चुनौती बने बागी नेता RE-Bhopal
मध्य प्रदेश

BJP-कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए चुनौती बने बागी, बिगाड़ेंगे कई सीटों का गणित, परिणाम के बाद बढ़ेगी पूछ

gurjeet kaur

हाइलाइट्स :

  • टिकट न मिलने से कई नेता लड़ सकते हैं निर्दलीय चुनाव।

  • कांग्रेस ने नागौद सीट से पिछड़ा वर्ग की प्रत्याशी रश्मि सिंह पटेल को मैदान में उतारा है।

  • सीमा जयवीर सिंह और यादवेंद्र सिंह पिछला चुनाव सबसे कम वोट से हारे थे।

भोपाल। (सुधीर ठाकुर) मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत कर सत्ता की कुर्सी तक पहुंचे के लिए राजनीतिक दलों में दौड़ शुरू हो चुकी है। इस दौड़ की फिनिशिंग लाइन 230 विधानसभा सीट पर सबसे अधिक जीत हासिल करना है। इस दौड़ में राजनीतिक दलों के लिए निर्दलीय उम्मीदवार बैरियर बन गए हैं। कई सीटों पर निर्दलीय या बागी उम्मीदवारों ने राजनीतिक दलों का गणित बिगाड़ दिया है। भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकारों के लिए ये बागी एक चुनौती बन गए हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए भाजपा और कांग्रेस तरह तरह के प्रलोभन बागियों को दे रहे हैं। देखना होगा कि, बागियों में से कितने प्रलोभन में आते हैं और कौन अधिकृत उम्मीदवार का खेल खराब करता है।

आइये जानते हैं कौन किस सीट से बागी हुआ...।

भाजपा से बगावत करने वाले नेताओं में सीधी विधानसभा सीट से केदारनाथ शुक्ला, नागौद विधानसभा सीट से गगनेन्द्र प्रताप सिंह, मैहर विधानसभा नारायण त्रिपाठी, सतना सीट से रत्नाकर चतुर्वेदी, भिंड से पूर्व विधायक रसाल सिंह, राकेश सिंह, हर्षवर्धन चौहान, ममता मीणा, चित्रकूट विधानसभा से सुभाष शर्मा डोली शामिल हैं। वहीं कांग्रेस से बगावती नेता सुमावली से सीमा जयवीर सिंह, यादवेन्द्र सिंह शामिल हैं जिन्होंने तीसरे दल से दावेदारी कर दी है।

अजय सिंह यादव (काग्रेस मीडिया उपाध्यक्ष), पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी धार (कांग्रेस), पूर्व सांसद पुत्र सुधीर यादव (भाजपा), पूर्व मंत्री रंजना बघेल (भाजपा), पूर्व जिपं अध्यक्ष मलकीत सिंह संधु (कांग्रेस), पूर्व नेता प्रतिपक्ष अनिता जैन और उनके पुत्र सेक्टर अध्यक्ष विकास जैन (कांग्रेस), रूस्तम सिंह (भाजपा) इन नेताओं ने भी पार्टी छोड़ दी है, लेकिन किस दल से चुनाव लड़ेंगे, अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

केदारनाथ शुक्ला- सीधी

केदारनाथ शुक्ला सीधी विधानसभा सीट से लगातार तीन बार विधायक रहे हैं। 2023 विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने केदारनाथ की जगह सीधी सांसद रीठी पाठक को टिकट दे दिया। टिकट कटने के कारण केदारनाथ ने भाजपा से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। केदारनाथ के निर्दलीय मैदान में उतरने से कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है। सीधी विधानसभा क्षेत्र मे कुल मतदाता 256802 मतदाता हैं, जिसमे 132777 पुरूष मतदाता एवं 124022 महिला मतदाता हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से देखा जाए तो, भाजपा प्रत्याशी एवं निर्दलीय प्रत्याशी केदारनाथ दोनो ब्राम्हण समाज से आते हैं। कांग्रेस से अकेले राजपूत प्रत्याशी ज्ञान सिंह चौहान मैदान में हैं।

