दिल्ली, भारत। देश की जनजातीय आबादी के कल्याण के लिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आज गुरूवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय जनजातीय महोत्सव 'आदि महोत्सव' का उद्घाटन किया।
बिरसा मुंडा को पुष्पांजलि की अर्पित :
आदि महोत्सव के उद्घाटन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा को पुष्पांजलि अर्पित की। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा भी मौजूद रहे। इस अवसर पर PM मोदी ने अपने संबोधन में पुरानी परंपराओं और कलाओं का जिक्र करते हुए कहा कि, ''आप सभी को 'आदि महोत्सव' की हार्दिक शुभकामनाएं। ऐसा लग रहा है कि जैसे भारत की अनेकता और भव्यता आज एक साथ खड़ी हो गई हैं। यह भारत के उस अनंत आकाश की तरह है जिसमें उसकी विविधताएं इंद्रधनुष की तरह उभर कर सामने आ जाती हैं। यह अनंत विवधिताएं हमें एक भारत - श्रेष्ठ भारत के सूत्र में पिरोती हैं।''
उनके उत्पादों के माध्यम से विभिन्न कलाओं, कलाकृतियों, संगीत और सांस्कृतिक प्रदर्शन को देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। मुझे लगता है कि भारत की विविधता और इसकी भव्यता एक साथ आ गई है और आज इसकी परंपरा को उजागर कर रही है। जब विविधताओं को '𝐄𝐤 𝐁𝐡𝐚𝐫𝐚𝐭 𝐒𝐡𝐫𝐞𝐬𝐡𝐭𝐡𝐚 𝐁𝐡𝐚𝐫𝐚𝐭' के धागे में पिरोया जाता है, तो भारत की भव्यता दुनिया के सामने उभरती है। यह आदि महोत्सव इसी भावना का प्रतीक है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
यह महोत्सव विकास और विरासत के विचार को और अधिक जीवंत बना रहा है। जो पहले खुद को दूर-सुदूर समझता था अब सरकार उसके द्वार जा रही है, उसको मुख्यधारा में ला रही है। आदिवासी समाज का हित मेरे लिए व्यक्तिगत रिश्तों और भावनाओं का विषय है।
मैंने देश के कोने कोने में आदिवासी समाज और परिवार के साथ अनेक सप्ताह बिताए हैं। मैंने आपकी परंपराओं को करीब से देखा भी है, उनसे सीखा भी है और उनको जिया भी है। आदिवासियों की जीवनशैली ने मुझे देश की विरासत और परंपराओं के बारे में बहुत कुछ सिखाया है। आपके बीच आकर मुझमें अपनों से जुड़ने का भाव आता है।
आज वैश्विक मंचों से भारत आदिवासी परंपरा को अपनी विरासत और गौरव के रूप में प्रस्तुत करता है। आज भारत विश्व को बताता है कि अगर आपको जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों का समाधान चाहिए तो हमारे आदिवासियों की जीवन परंपरा देख लीजिए... आपको रास्ता मिल जाएगा।
हम कैसे प्रकृति से संसाधन लेकर भी उसका संरक्षण कर सकते हैं, इसकी प्रेरणा हमें हमारे आदिवासी समाज से मिलती है। भारत के जनजातीय समाज द्वारा बनाए जाने वाले उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है और ये विदेशों में भी निर्यात किए जा रहे हैं।
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