World Environment Day: पर्यावरण का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण योगदान होता है। हम सभी को अपने आस पास के वातावरण को स्वच्छ देखने की आदत होती है, पर शायद ही हममें से कोई पर्यावरण के स्वास्थ के बारे में गंभीरता से सोचता है। मध्यप्रदेश पर्यावरण की दृष्टी से अत्यधिक संपन्न है। 5 जून का दिन विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने की थी। इस दिन को मनाये जाने का उद्द्देश्य राजनीतिक और सामाजिक रूप से लोगों को जागरूक करना है। इस साल के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है "Solutions to Plastic Pollution"
देश के वनक्षेत्र का लगभग 12.4% क्षेत्र मध्यप्रदेश में पाया जाता है। मध्यप्रदेश राज्य का 30.71% भौगोलिक क्षेत्र वनों से छाया है। मध्यप्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में 12 राष्ट्रीय उद्यान , 24 वन्यजीव अभ्यारण्य और 3 बायोस्फियर रिज़र्व एवं 6 टाइगर रिज़र्व भी शामिल हैं। मध्यप्रदेश की उत्तरी सीमा पर गंगा-यमुना के मैदानी इलाके है, पश्चिम में अरावली, पूर्व में छत्तीसगढ़ मैदानी इलाके तथा दक्षिण में तप्ती घाटी और महाराष्ट्र के पठार है। जाहिर है पर्यावरण की दृष्टी से मध्यप्रदेश काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ के नदी तालाबों से लेकर पहाड़, पठार प्रदेश की शान है।
मध्यप्रदेश में पर्यावरण की स्थिति: मध्यप्रदेश प्राकृतिक वनस्पति से संपन्न तो है ही यहाँ सांभर, चीतल, नीलगाय, कला हिरण, लंगूर, जंगली सुअर, सहित, खरगोश भी प्राकृतिक रूप से पाए जातें हैं। इसके अलावा मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा टाइगर होने के कारण मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट भी कहा जाता है।
प्राकृतिक रूप से संपन्न होने के बावजूद आधुनिक विकास का नकारात्मक प्रभाव पर्यावरण पर साफ़ देखा जा सकता है। प्रदुषण से पर्यावरण का कोई भी घटक अछूता नहीं रहा है। इस पर्यावरण दिवस पर जानते हैं मध्यप्रदेश में पर्यावरण की स्थिति।
वायु प्रदूषण : मध्यप्रदेश में वायु प्रदुषण का प्रमुख कारण वाहनों और कारखानों से निकलने वाला धूआं है। वायु प्रदूषण की सबसे खराब स्थिति शीत काल में अक्टूबर माह के आस पास होती है। 4 जून को मंदसौर, रतलाम और उज्जैन की वायू गुणवक्ता सबसे खराब थी जबकि जबलपुर की वायु गुणवक्ता अच्छी रही। राजधानी भोपाल की वायु गुणवक्ता माध्यम स्तर की थी।
मध्यप्रदेश में जल की स्थिति :
मध्यप्रदेश में 207 छोटी बड़ी नदियां पायी जातीं हैं। नर्मदा, चम्बल, सोन प्रदेश की कुछ प्रमुख नदियां हैं। प्रदेश में नर्मदा नदी को माँ की तरह पूजा भी जाता है बावजूद इसके प्रशासिनिक अनदेखी के चलते लाखों लोगों की जीवनदायिनी नर्मदा नदी प्रदूषण का शिकार हो रही है। नदी में प्रदेश के शहरों के नालों का पानी बिना उपचार के बहाया जाता है। इसके दुष्परिणाम के चलते नदी के जल जीवन का भी हास होता है। इसके अलावा रेत खनन भी नर्मदा के हास का प्रमुख कारण है।
भूमि प्रदूषण : मध्यप्रदेश में यूं तो फारेस्ट कवर बढ़ा है पर विकास कार्यों के लिए पेड़ काटे जाने से भूमि का कटाव भी जारी है। भूमि कटाव से भूमि की गुणवक्ता में हास होता है। इस प्रकार भूमि प्रदूषण की शुरुआत होती है। इसके अलावा वर्त्तमान में किसानों के द्वारा खेती में अत्यधिक रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है इन रसायनों का प्रभाव स्वास्थ पर स्पष्ट देखा जा सकता है। ये विषैले रसायन हमारे भोजन में प्रवेश कर लेते हैं जो गंभीर बीमारी कारण बनते हैं।
प्लास्टिक का पर्यावरण पर प्रभाव :
प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है। ये नॉन बायो डिग्रेडेबल होती है, कई सालों तक पर्यावरण में बनी रह सकती है। मध्यप्रदेश में सिंगल यूज़ प्लास्टिक को बैन किया जा चुका है, बावजूद इसके हमें बाज़ारों में दुकानों में सब्ज़ी फलों के ठेलों में प्लास्टिक की थैलियां दिखती रहती हैं। इन थैलियों से ना केवल भूमि बल्कि सड़कों पर घूमने वाले जानवरों को भी नुकसान होता है। इस साल मनाये जा रहे पर्यावरण दिवस का मुख्य थीम "सोलूशन्स टू प्लास्टिक पोल्लुशन" है। इस मौके पर जनजागरूकता अभियान के जरिये लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने की जरुरत है। कानून और नियमों से केवल कुछ समय के लिए ही लोगों के द्वारा प्लास्टिक के प्रयोग में रोक लगाई जा सकती है पर जागरूकता अभियान और व्यवहार में परिवर्तन से स्थायी परिवर्तन लाया जा सकता है।
पर्यावरण प्रदूषण का स्वास्थ पर प्रभाव :
वर्त्तमान में प्रदूषण की स्थिति के चलते लोगों का जीवनकाल घटता जा रहा है। अस्थमा, बहरापन, अन्धापन, सिरदर्द, तनाव, अनिद्रा, कैंसर, घबराहट जैसे रोग ना केवल बुज़ुर्गों में बल्कि कम उम्र के लोगों में भी देखे जा रहें है। आधुनिक समय में तकनीक ने जहां लोगों का जीवन सरल बनाया है वहीं वायु, जल, भूमि प्रदूषण जैसी समस्या को भी जन्म दिया है। यदि पहले जैसी स्थिति को बहाल नहीं किया जा सकता तो कम से कम हमारे दैनिक दिनचर्या के छोटे छोटे प्रयासों से उन्हें कम करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।
इन प्रयासों में शामिल है :
बाजार जाते समय प्लास्टिक बैग की जगह जूट या साधारण कपड़े से बने थैले का प्रयोग करें।
सिंगल यूज़ प्लास्टिक का प्रयोग कम से काम करें ।
खेतों में खतरनाक रसायनों का प्रयोग कम किया जाना चाहिए ताकि भूमि प्रदूषण रोका जा सके ।
वाहनों की नियमित जांच करायी जाय ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके ।
अवसंरचना के विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाये जाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
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