होशंगाबाद। कोरोना ने औद्योगिक इकाईयों को जबदस्त झटका दिया है। देश दुनिया में होशंगाबाद को पहचान दिलाने वाले करंसी पेपर कारखाने पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। कारखाने में नॉन 'यूडिसियल स्टांप पेपर का उत्पादन बहुत कम हो गया है, इससे कर्मचारियों को मिलने वाला इंसेंटिव प्रभावित हो गया है।
जानकारी के मुताबिक देश के सौ, दोसौ, पांच सौ जैसे छोटे बड़े नोटों का कागज बनाने वाले एसपीएम में नॉन 'सूडिसियल स्टांप पेपर भी बनाया जाता है, हर साल लगभग दो हजार मैटिक टन स्टांप पेपर बनाया जाता रहा है लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण देश में स्टांप पेपर की खपत और मांग कम हो गई है। इस कारण कारखाने में पेपर का उत्पादन प्रभावित हो गया है। बताया जाता है कि कोरोना के बाद से मिल में कंरसी पेपर तो निर्माण किया जा रहा है लेकिन स्टांप पेपर का उत्पादन हर महीने लगभग 60 मैट्रिक टन प्रभावित हुआ है। इससे कारखाने में काम करने वाले कर्मचारियों को मिलने वाला इंसेंटिव भी कम होने के आसार बन गए हैं। इसे लेकर कर्मचारियों में हलचल मची हुई है। सबसे अधिक पुरानी यूनिट के कर्मचारियों के इंसेंटिव इसका असर पडने के आसार हैं। कर्मचारियों का कहना है कि स्टांप पेपर निर्माण करने में कारखाने ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। सरकार को इस दिशा में कुछ करना चाहिए।
देश में एसपीएम की अलग पहचान
करंसी पेपर और स्टांप पेपर निर्माण करने में होशंगाबाद के एसपीएम का अलग पहचान है। प्रबंधन के साथ बेहतर तालमेल कर कर्मचारियों ने सरकार से मिले हर इंडेन को शत प्रतिशत पूरा किया है लेकिन इस बार कोरोना के चलते कारखाने को स्टांप पेपर का इंडेन कम मिल रहा है। इसे लेकर कर्मचारी मायूस हो गए हैं।
प्रबंधन से चर्चा कर रहे कर्मचारी
इंसेंटिव कम होने के आसार बनते ही कर्मचारी परेशान हैं। इसे लेकर कर्मचारी संगठन लगातार प्रबंधन से चर्चा कर रहे हैं।
औद्योगिक इकाईयों पर कोरोना का असर
दुनिया भर में हहाकार मचाने वाले कोरोना से देश के सरकारी और प्राईवेट औद्योगिक इकाईंयां भी अछूती नहीं रही हैं। लॉक डाउन और कच्चे पक्के माल की खपत कम होने के कारण हर क्षेत्र में इकाईयों पर बुरा असर पड़ा है। इससे त्रासदी से उभरने के लिए इकाईय प्रयास तो कर रही है लेकिन इसे समय लग रहा है।
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