Maharana Pratap Jayanti : मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप भारत के महान शूरवीर योद्धाओं में से एक थे। उनका जन्म 9 मई 1540 को राजपूत राज परिवार में हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता का नाम प्रताप उदय सिंह द्वितीय और माता का नाम महारानी जयवंता कुंवर था। अपने पराक्रम और युद्ध कौशल के लिए पहचाने जाने वाले महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था। युद्ध के मैदान पर जब महाराणा प्रताप की तलवार चलती दुश्मन लड़ने से पहले ही अपनी हार मान लेते थे। जब भी महाराणा प्रताप के शौर्य की बात होती है तो उसमें दिवेर के युद्ध का जिक्र जरूर होता है। इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने युद्ध कौशल से अकबर की सेना को भागने पर मजबूर कर दिया था।
दरअसल महाराणा प्रताप और अकबर के बीच साल 1576 में हुए ऐतिहासिक हल्दीघाटी के युद्ध के बाद साल 1582 में एक बार फिर से महाराणा प्रताप और अकबर की सेना आमने-सामने थी। इसे हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग भी कहा जाता है। इस युद्ध में महाराणा प्रताप अपनी सेना का नेतृत्व खुद कर रहे थे जबकि अकबर की सेना का नेतृत्व अकबर के चाचा सुल्तान खान कर रहे थे। यह युद्ध मुगल सेना और महाराणा प्रताप के बीच हुआ आखिरी युद्ध था।
महाराणा प्रताप ने इस युद्ध से पहले स्थानीय लोगों के साथ मिलकर एक बड़ी फौज तैयार की। उन्होंने गुरिल्ला सैनिक टुकड़ियों, हथियार की लूट सहित अपने युद्ध कौशल से मुगल सेना की हालत पहले ही खराब कर दी थी। वहीं युद्ध के दौरान अपनी सेना को दो टुकड़ों में बांट दिया। एक टुकड़ी का नेतृत्व वह खुद कर रहे थे जबकि एक टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे।
युद्ध के दौरान अमर सिंह की टुकड़ी का सामना अकबर के चाचा सुल्तान खान से हुआ। सुल्तान खानएक घोड़े पर सवार था। इसी दौरान अमर सिंह ने अपने भाले से सुल्तान खान पर ऐसा वार किया कि भाला सुल्तान खान के शरीर और घोड़े को चीरते हुए जमीन में धंस गया और सुल्तान खान वहीं मारा गया।
युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप का सामना बहलोल खान से हुआ। वह अकबर का बड़ा सिपहसालार था। जब वह महाराणा प्रताप के सामने आया तो महाराणा ने उस पर ऐसा वार किया कि अपनी तलवार से उसे घोड़े समेत दो टुकड़े में काट दिया। इस दो घटनाओं को देख मुगल सेना इतनी डर गई कि वह युद्ध का मैदान ही छोड़कर भाग गई। इसके बाद महाराणा ने उदयपुर समेत के अहम जगह पर अपना अधिकार स्थपित कर लिया था।
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