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मध्य प्रदेश

RGPV: प्रबंधन के मनमाने ढंग से करोड़ों रुपए निजी बैकों में रखने के निर्णय पर फिर उठे सवाल

Technical Education: मामले में तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव और कमिश्नर ने भी विवि को पैसा रखने से पहले वित्तीय विभाग और शासन से परामर्श लेने के निर्देश दिए थे।

Rakhi Nandwani

भोपाल, मध्यप्रदेश । राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ( RGPV ) प्रबंधन द्वारा मनमाने तरीके से करोड़ों रुपए निजी बैकों में रखने के निर्णय और कार्यप्रणाली को लेकर अधिकारियों-कर्मचारियों में असंतोष है। इस मामले में विवि में अंदरूनी विरोध के साथ ही शिक्षक और अधिकारी संघ (एसएएस) लगातार प्रश्न खड़े कर रहा है। वहीं इसी मामले में विगत 15 मार्च को हुई कार्यपरिषद की बैठक में स्वयं तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव और कमिश्नर ने भी विवि को पैसा रखने से पहले वित्तीय विभाग और शासन से परामर्श लेने के निर्देश दिए थे। लेकिन प्रबंधन द्वारा इतनी बड़ी राशि को गुपचुप तरीके से निजी बैंकों में एफडी और सेविंग खाते में रखने की खबरें आने से कर्मियों में पैसों की सुरक्षा को लेकर संशय व भय की स्थिती है।

हाल ही में इस मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है जब शिक्षक और अधिकारी संघ (एसएएस) को यह भनक लगी कि प्रबंधन द्वारा जिन निजी बैंकों में पैसा रखा गया है या रखने की प्लानिंग चल रही है, वो सुरक्षित नहीं है। उन बैंकों पर आरबीआई ने नियम विरुद्ध कार्य करने पर पेनाल्टी लगाई है। यह खबर मिलने पर एसएएस के करीब आधा दर्जन सदस्य गत दिवस कुलसचिव से मिलने पहुंचे। उन्होंने मांग रखी कि विवि ने जिन निजी बैंकों में एफडी या अन्य खातों में पैसा रखा है, उसे तुरंत निकालकर सरकारी बैकों में रखें। वहां उपस्थित सूत्र बताते हैं कि प्रबंधन ने माना है कि यस और आरबीएल बैंक में विवि के सेविंग अकाउंट हैं।

कार्यपरिषद के निर्देश का होगा उल्लंघन

विगत दिनों विवि द्वारा करीब 250 करोड़ रुपए प्रायवेट बैंकों में रखने का मामला काफी उछला है। इस विषय में विवि के अधिकारियों का तर्क है कि जो बैंक ज्यादा ब्याज दे रहे हैं, आरबीआई से अधिकृत हैं, वो भी राष्ट्रीयकृत बैंक की तरह ही हैं, वहां पैसा रखने में क्या गुरेज है। लेकिन विवि के इस प्रस्ताव पर ईसी ने खारिज करते हुए निर्देश दिए थे कि पैसे को सुरक्षित रखा जाना सबसे ज्यादा जरूरी है। शासन व वित्तीय विभाग के दिशा-निर्देश के आधार पर ही पैसा डिपॉजिट किया जाना चाहिए। अब विवि द्वारा अपने स्तर पर कमेटी गठित करना, विभाग के अधिकारियों के निर्देशों का भी सीधा उल्लंघन होगा।

एसएएस पहले भी जता चुका है चिंता

विवि की पंद्रह साल पुरानी संस्था एसएएस को विवि में हो रही सभी गतिविधियों की भली-भांति जानकारी है। यही वजह है कि संघ ने फरवरी माह में कई बिंदुओं को उजागर करते हुए विवि के गोपनीय तरीके से पैसा डिपॉजिट करने पर संदेह जताया है। फंड में लगातार हो रही गिरावट का कारण विवि में वित्तीय गड़बड़ी, संसाधनों के कुप्रबंधन और दुरुपयोग बताया है।

छुट्टी होने के कारण आधिकारिक घोषणा नहीं हुई

सूत्रों के अनुसार कुलसचिव ने एसएएस के दबाव में तत्काल ही तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी। हालांकि छुट्टी होने के कारण अभी इस समिति की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है लेकिन अंदरुनी तौर पर इस समिति पर भी सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि इस समिति के सदस्य वित्तीय के एक्पर्ट नहीं हैं और तीनों ही विश्वविद्यालय के कर्मचारी हैं। अधिकारियों ने बताया कि समिति में विवि के ही डॉ. अनिल गोयल, डॉ. नितिन श्रीवास्तव और डॉ. रतीश अग्रवाल को सदस्य बनाया गया है। उनका कहना है कि विवि को कमेटी में वित्तीय विभाग, सामान्य प्रशासन और तकनीकी शिक्षा के एक्सपर्ट को भी शामिल किया जाना चाहिए।

इनका कहना है

निजी बैकों में कुछ राशि रखी तो है, कितनी यह वित्तीय अधिकारी ही बता सकते हैं। आरबीएल में विवि का सेविंग खाता है। वहां पेनाल्टी लगाने की जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से ही लगी है।

प्रो. आरएस राजपूत, कुलसचिव

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