भोपाल, मध्यप्रदेश। करीब 12 साल के बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की पीठ ने भोपाल गैस त्रासदी के सही मुआवजा और पीड़ितों को स्थायी क्षति के मामले में दायर क्यूरेटिव पिटिशन की सुनवाई शुरू की। सुनवाई में भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच को बताया कि वह सुनवाई के लिए अभी तैयार नहीं है और सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद अपेक्स कोर्ट ने केन्द्र सरकार को जबाव दाखिल करने के लिए 3 सप्ताह की मोहलत देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी। इस मामले में अगली सुनवाई अब 11 अक्टूबर को होगी।
गैसपीड़ित संगठनों में नाराजगी :
इधर राजधानी में यूनियन कार्बाइड गैस हादसे के पीड़ितों के बीच काम कर रहे संगठनों ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में सुधार याचिका की सुनवाई की तैयारी में लापरवाही के लिए भारत सरकार की निंदा की है। उन्होंने मांग की कि तीन हफ्ते के समय का उपयोग करते हुए अगली सुनवाई तक भारत सरकार यह सुनिश्चित करे कि गैस हादसे की वजह से हुए वास्तविक नुकसान की तथ्यात्मक जानकारी पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखे। भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि याचिका दायर होने के 11 साल बीत जाने पर भी अभी तक भारत सरकार ने भोपाल के 5 लाख गैस पीड़ितों के कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए कोई मजबूत दलील पेश नहीं की है। अगले तीन हफ्ते में सरकार की कार्यवाही से ही यह ज़ाहिर होगा की सरकार वास्तव में 5 लाख नागरिकों की कितनी परवाह करती है। वहीं भोपाल गु्रप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढिंगरा ने कहा कि हम आशा करते हैं कि सरकार इस समय का उपयोग करेगी और गैस काण्ड की वजह से हुई मौतों और इंसानी सेहत को पहुँचे नुकसान के आंकड़े को सही करेगी ताकि सर्वोच्च न्यायालय सही नतीजे पर पहुंच सके।
तथ्यों के साथ तैयार थे गैसपीड़ितों के वकील :
निराश्रित पेंशनभोगी मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि मामले में भारत सरकार के साथ साथ हमने भी याचिका पेश की थी और हमारे सीमित संसाधनों के बावजूद हमारे वकील यूनियन कार्बाइड और डाव केमिकल से 646 अरब रुपये के मुआवजे के लिए तथ्यों और तर्कों के साथ अदालत में तैयार थे। लेकिन सरकार ने अपने वकील को रोक दिया। वहीं डॉव-कार्बाइड के खिलाफ बच्चों की नौशीन खान ने आशा व्यक्त की है कि अपने वर्तमान स्वरूप में सरकार की सुधार याचिका में हादसे के बाद पैदा हुई पीढ़ी के स्वास्थ्य को पहुंची क्षति का जिक्र भी नहीं है। जो पीड़ितों के साथ अन्याय है।
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