गगनेन्द्र प्रताप सिंह- नागौद

गगनेन्द्र प्रताप सिंह नागौद विधानसभा से भाजपा के टिकट पर दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने पिछला चुनाव जीते मध्यप्रदेश के सबसे उम्रदराज प्रत्याशी नागेन्द्र सिंह (82वर्ष) को फिर से टिकट दे दिया। गगनेन्द्र को टिकट न मिलने के कारण उन्होने नाराज होकर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरने का फैसला लिया है। इस विधानसभा मे कुल 2 लाख 39 हजार 625 मतदाता हैं, जिसमे 12 लाख 4 हजार 720 पुरूष एवं 11 लाख 4 हजार 904 महिला मतदाता हैं। नागौद विधानसभा विंध्य की राजपूत वर्चस्व वाली सीट मानी जाती है। यहां अब तक राजपूत जाति के नेता ही चुनकर आए हैं। गगनेन्द्र प्रताप सिंह पूर्व सतना जिला पंचायत अध्यक्ष रहे हैं। इस विधानसभा में एक ही समाज के तीन प्रत्याशी होने के कारण कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को फायदा मिल सकता है। कांग्रेस ने नागौद सीट से पिछड़ा वर्ग की प्रत्याशी रश्मि सिंह पटेल को मैदान में उतारा है।

ममता मीणा- चाचौड़ा

पूर्व विधायक ममता मीणा भाजपा से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गई हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में चाचौड़ा सीट से कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह से हार मिली थी। चाचौड़ा विधानसभा में अगर मतदाताओं की बात की जाए तो, यहां 2 लाख 37 हजार 107 मतदाता हैं, जिसमें 1 लाख 23 हजार 820 पुरूष एवं 1 लाख 13 हजार 284 महिला मतादाता हैं। इस विधानसभा मे सबसे अधिक मीणा समाज के मतदाता हैं। इसलिए भाजपा ने भी मीणा समाज के ही प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। ममता मीणा की मीणा समाज मे अच्छी पकड़ है, इसलिए चुनावी मुकाबला यहां पर भी त्रिकोणीय हो सकता है। इसके साथ ही मीणा समाज के वोट बंटने का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।

नारायण त्रिपाठी- मैहर

नारायण त्रिपाठी भाजपा से मैहर विधायक हैं। इस बार भाजपा ने नारायण त्रिपाठी को टिकट न देकर श्रीकांत चतुर्वेदी को मैदान में उतारा है। ऐसे मे नारायण ने अपनी अलग पार्टी विन्ध्य जनता पार्टी बनाई है। मैहर विधानसभा में कुल 2 लाख 56 हजार 681 मतदाता हैं, जिसमे 1 लाख 34 हजार 148 पुरूष एवं 1 लाख 22 हजार 531 महिला मतदाता हैं।

रत्नाकर चतुर्वेदी- सतना

भाजपा नेता रहे रत्नाकर चतुर्वेदी, सतना विधानसभा से टिकट के लिए प्रबल दाबेदार माने जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने सांसद गणेश सिंह को मैदान में उतार दिया। रत्नाकर पार्टी से इस्तीफा देकर बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इस विधानसभा में कुल 2 लाख 45 हजार 814 मतदाता हैं, जिसमे 1 लाख 27 हजार 553 पुरूष एवं 1 लाख 18 हजार 256 महिला मतदाता हैं। सतना विधानसभा का चुनाव त्रिकोंणीय देखने को मिलेगा, क्योंकि भाजपा-कांग्रेस दोनो पार्टियों ने पिछड़ा वर्ग के ही नेता को टिकट दिया है, जबकि इस सीट मे ब्राम्हण-ओबीसी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है।

