में PM मोदी के खास विचार-
गीता श्री अरबिंदो के लिए तो ज्ञान और मानवता की साक्षात अवतार थी। गीता महात्मा गांधी की कठिन से कठिन समय में पथप्रदर्शक रही है।
गीता नेताजी सुभाषचंद्र बोस की राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की प्रेरणा रही है। ये गीता ही है जिसकी व्याख्या बाल गंगाधर तिलक ने की और आज़ादी की लड़ाई को नई ताकत दी।
हम सभी को गीता के इस पक्ष को देश के सामने रखने का प्रयास करना चाहिए। कैसे गीता ने हमारी आजादी की लड़ाई की लड़ाई को ऊर्जा दी।
कैसे गीता ने देश को एकता के आध्यात्मिक सूत्र में बांधकर रखा। इन सभी पर हम शोध करें, लिखें और अपनी युवा पीढ़ी को इससे परिचित कराएं।
हमारा लोकतन्त्र हमें हमारे विचारों की आज़ादी देता है, काम की आज़ादी देता है, अपने जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देता है। हमें ये आज़ादी उन लोकतान्त्रिक संस्थाओं से मिलती है, जो हमारे संविधान की संरक्षक हैं।
गीता तो एक ऐसा ग्रंथ है जो पूरे विश्व के लिए है, जीव मात्र के लिए है। दुनिया की कितनी ही भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया, कितने ही देशों में इस पर शोध किया जा रहा है, विश्व के कितने ही विद्वानों ने इसका सानिध्य लिया है।
ये गीता ही है जिसने दुनिया को निश्वार्थ सेवा जैसे भारत के आदर्शों से परिचित कराया। नहीं तो भारत की निश्वार्थ सेवा, विश्व बंधुत्व की हमारी भावना बहुतों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं होती।
हमने जितनी ज्यादा प्रगति की , उतना ही मानव मात्र की प्रगति के लिए और प्रयास हम करते रहे। हमारे यही संस्कार और यही इतिहास आज आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के रूप में एक बार फिर जागृत हो रहा है।
आज भी जब दुनिया एक बार फिर से हर्बल और नेचुरल की बात कर रही है, आज जब अलग-अलग देशों में आयुर्वेद पर शोध हो रहे हैं तो भारत उसे प्रोत्साहित कर रहा है, मदद भी दे रहा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
भारत अपने सामर्थ्य को संवार रहा :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- आज एक बार फिर भारत अपने सामर्थ्य को संवार रहा है ताकि वो पूरे विश्व की प्रगति को गति दे सके, मानवता की सेवा कर सके। हाल के महीनों में दुनिया ने भारत के जिस योगदान को देखा है, आत्मनिर्भर भारत में वही योगदान और अधिक व्यापक रूप में दुनिया के काम आयेगा।
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