दिल्ली, भारत। कोर्ट में कई मामलों को लेकर याचिकाएं दायर होती है, जिस पर कोर्ट अपना अंतिम फैसला सुनाती है। इसी तरह आज बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को लेकर सुनवाई हुई है। इस दौरान कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार अपराध है या नहीं के फैसले पर गुत्थी उलझी।
अब सुप्रीम कोर्ट में होगी मामले की सुनवाई :
इस दौरान मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में जजों की बेंच ने अलग-अलग राय जाहिर कर फैसला दिया। एक तरफ जस्टिस शकधर ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध कहा। तो वहीं जस्टिस हरिशंकर इससे सहमत नहीं हुए। जजों द्वारा अलग-अलग सहमतियों के चलते दिल्ली हाईकोर्ट में वैवाहिक बलात्कार अपराध है या नहीं का फैसला तय नहीं हो सका और अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होने की बात कही है।
IPC की धारा 375, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। लिहाजा, पत्नी से जबरन संबंध बनाने पर पति को सजा दी जानी चाहिए।हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति राजीव शकधर
यह अपवाद 2 से धारा 375 संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। इसलिए उन्होंने इसे अपराध की श्रेणी में नहीं माना।न्यायमूर्ति हरि शंकर
क्या कहता है भारतीय कानून :
बताते चले कि, पत्नी की इजाजत के बिना पति द्वारा सेक्स संबंध बनाने को वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) कहा जाता है और भारतीय कानून मैरिटल रेप को अपराध नहीं बताता। इस दौरान रेप को दंडनीय अपराध घोषित करने वाली इंडियन पेनल कोड (IPC) की धारा 375 के (अपवाद-2) के अनुसार, ''यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी से सेक्स संबंध बनाता है और अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है, तो इसे रेप नहीं माना जाएगा। IPC की धारा 375 का अपवाद 2 मैरिटल रेप को अपराध से मुक्त रखता है।''
बता दें कि, दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर याचिका दायर कर यह मांग की गई थी कि, ''शादी के बाद अगर महिला के साथ उसका पति उसकी मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे मैरिटल रेप के दायरे में लाना चाहिए।'' इतना ही नहीं याचिकाकर्ता द्वारा इस मामले में उदाहरण बताते हुए महिला के सम्मान का जिक्र करते हुए कहा था कि, ''अगर अविवाहित महिला के साथ उसकी मर्जी के बिना शारिरिक संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में माना जाता है तो शादी के बाद भी महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आना चाहिए।''
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