भारत

सोशल मीडिया पर इस तरह के मैसेज फॉरवर्ड करने को लेकर नए नियम

अब कोई भी इस तरह के मैसेज सोशल मीडिया पर नहीं कर सकेगा फॉरवर्ड और अपलोड, क्योंकि आज ही सरकार ने इस मुद्दे को लेकर बन रहे नए नियमों की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी।

Author : Kavita Singh Rathore

हाइलाइट्स :

  • सोशल मीडिया पर फेक न्यूज के खिलाफ नए नियम

  • सरकार ने दी सुप्रीम कोर्ट को जानकारी

  • 15 जनवरी तक मिलेगा नियमों को अंतिम रूप

  • व्हाट्सएप और फेसबुक कंपनियों का कहना

राज एक्सप्रेस। कई बार आपने देखा होगा कि, कुछ लोग सोशल मीडिया पर ऐसे मैसेज फॉरवर्ड कर देते हैं, जिसमें किसी व्यक्ति से जुड़ी कुछ गलत जानकारी या कोई फेक न्यूज (Fake News) होती हैं और अभी तक लोग बिना सोचे समझे ऐसे मैसेज किसी को भी फॉरवर्ड कर देते थे, लेकिन अब से ऐसा नहीं हो पाएगा, क्योंकि आज ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि, सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें, मानहानिकारक पोस्ट, द्वेषपूर्ण भाषण और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों जैसे पोस्ट एक दूसरे को फॉरवर्ड करने को लेकर नए नियम बनने वाले हैं, जिन्हें 15 जनवरी तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा।

इन राज्यों से साझा की जानकारी :

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया प्रोफाइल के डिक्रिप्टेड डेटा को फॉरवर्ड करने के मामले से जुड़ी जानकारी मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश की हाई कोर्ट को भी स्थानांतरित कर दी है। फेसबुक और व्हाट्सएप ने मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की है, क्योंकि इनका असर राष्ट्रीय सुरक्षा पर हो सकता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, सोशल मीडिया से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई जनवरी के आखिरी हफ्ते में होगी।

अदालत में पहुंचाने के प्रयास का विरोध :

तमिलनाडु सरकार तक ने सोशल मीडिया कंपनियों के मामलों को अदालत में पहुंचाने के प्रयास का विरोध किया है। इस बारे में तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल का कहना है कि, "व्हाट्सएप और फेसबुक को किसी भी जानकारी को डिक्रिप्ट करना चाहिए, जिनका सरकार विश्लेषण करना चाहती है। भारत आने के बाद व्हाट्सएप और फेसबुक यह नहीं कह सकते कि, वे जानकारी को डिक्रिप्ट नहीं कर सकते हैं," तमिलनाडु के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि, वो इन मामलों को सुप्रीम कोर्ट भेजने के लिए सहमत हैं।

दोनों कंपनियों का कहना :

व्हाट्सएप और फेसबुक दोनों ही कंपनियों का कहना है कि, उनके पास जानकारी को डिक्रिप्ट करने के लिए कोई चाबी नहीं है और वे केवल अधिकारियों के साथ उनके काम में सहयोग कर सकते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच का कहना है कि,

"सरकार घर के मालिक से चाबी चाहती है और मालिक कहता है कि, उसके पास चाबी नहीं है।"
जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की सुप्रीम कोर्ट की बेंच

इंटरनेट फ्रीडम एसोसिएशन ने बताया :

एक दूसरे याचिकाकर्ता, इंटरनेट फ्रीडम एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि,

इसकी याचिका पहले ही सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ के पास पेंडिंग पड़ी है और यह पीठ नागरिकों के अधिकारों पर रौंद नहीं सकती पर इस विषय में विचार कर सकती है।
इंटरनेट फ्रीडम एसोसिएशन

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि,

सोशल मीडिया के लिए नियमों को अंतिम रूप देने का यह कदम नागरिकों की गोपनीयता को भंग करने का बिल्कुल नहीं है, बल्कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए उठाया गया है।
तुषार मेहता, सॉलिसिटर जनरल

आरोपों से किया इनकार :

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि, किसी विशेष मैसेज या पोस्ट को किसने सेंड या अपलोड किया है ये जानने की सरकार की निति, किसी भी व्यक्ति के निजता में दखल देना है।

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