दिल्ली, भारत। संसद में आज सोमवार को दोनों सदनों में कृषि कानून निरसन विधेयक 2021 पारित हो चुका है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में कृषि कानून वापसी का बिल पेश किया, जो राज्यसभा में भी विपक्ष द्वारा हंगामे के बीच ही पास हुआ है। तो वहीं, अब इस मामले पर सरकार द्वारा चर्चा न किए जाने को लेकर विपक्ष नेताओं का सरकार को आड़े हाथ लेते हुए निशाने साधने का सिलसिला जारी है।
बिल पास होने के बाद नरेंद्र सिंह तोमर का बयान :
दअरसल, पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में कृषि कानून निरसन विधेयक पारित होने के बाद कई नेताओं की प्रतिक्रिया आए है। इसके अलावा बिल पास होने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का भी बयान आया, जिसमें उन्होंने कहा- कृषि सुधार बिल जब आए थे तब व्यापक रूप से चर्चा हुई थी। कृषि क़ानूनों को वापस लेना एक सर्वसम्मत विषय था। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा था कि आप लोग (विपक्ष) अपने स्थान पर बैठे तो वह चर्चा कराने के लिए तैयार हैं, अगर चर्चा होती तो सरकार उसका जवाब देती।
2014 की तुलना से MSP पर खरीद लगभग दोगुनी हुई है। सरकार ने एक लाख करोड़ रुपए के इंफ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापना की है। छोटे किसानों की मदद और प्रोत्साहन के लिए 10 लाख FPOs बनाने की घोषणा की है, जिस पर सरकार 6,850 करोड़ रुपए खर्च करेगी।केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर
सरकार पूरी तरह से किसानों के मुद्दों से भाग रहीं :
दिल्ली में कांग्रेस सांसद गुरजीत सिंह औजला ने कहा- संसद में कोई भी बिल रद्द होती है तो उस पर चर्चा होती है लेकिन जब चर्चा की बात आई तो सरकार उससे भाग रही थी। सरकार पूरी तरह से किसानों के मुद्दों से भाग रहीं। उनके पास किसानों की मौत और MSP पर कोई जवाब नहीं है।
जो लोग किसान को नकली बताते थे आज उनको एहसास हुआ कि इनकी वोट असली है इसलिए उन्होंने अपने कदम पीछे हटाए। आज लोकतंत्र की फिर से हत्या हुई है। इस (कृषि क़ानून) पर चर्चा न पारित कराते समय हुई न वापस लेते समय हुई। यह लोकतंत्र नहीं ठोकतंत्र है।कांग्रेस नेता और सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा
तीनों कृषि कानूनों को मजबूरी में रद्द करना पड़ा :
तो वहीं, संसद के दोनों सदनों में कृषि कानून निरसन विधेयक पारित होने पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की प्रतिक्रिया आई, जिसमें उन्होंने कहा- उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक नुकसान दिख रहा था इसलिए उन्होंने मज़बूरी में तीनों कृषि कानूनों को रद्द करना पड़ा।
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