मिलिए दुनिया की पहली इकलौती महिला महावत पार्वती बरुआ से। इन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। यह दुनिया और भारत की पहली अकेली ऐसी महिला है, जो हाथी को काबू में कर पाती हैं । उनका जीवन रहस्यमयी है। पार्वती असम के एक जमींदार की बेटी हैं। असम के गौरीपुर के राजघराने से ताल्लुक रखने वाली पार्वती का बचपन गुड्डे गुड़ियों से नहीं बल्कि हाथी, घोड़ों से खेलकर बीता है। उनके पिता हाथियाें के विशेषज्ञ माने जाते थे। अपने पिता के साथ रहते हुए उन्होंने भी हाथी के परिवार के बीच रहना शुरू किया और मात्र 14 साल की उम्र से उनकी देखरेख में लग गई। पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में अपनी अलग जगह बनाने के लिए उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड भी मिल चुका है। तो आइए जानते हैं पदमश्री पुरस्कार से सम्मानित पार्वती बरुआ के जीवन के बारे में विस्तार से।
ऐशो आराम से हमेशा दूर रहीं :
चूंकि पार्वती जमींदार की बेटी थी, तो पैसाें की कभी कोई कमी नहीं रही। वह चाहती, तो ऐशो आराम की जिन्दगी जी सकती थीं। लेकिन उन्हें सूरज की गर्मी से लेकर कडकड़ाती ठंड और मूसलाधार बारिश में हाथियों की देखरेख करने में ज्यादा मजा आता था।
1 महीने की उम्र से लिया शिविरों में भाग :
असम में गौरीपुर एक भूले बिसरे कोने में बसा है। यहां पर गदाधर नदी बहती है। उत्तर-पश्चिम में लाओखोवा बील नाम की एक झील है और उत्तर-पूर्व में, नदी के किनारे, मोतियाबाग नामक एक छोटी पहाड़ी , जिस पर हवाखाना महल स्थित है। यहीं से हुई पार्वती के जीवन की शुरुआत हुई। पारबती ने बेटर इंडिया.कॉम को दिए इंटरव्यू में बताया कि मैं महज 1 महीने 17 दिन की थी। हमारे पिता दमरा में एक हाथी शिविर में रुके थे। हमारे पूरे बचपन में, पिताजी हमें साल में सात से आठ महीने इन शिविरों में रहने के लिए ले जाते थे। मेरे पिता की चार पत्नियां थीं, हम अपने साथ 70 नौकरों को ले गए, जिनमें रसोइया, एक डॉक्टर, एक नाई और एक दर्जी शामिल थे। हमारी पढ़ाई पर कोई बाधा न आए, इसलिए एक ट्यूटर हमारे साथ गया।
प्रकृति हमारी यूनिवर्सिटी , हम उसके शिष्य :
इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि हमारे पिता हाथियों को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते थे। वह उनकी देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ते थे। उनकी मालिश, नदी में नहलाना, बीमारियों का इलाज और उनका आहार सब उनकी निगरानी में किया जाता था। शाम को हम पिताजी और महावतों के साथ बैठते थे। शिविर से जुड़े विषयों पर लंबी चर्चा होती थी। वह हमसे कहते थे कि हम ध्यान से सुनें और अपना सुझाव दें। हाथियों के बारे में कई अद्भुत कहानियां भी हमें सुनाई गईं। इस तरह प्रकृति हमारा विश्वविद्यालय बन गयी और मैं उसकी शिष्य।
14 साल की उम्र में पकड़ा पहला हाथी :
पार्वती ने 14 साल की उम्र में पहला जंगली हाथी पकड़ा था। वास्तव में क्या एक साधारण बच्चा यह कर सकता है। बिल्कुल नहीं। पार्वती के अनुसार, इसमें ताकत का इस्तेमाल करने वाली कोई बात नहीं है। यह सबकुछ दिमाग का खेल है, बाकी कुछ मेरा भाग्य भी अच्छा रहा।
जोखिम भरा काम है जंगली हाथी पकड़ना :
उन्होंने बताया कि हाथियों को वश में करने के लिए बहुत धैर्य, दृढ़ता और समर्पण चाहिए। और बात अगर जंगली हाथी को पकड़ने की हो, तो यह बहुत जोखिम भरा काम है। उनके सिर के चारों ओर कमंद फेंककर उन्हें पकड़ लिया जाता है। जानवर को जीतने के लिए लगभग छह महीने तक धीरे-धीरे फुसलाना पड़ता है।
कुछ ऐसी है पार्वती की वेशभूषा :
पार्वती को असमीय महिला पोशाख मेखला चादर पहनना पसंद है। यह एक तरह की साड़ी है। लेकिन काम करते हुए उनका रूप पूरी तरह से बदल जाता है। इस दौरान आप उन्हें फेडेड जींस, चमकदार पीतल के बटन वाली जैकेट, एक सोलर टोपी और आंखों को बचाने के लिए धूप का चश्मा पहने देख सकते हैं। वह थोड़ा तंबाकू भी चबाती है। हाथियाें के माथे को चॉक से सजाने में उन्हें बहुत आनंद आता है। उनकी पोशाक को देखकर, यह समझना मुश्किल नहीं है कि पार्वती पर वेस्टर्न वेशभूषा का अच्छा प्रभाव है। उन्हें युद्ध से जुड़ी फिल्में देखना भी पसंद है।
कुछ ऐसा है उनके जंगल का जीवन :
हम सभी जानते हैं कि जंगलों में जीवन काटना इतना आसान नहीं है। पार्वती का जीवन भी सभी सुख सुविधाओं से वंचित रहा। दांत साफ करने के लिए वह टूथपेस्ट की जगह राख का इस्तेमाल करती थीं। वहीं तंबू के अंदर बिना कवर के गद्दे पर सोई हैं, वो भी बिना तकिए के। जानकर हैरत होगी कि उनके बिस्तर के आसपास रस्सियां, जंजीरें, खुखरी और रकाग जैसी चीजें रखी रहती हैं।
बता दें कि पार्वती एशियन एलीफैंट स्पेशलिस्ट ग्रुप, आईयूसीएन की सदस्य भी हैं। उनकी जिंदगी पर कई डॉक्यूमेंट्री बन चुकी हैं।
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