शहडोल, मध्यप्रदेश। किसी भी आपराधिक मामलों में पीड़ितों को जल्द न्याय दिलाने के लिए वैज्ञानिक तरीके से जांच व साक्ष्य जुटाना महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पुलिस जांच में इसका प्रयोग लगातार बढ़ रहा है। जिले में हालांकि लंबे समय से फारेंसिक विभाग काम कर रहा है, लेकिन यौन हमलों व यौन हत्या के मामलों को लेकर पृथक से व्यवस्था नहीं थी। लगातार बढ़ रहे यौन अपराधों व ज्यादातर मामलों में पीड़ितों को न्याय नहीं मिलने के साथ अपराधियों के बच निकलने की आशंका दूर करने के लिए निर्भया कोष से फारेंसिक किट मुहैया कराई जा रही है। सरकार द्वारा शहडोल जिले को भी यह किट मुहैया कराई है। जिले के सभी 12 थानों व एजेके थाना को फारेंसिक किट उपलब्ध कराकर इसके उपयोग की ट्रेनिंग भी विवेचना अधिकारियों को दी जा चुकी है। इस किट का सबसे बड़ा लाभ यौन संबंधी अपराधों से निपटने में किया जाएगा। वैज्ञानिक तरीके से साक्ष्य जुटाया जाकर अपराधियों को सजा दिलाने में यह तरीका काफी कारगर साबित होने वाला है।
साक्ष्य जुटाने का किया जाएगा काम :
फारेंसिक विभाग के मुखिया डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि फारेंसिक किट ऐसे उपकरणों का संग्रह होता है जिसके माध्यम से घटना स्थल, घायल या मृत व्यक्ति, संदेही, अपराधी से संबंधित साक्ष्यों को वैज्ञानिक तरीके से एकत्रित किया जाता है। हाल ही में उपलब्ध किट में नारकोटिक्स किट, फूट व फिंगर पिं्रट किट आदि हैं। खासकर नई किट में सैक्सुअल एसॉर्ट डिडेक्शन किट में लैंगिक अपराधों से संंबंधित घटना स्थल पर साक्ष्य जुटाने का काम किया जाएगा। अपराध से जुड़े हर छोटी से छोटी सी चीजों को व्यवस्थित तरीके से एकत्रित करने में सहूलियत मिलेगी। डॉ. सिंह ने बताया कि यौन अपराधों से संबंधित साक्ष्य जुटाने के लिए इस नई किट का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भौतिक साक्ष्य को पूर्णत: कई दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकेगा। निर्धारित समय पर प्रयोगशाला परीक्षण के लिए भेजा जाएगा। वैज्ञानिक तरीके से हुई जांच परिणाम को मजबूत सबूत माना जाता है। यही कारण है कि यौन संबंधी अपराधों में आरोपियों को सजा इसी जांच के आधार पर होती हैं।
विवेचकों को मिला प्रशिक्षण :
फारेंसिक किट का उपयोग जिला व थाना स्तर पर किया जाएगा। इसका उपयोग यौन संबंधी अपराधों के विवेचकों द्वारा किया जाएगा। ऐसी घटनाएं होने पर मौके पर पहुंचकर साक्ष्य जुटाकर प्रयोगशाला भेजा जा जाएगा। इसके उपयोग के तरीकों के बारे में महिला पुलिस अधिकारियों व विवेचकों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। डॉ. सिंह ने बताया कि जरूरत पड़ने पर जिला स्तर से भी टीम पहुंचकर थाना पुलिस की मदद करेंगी।
दो वर्ष में 431 अपराध :
जिले में बीते दो वर्षों में महिला संबंधी 431 से अधिक अपराध हो चुके हैं। इनमें बलात्कार के 184 तथा शीलभंग के 247 मामले पुलिस रिकार्ड में दर्ज हैं। हालांकि कई मामलों में अपराधियों को सजा मिल चुकी है, जिनका आधार वैज्ञानिक साक्ष्य ही रहा है। यौन अपराधों में डीएनए रिपोर्ट को सजा के लिए बेहतर परिणाम माना जाता है। जिले से परीक्षण के लिए सागर स्थित प्रयोगशाला भेजी जाती है। वर्ष 2018 से अब तक करीब 250 हत्या व यौन मामलों के सेंपल लंबित पड़े हुए हैं।
फारेंसिंक जांच से मामले उजागर :
जिले में संचालित फारेंसिक डिपार्टमेंट कई अवसरों मेें अंधी हत्या जैसे मामलों को उजगार किया है। अभी 21 फरवरी को ब्यौहारी के पसगढ़ी में दुर्ग निवासी एक व्यक्ति की हत्या चोर समझकर पीट पीटकर कर दी गई थी। लाश को जंगल में फेंक दिया गया था। लेकिन वैज्ञानिक जांच ने हादसे का रूप ले रहे मामले को हत्या करार दिया और आरोपी पकड़े गए। दूर तक पड़ी खून की बूंदें जांच में कारगर हुई। इसी प्रकार बुढ़ार थाना क्षेत्र में पत्नी द्वारा पति की कराई गई हत्या के मामले में फारेंसिक जांच आरोपियों तक पहुंची। क्योंकि मृतक की बाइक में आरोपियों के उंगलियों के निशान पाए गए थे।
संसाधन तो हैं, अमले की कमी :
जिले का फारेंसिक विभाग स्टॉफ की कमी से जूझ रहा है। विभाग में एक पद क्लास वन, दो वैज्ञानिक, एक प्रयोगशाला, एक महिला आरक्षक व चालक का पद स्वीकृत हैं। लेकिन क्लास वन व चालक का पद ही भरा हुआ है। जबकि अन्य पद रिक्त हैं। संभाग के उमरिया, अनूपपुर, डिण्डौरी में एक भी पद भरे नहीं हैं। गंभीर अपराधों की वैज्ञानिक जांच के लिए डॉ. एसपी सिंह ही सेवा देते हैं। वहीं पड़ोसी जिले सतना के शहडोल से लगी थाना व सिंगरौली में भी शहडोल का फारेेंसिक विभाग सेवा देता है।
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