भोपाल, मध्यप्रदेश। चौरासी लाख यौनियों के बाद मानव जीवन मिलता है, यह जीवन सबसे बहुमूल्य है। इस बहुमूल्य जीवन से देश में एक साल में एक लाख 64 हजार 33 और मध्यप्रदेश में 14 हजार 925 लोग इस स्तर तक जीवन से हार गए कि उन्होंने सिर्फ दो मिनट में जीवन को अलविदा कहकर मौत को गले लगा लिया। जीवन और मौत के बीच की प्रक्रिया को भी आत्महत्या करने वाले ने अधिक कष्टदायक चुनीं। यही कारण है, कि कुल आत्महत्या के विभिन्न तरीकों में से 57.8 फीसदी ने फांसी पर लटने का तरीका अपनाया जबकि 25 फीसदी ने जहर खाकर जीवन समाप्त कर लिया। आत्महत्या करने वालो में सिर्फ आर्थिक तंगी या बीमारी से परेशान लोग शामिल नहीं, बल्कि धन संपन्न, कम उम्र के बच्चे, ग्रहणी और लगभग सभी वर्ग और प्रत्येक उम्र के लोग है। हताशा-निराशा का स्तर इतना अधिक बढ़ा कि कई परिवार के सभी सदस्यों ने एक साथ सामुहिक आत्महत्या का कठोर कदम उठाया। यह चिंतन का विषय है कि जीवन का कैसा ये विराम है, इतनी सस्ती ये सांसें क्यों है...?
आत्महत्या के मामले में मध्यप्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर महाराष्ट्र है जहां कुल 22 हजार 207, दूसरे स्थान पर तामिलनाडु 18 हजार 925, तीसरे स्थान पर मप्र 14 हजार 925, चौथे स्थान पर बंगाल 13 हजार 500, पांचवें स्थान पर कर्नाटक 13 हजार 056 लोगों ने आत्महत्या की। मप्र में बीमारी और पारिवारिक समस्या के चलते 3132, ग्रहणी -3055, 1,308 विद्यार्थी, 145 सरकारी अधिकारी -कर्मचारी सहित व्यापारी 11.3 फीसदी आत्महत्या करने वालों में शामिल हैं। वर्तमान समय में सामूहिक आत्महत्या की घटनाएं हो रही हैं। मप्र में आठ घटनाओं में कुल 19 लोगों ने जान दी है। ये सिर्फ आंकडें भर नहीं है, जीवन जीने की जीवटता समाप्त होने के पुख्ता सबूत है। देश के अधिकांश राज्यों में एक जैसे ही हाल है। बस आंकड़ों की संख्या कम या ज्यादा हो सकती है।
मध्यप्रदेश के चार महानगरों में हुई आत्महत्याएं :
देश में दस साल में आत्महत्याएं :
नोट : सभी आंकड़ों का सोर्स एनसीआरबी है।
संबल देती लोकेश इंदौरा की कविता की ये लाइनें :
लड़ने का जज्बा है तुझ में,
बसा जुनून है तेरे रक्त में।
है जरुरत हवा लगाने की,
चिंताओं को मन से भगाने की।
उम्मीदें जगाइए जीवन में,
हार जीत छिपी बस मन में।
बस इतना सा है जरूरी,
आत्महत्या नहीं जरूरी।
इनका कहना है :
आत्महत्या करने कई वजह हो सकती हैं, हां ये जरूर है कि आजकल लोग बहुत मामूली बात पर भी जीवन समाप्त कर रहे हैं। लोगों के दिमाग में नेगेटिव विचार बहुत अधिक जगह ले रहे हैं। जब भी परेशानी होती है तो लोग बात करने डरते हैं, जबकि बात करने से हल निकल सकता है। परिजन भी अब एक दूसरे से बात करने में संकोच करने लगे है, सब अपने -अपने में जी रहे तो फिर एकांत रहने के कारण लोग आत्महत्यां जैसे कदम उठा रहे है।डॉ. बी.के. चतुर्वेदी, भोपाल
जीवन के प्रति मोह का समाप्त होना मानव जाति के लिए गंभीर खतरा है, अब समय आ गया कि सभी को इस विषय पर गंभीरता से चिंतन-मनन करना चाहिए। ये विषय सिर्फ सरकार के सोचने का नहीं है,इस पर समाज को अधिक काम करने की आवश्यता है। इस मामले में मेरा मत है कि लोगों को अध्यात्म की तरफ जाना चाहिए।पंडित नरेश तिवारी, आध्यात्मिक गुरू, मप्र
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