ग्वालियर,मध्यप्रदेश । प्रदेश मे विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों ही दल तैयारी करने में जुट गए है ओर इसी के तहत भाजपा जहां विकास यात्रा निकाल रही है तो कांग्रेस हाथ से हाथ जोड़ो अभियान चलाने में लगी हुई है। अब दोनो ही काम दल के दावेदार कर रहे है ओर ऐसे में उनको टिकट मिलने की आस है। केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दावेदारो की उस आस को फिलहाल डबाडोल कर दिया है, क्योंकि उन्होंने साफ तौर पर अपने समर्थको को संदेश दे दिया है कि अब सिफारिश से टिकट नहीं मिलेगा बल्कि अपना काम जमीनी स्तर पर दिखाना होगा ओर फिर टिकट का निर्णय संगठन स्तर पर ही लिया जाएगा। इस संदेश के चलते अब दावेदारो में बैचेनी बढ़ा दी है।
कांग्रेस में रहते हुए तो समर्थको को टिकट सिंधिया की हां पर ही मिल जाता था, लेकिन अब भाजपा का नियम कुछ अलग है जिसके कारण दावेदार इस बात को लेकर चिंता में ही कि आगे क्या होगा। ऐसी स्थिति उन दावेदारो की है जो कांग्रेस से भाजपा में पहुंचे है ओर वर्तमान में तो कई मंत्री व निगम मंडल में अध्यक्ष है। कांग्रेस छोड़कर जब कई विधायक भाजपा में पहुंचे थे तो कई उप चुनाव के समय कई ऐसे लोगों को मंत्री पद दिला दिया गया था जिनको शायद ही यह पद कभी नसीब होता। उप चुनाव में तीन मंत्री चुनाव हार गए थे जिसके कारण बाद में उनको निगम मंडल का अध्यक्ष बना दिया गया था जबकि जो विधायक थे ओर हार गए थे उनको भी निगम मंडल अध्यक्ष बनाकर नवाजा गया था।
अब चुनावी साल चल रहा है तो सिंधिया समर्थको की आस अपने नेता से होना स्वाभाविकत है, ऐसे में वह अपनी दावेदारी पक्की करने के फेर में लगे हुए है, लेकिन जिस तरह से सिंधिया ने कुछ दिन पहले साफ कह दिया कि टिकट की आस लगाकर मत बैठना, क्योकि भाजपा में सिफारिश से टिकट मिलने की संभावना बिल्कुल नहीं है इसलिए जमीनी स्तर पर अपना काम दिखाओ ओर अगर आपका काम बोलेगा तो फिर संगठन आपके हित मे निर्णय ले सकता है। प्रदेश में वैसे भी गुजरात फार्मूला अपनाने की हवा चल रही है जिससे अधिकांश मंत्रियो की बैचेनी बढ़ी हुई है, लेकिन गुजारत चुनाव के बाद जो हवा उडाई गई उसमें शायद ही कोई दम नजर आ रही है, क्योंकि भाजपा मे कई मंत्री ऐसे ही जो काफी लम्बे अंतर से जीते है ऐसे में उनको ड्राप करना मुश्किल रहेगा।
रास्ता खोजने में जुट गए दावेदार...
राजनीति में जो खिलाड़ी होता है वह हमेशा खेलने की कौशिश में रहता है, क्योकि उसे रिर्जव में बैठने की आदत नहीं है, यही कारण है कि सिंधिया के संदेश के बाद से ही उनके कई समर्थक तो अपना रास्ता खोजने में जुट गए है, क्योंकि अब उनको भी यह लगने लगा है कि भाजपा में संगठन की कसौटी पर खरे उतरने वाले को ही टिकट मिलता है ओर यहां किसी तरह की सिफारिश नहीं चलती, जबकि सिंधिया के साथ आएं लोगों को तो सिफारिश की आदत लगी हुई है ओर अब उस सिफारिश की आदत को उन्होने सिंधिया के संदेश के बाद एकाएक त्याग दिया है, लेकिन इसके बाद भी वह ऐसा रास्ता खोज रहे है जिसके सहारे वह प्लेईंग टीम में बने रहे ओर दो-दो हाथ कर सके। अब देखना यह है कि भाजपा संगठन की कसौटी पर कितने दावेदार खरे साबित होते है, क्योंकि अगर खरे साबित नहीं हुए तो फिर टिकट मिलना संभव ही नहीं होगा।
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