ग्वालियर,मध्यप्रदेश । चंबल का इलाका लम्बे समय तक देश में बागी व डकैतों के नाम से जाना जाता रहा है। कई साल पहले बागी व डकैत तो समाप्त हो गए, लेकिन चंबल में बदला लेने की तासीर में किसी तरह का अंतर देखने को नहीं मिल रहा है। यही कारण है कि मुरैना जिले के लेपा गांव की घटना में जिस तरह बंदूक से एक साथ 6 लोगों की हत्या ग्रामीणों के सामने कर दी गई उससे साबित होता है कि चंबल इलाके में अभी भी बदला सिर्फ खून बहाकर ही मान्य किया जाता है। क्योंकि जब दोनों परिवार के बीच समझौैता हो चुका था ओर उसके बाद मृतक के परिजन गांव लौटे थे, लेकिन वह यह भूल गए थे कि चंबल में खून का बदला खून से लेने की जो तासीर बनी हुई है उसमें बदलाव नहीं हुआ है ओर इसी भूल से 6 लोगों की जान चली गई।
चंबल इलाके में भिण्ड व मुरैना आते हैं ओर दोनों ही जिलो में एक इंच जमीन को लेकर ही हत्या होना आम बात हो चुकी है, क्योंकि यहां के लोगों के खून में किस तरह का उबाल आता है उसका अंदाजा अभी तक जानकार नहीं लगा सके , क्योंकि इस तरह की घटना से दोनों ही पक्षों का नुकसान होता है इस बात को समझने के बाद भी घटनाएं होना यह दिखाता है कि भले ही देश में बदलाव आ गया है, लेकिन चंबल के इलाके की तासीर में अभी कोई बदलाव नहीं आया है।
जमीन पर कब्जा,शान के खिलाफ
जिस लेपा गांव में यह घटना हुई उससे सटे गांव भिडौसा में भी सालों पहले पान सिंह तोमर को बागी बनने के लिए मजबूर होना पड़ा था ओर इसके पीछे कारण सिर्फ कुछ फुट जमीन पर कब्जा करने का रहा था। चंबल के इलाके से एक नहीं बल्कि अनेकों बागी हुए, जिनकी धूम पुलिस के लिए परेशानी का सबब बनती रही है। चंबल के इलाके में किसी ने एक फुट जमीन पर कब्जा कर लिया तो उसे लोग अपनी शान के खिलाफ मानते है ओर इसी जमीन के कारण अभी तक लेपा जैसी कई घटनाएं हो चुकी है।
खून में उबाल तत्काल
अब ऐसी क्या खूबी है कि चंबल इलाके में रहने वाले लोगों के खून में उबाल तत्काल आ जाता है। इसको लेकर लम्बे समय तक रिसर्च की गई तो एक ही बात सामने आई थी कि पानी की तासीर ही कुछ ऐसी है कि लोगों का खून तत्काल उबाल ले लेता है ओर वह अपने ओर दूसरे के नुकसान की परवाह किए लेपा गांव जैसी घटना को अंजाम दे देते हैं।
कौथर गांव में तो कुएं को ही बंद कर दिया था
मुरैना जिले की अम्बाह तहसील के कोंथर गांव को लेकर भी कहावत चली आ रही है कि इस गांव में एक कुआं ऐसा था, जिसका पानी अगर कोई पी लेता था तो उसके सिर पर खून सवार हो जाता था। जानकार बताते है कि सिंधिया स्टेट के समय जब कुछ लोगों ने शासकीय खजाना लूट लिया था तो सिंधिया स्टेट की पुलिस कौथर गांव पहुंची थी ओर उस गांव में खुदे कुएं का पानी जवानों ने पिया तो जवान आपस में ही लड़ लिए थे। जवानो के आपस में लडऩे की बात किसी की समझ में नहीं आई कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। इसके बाद गांव के ही कुछ लोगों ने सिंधिया स्टेट के कर्नल को बताया था कि जिस कुएं का पानी आपकी फौज ने पिया था उसका पानी ही कुछ ऐसा है उसके बाद सिंधिया स्टेट के समय ही कोंथर गांव के उस कुएं को बंद करा दिया गया था ओर उस कुएं को लेकर किदवंती अभी तक चली आ रही है।
जमीन को मानते ही इज्जत के समान
चंबल इलाके को लेकर यह भी कहा जाता है कि वहां के लोग जमीन को अपनी इज्जत मानते है ओर कुछ फीट जमीन को लेकर ही गोली चलाना आम बात हो गई है। लेकिन अब समय में बदलाव आ गया है ओर युवा शिक्षा ग्रहण कर नौकरी भी करने लगे है, लेकिन इसके बाद भी जो तासीर है उसमें किसी तरह का बदलाव न आना यह दर्शाता है कि बदलाव किसी भी तरह का हो गया हो पर चंबल का पानी की तासीर में कोई बदलाव नहीं आया है।
भिण्ड व मुरैना के कई गांव ऐसे है जहां के लोग अभी भी गांव से बाहर शहर में रह रहे है, क्योंकि वह अब समझ गए है कि अगर गांव लौटे तो फिर पुरानी दुश्मनी बहाल हो जाएगी ओर उसमें नुकसान ही होगा। लेपा गांव मेे 10 साल पुरानी घटना का बदला इस तरह 6 लोगों की जान लेकर लिया जाएगा, इसका भान तो मृतक के परिजनों तक को नहीं हो सका था, क्योंकि अगर भान हो जाता तो गांव आते ही बंदूक की गोली का शिकार न बन जाते। दो परिवारों के बीच जो विवाद था उसको लेकर समझौता भी हो गया था ओर न्यायालय में बयान भी बदल दिए गए थे। इसके चलते परिजन गुरुवार को गांव लौटे थे, लेकिन वह यह भूल गए थे कि यह चंबल के पानी की तासीर अभी नहीं बदली है।
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