इंदौर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। इसमें सवाल उठाया गया है कि क्यों न पेड़ों को जीवित प्राणी घोषित कर दिया जाए ताकि उनके अधिकार संरक्षित किए जा सकें। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अमन शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका में शहर में दो अलग-अलग स्थानों पर फ्लाईओवर के निर्माण के कारण 1,800 से अधिक पेड़ों को कथित खतरे के बारे में चिंता व्यक्त की गई थी। इस याचिका पर जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस प्रकाशचंद्र गुप्ता ने केंद्र और राज्य सरकारों, इंदौर नगर निगम और इंदौर विकास प्राधिकरण को नोटिस जारी किया। याचिका पर अगली सुनवाई 10 मई को संभावित है।
याचिकाकर्ता के वकील अभिनव धानोडकर के मुताबिक उनके मुवक्किल ने शहर में खजराना चौराहा और फूटी कोठी चौराहा पर दो फ्लाईओवर बनाने के लिए 1,800 से अधिक पेड़ों को काटे जाने या स्थानांतरित करने के कथित संकट की ओर उच्च न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया था। श्री धानोडकर ने कहा कि याचिका में प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के प्रयोग का भी हवाला दिया गया है, जिसमें उन्होंने साबित किया था कि अन्य जीवों की तरह पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। उच्च न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि पेड़ों को जीवित प्राणियों के रूप में मान्यता दी जाए, उन्हें जीवित प्राणियों को अधिकारों का हकदार घोषित किया जाए और उत्तरदाताओं को एक नीति तैयार करने का निर्देश दिया जाए ताकि भविष्य की घटनाओं के लिए पेड़ों को न काटा जाए। कोर्ट से यह भी अनुरोध किया गया था कि इंदौर में पेड़ों की कटाई पर नजर रखने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर रिपोर्ट मांगी जाए।
यह सवाल भी उठाया गया कि मप्र में पेड़ों के संरक्षण के लिए ही वृक्षों का संरक्षण अधिनियम 2021 बनाया गया था लेकिन इसमें कई खामियां हैं। इसमें वृक्ष संरक्षण अधिकारी का पद है। यह पद वर्तमान में निगमायुक्त के पास है। निगमायुक्त ही वृक्ष संरक्षण अधिकारी हैं और उन्हें ही पेड़ काटने की अनुमति देना है। ऐसे में पेड़ों के अधिकारों का संरक्षण कैसे होगा। अधिनियम में कहा है कि मृत पेड़ों को काटने के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी। यानी सरकार भी मान रही है कि पेड़ एक जीवित प्राणी है। याचिका में पेड़ों के संरक्षण के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करने की भी मांग है।
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