राज एक्सप्रेस। आज पूरा देश महान वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती मना रहा है। 19 नवंबर 1835 को जन्मी महारानी लक्ष्मीबाई पराक्रम और शौर्य की मिसाल हैं। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया था। पर्दा प्रथा और सती प्रथा के उस दौर में महारानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए नारी सेना बनाकर महिला सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत किया था। यह महारानी लक्ष्मीबाई सहित देश के महान स्वतंत्रता सैनानियों के बलिदान का ही नतीजा है कि आगे चलकर हमारे देश को आजादी मिली।
बनारस में हुआ था जन्म :
महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को बनारस में मोरोपंत तांबे के यहां हुआ था। वह पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में कार्य करते थे। मोरोपंत ने अपनी बेटी का नाम मणिकर्णिका रखा था और वह प्यार से उन्हें मनु कहकर बुलाते थे।
शादी के बाद बनी लक्ष्मीबाई :
साल 1942 में मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ। इसके बाद ही उनका नाम बदलकर महारानी लक्ष्मीबाई रख दिया गया। महारानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी में निपुर्ण थीं। साल 1851 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन चार महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। ऐसे में राजा गंगाधर राव और महारानी लक्ष्मीबाई ने एक दत्तक पुत्र को गोद लिया। साल 1953 में राजा गंगाधर राव का निधन हो गया।
अंग्रेजों ने दिया धोखा :
राजा गंगाधर राव के निधन के बाद अंग्रेजों ने महारानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को झाँसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने महारानी लक्ष्मीबाई को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी का किला खाली करने के लिए कहा। हालाँकि रानी से इससे इंकार कर दिया, जिसके बाद अंग्रेजों ने झाँसी पर हमला बोल दिया।
युद्ध के मैदान दिखाया शौर्य :
अंग्रेजों के हमले के बाद भी रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए नारी सेना का गठन किया। उन्होंने खुद महिलाओं को तलवारबाजी का प्रशिक्षण भी दिया। इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने कई दिनों से तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और झांसी की रक्षा की। हालाँकि एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें झाँसी को छोड़ना पड़ा था।
ग्वालियर पर किया कब्जा :
झांसी से जाने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर आक्रमण करके वहां के किले पर अधिकार जमा लिया। वहीं अंग्रेज भी रानी का पीछा करते हुए ग्वालियर पहुँच गए। यहाँ भी रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। हालाँकि एक समय ऐसा भी आया जब वह घायल हो गई और वीरगति को प्राप्त हुईं।
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