ग्वालियर। भगवान श्रीकृष्ण को जहां 56 भोग लगाया जाता है, वहीं इसके उलट माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। शीतला अष्टमी को माता शीतला की पूजा होता है,लेकिन इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है और बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस बार शीतला अष्टमी 15 मार्च को मनाएगी जाएगी। इस मौके पर सांतऊ शीतला मंदिर पर काफी तादाद में श्रद्धालु पहुंचेंगे।
ऐसी मान्यता है कि शीतला अष्टमी व्रत करने से वृत्ती के कुल में ज्वर पीड़ा विस्फोटक चेचक दुर्गंध फोड़े नेत्रों से संबधित रोग शीतला की फुंसियों के चिन्ह (माता) का रोग नहीं होता है,क्योंकि इस व्रत के करने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं ।
बालाजी धाम काली माता मंदिर के ज्योतिषाचार्य डॉं सतीश सोनी ने बताया कि इस दिन सुबह शीतल जल से स्नान कर संकल्प करें। शीतला देवी का भोग लगाने के लिए सभी भोज्य पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लें, क्योंकि शीतला माता को एक दिन का वासी शीतल भोग ही लगाया जाता है, इसलिए शीतला माता के पूजन का दिन लोक मान्यता में बांसौड़ा के नाम से प्रसिद्ध है। शीतला अष्टमी का दिन हिंदू घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता।
शीतला अष्टमी के व्रत में रसोई की दीवार पर पांचो उंगली घी में भिगोकर छापे लगाए जाते हैं। उस पर रोटी चावल चढ़ाकर शीतला माता के गीत गाए जाते हैं। सुगंधित गंध पुष्प आदि से शीतला माता का पूजन कर शीतला स्त्रोत का पाठ करते हैं तथा शीतला माता की कहानी सुनते हैं। रात्रि में दीपक जलाते हैं। इस दिन एक थाली में रोटी दही चीनी चावल मूंग की दाल का चीला हल्दी बाजरा आदि रखकर घर के सभी सदस्यों को स्पर्श कराकर शीतला माता के मंदिर में चढ़ाना चाहिए। इस दिन चौराहे पर भी जल चढ़ाकर पूजन करने का विधान है। मोठ बाजरा का बयाना निकालकर उस पर रुपए रखकर अपने सास के चरण स्पर्श कर उन्हें देने की प्रथा है। इसके बाद किसी वृद्धा को भोजन कराकर दक्षिणा देने से माता शीतला प्रसन्न होती हैं।
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