सीमा जयवीर सिंह- देवतालाब

सीमा जयवीर सिंह कांग्रेस से बागी होकर समाजवादी पार्टी के टिकट पर देवतालाब विधानसभा सीट से लड़ रहे हैं। पिछला चुनाव इन्होंने मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के खिलाफ बीएसपी की टिकट पर लड़ा था। इस चुनाव में सीमा जयवीर सिंह मात्र 1 हजार 80 वोट से हार गए थे। सीमा जयवीर सिंह ने हारने के बाद कांग्रेस ज्वाइन कर ली, लेकिन पार्टी ने इस चुनाव में गिरीश गौतम के सगे भतीजे पद्मेश गौतम को मैदान मे उतारकर दांव खेला है। देवतालाब विधानसभा मे कुल मतदाता 244824 हैं, जिसमे 127814 पुरूष एवं 117009 महिला मतदाता हैं। दो बड़े ब्राम्हण चेहरे होने के कारण सीमा जयवीर को इसका फायदा मिल सकता है।

यादवेन्द्र सिंह- नागौद

यादवेन्द्र सिंह कांग्रेस की टिकट पर 2013 में विधायक रह चुके हैं। पिछली बार भाजपा प्रत्याशी नागौद के राजा से मात्र 1200 मतों से चुनाव हार गए थे। कांग्रेस ने इस बार यादवेन्द्र को टिकट नहीं दिया है। टिकट न मिलने पर यादवेन्द्र सिंह ने कांग्रेस छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया। नागौद विधानसभा में कुल 239625 मतदाता हैं, जिसमे 124720 पुरूष एवं 114904 महिला मतदाता हैं। नागौद विधानसभा सीट पर एक ही समाज के तीन कद्दावर नेता मैदान में हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है।

रूस्तम सिंह- मुरैना

पूर्व आईपीएस रूस्तम सिंह बीजेपी से विधायक रहे हैं। मुरैना सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन भाजपा ने रूस्तम सिंह को टिकट न देकर रघुराज कंसाना को टिकट दे दिया। रघुराज कंसाना सिंधिया गुट के माने जाते हैं। टिकट कटने से नाराज रूस्तम भाजपा का दामन छोड़ बसपा में शामिल हो गए। इस विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 262865 है, जिसमे 142428 पुरूष एवं 120428 महिला मतदाता हैं। मुरैना से बसपा की टिकट पर रूस्तम सिंह ने अपने बेटे राकेश सिंह को उतारा है। राकेश का मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी रघुराज कंसाना और कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश गुर्जर से होगा।

रसाल सिंह- लहार

रसाल सिंह चार बार विधायक रहे हैं। साल 1972 में पहली बार जनसंघ पार्टी से विधायक बने थे। इसके बाद 1977 मे जनता पार्टी से विधायक बने। लेकिन भाजपा ने इस बार चुनाव में रसाल सिंह को टिकट नहीं दिया है। लहार विधानसभा प्रदेश की हॉट सीट भी मानी जाती है, क्योंकि इस विधानसभा में कांग्रेस की ओर से सात बार लगातार जीतने वाले गोविंद्र सिंह और भाजपा की ओर से अंबरीश शर्मा मैदान में हैं। इस विधानसभा मे कुल 259276 मतदाता हैं, जिसमें 140426 पुरूष एवं 118842 महिला मतदाता हैं। रसाल के लिए यह लड़ाई आसान नहीं होगी। देखना यह होगा कि, लहार विधानसभा में रसाल सिंह, नेता प्रतिपक्ष के गढ़ में कितने सफल होंगे। रसाल सिंह के चुनावी मैदान में आने पर गोविंद्र सिंह को और मजबूती मिलने के आसार हैं।

हर्षवर्धन चौहान- बुरहानपुर

हर्षवर्धन चौहान पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हैं। विधानसभा सीट बुरहानपुर से भाजपा के टिकट की दावेदारी कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने हर्षवर्धन चौहान की जगह पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस को टिकट दिया है। बुरहानपुर सीट के प्रत्याशी को बदलने के लिए हर्षवर्धन चौहान के समर्थकों ने काफी दबाव बनाया। जब टिकट नहीं बदला गया, तो हर्षवर्धन चौहान ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बनाया है। उन्होंने नामांकन फार्म खरीदा है, लेकिन अभी जमा नहीं किया है। हर्षवर्धन के निर्दलीय चुनाव लड़ने से भाजपा को नुकसान हो सकता है। बुरहानपुर विधानसभा मे कुल मतदाता 322985 हैं, जिसमें 162254 पुरूष एवं 160710 महिला मतदाता हैं।

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